नई दिल्ली
कोविशील्ड वैक्सीन बनाने वाली कंपनी एस्ट्राजेनेका के द्वारा लंदन की अदालत में साइड इफेक्ट्स को लेकर स्वीकारोक्ति के बाद भारत में लोगों के मन में कई तरह के सवाल उठ रहे हैं। ये ऐसे लोग हैं, जिन्होंने कोरोना संक्रमण से खुद को बचाने के लिए वैक्सीन की खुराकें ली थी। इस बीच देश के जाने-माने हृदय रोग विशेषज्ञों का मानना है कि कोविड-19 की वैक्सीन ‘कोविशील्ड’ के प्रतिकूल प्रभाव के बारे में ब्रिटेन में आयी खबरों से आम जनता को घबराने की जरुरत नहीं है बल्कि ऐसी वैक्सीन के कारण लोगों की जान बची हैं।दिवंगत प्रणव मुखर्जी समेत देश के तीन राष्ट्रपति के निजी चिकित्सक रह चुके डॉ. मोहसिन वली ने विशेष बातचीत में कहा कि कोरोना महामारी के आपातकाल के समय अधिक से अधिक लोगों की जान बचाने के लिए कम अवधि के शोध में तैयार वैक्सीनों में से एक ‘कोविशील्ड’ के दुष्प्रभाव की पुष्टि नहीं हुई है और न ही इसके बारे कोई अनुसंधान सामने आया है।
डॉ. वली ने कहा,“ मेरा मानना है कि लोगों को वैक्सीन के बारे में ब्रिटेन में जो हो रहा है, उसे अपने देश से नहीं जोड़ना चाहिए। वह न्यायालय और मुआवजे का मामला है। मैं तो कहता हूं कि इससे बहुत लाेगों की जान बची है। अगर साइड इफेक्ट की बात करनी ही है, तो यह दुर्लभ मामलों में कही गयी है। वैज्ञानिक किसी भी वैक्सीन के गुण -दोष पर उसे सुरक्षित मानते हैं। अगर एक वैक्सीन से लाखों लोगों की जान बचती है और कुछेक लोगों पर यह कुछ नकारात्मक प्रभाव छोड़ती है, तो उसके गुण के आधार पर इसे सुरक्षित मानकर लाखों जिंदगियां बचाई जाती हैं।”
उन्होंने कहा,“किसी ने भारत में अगर कोविशील्ड अथवा कोवैक्सीन लगवायी और अभी तक उन्हें कुछ हुआ नहीं, तो वे सुरक्षित हैं ,क्योंकि इसका किसी भी तरह का साइड इफेक्ट होता तो अब तक हो जाता। हाल ही में भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने इस बात की पुष्टि की है कि हमारी दोनों वैक्सीन सुरक्षित हैं और आगे जाकर कुछ होता है, तो इस पर शोध जारी है।”
उन्होंने कहा, “लाॅन्ग कोविड का प्रभाव जरुर देखा जा रहा है जो ब्रेन फॅाग, मेमोरी लाॅस आदि है। इसे वैक्सीन से नहीं जोड़ा जा सकता । थ्रोम्बोसिस थ्रॉम्बोसाइटोपेनिया संड्राेम(टीटीएस) वैक्सीन से हुआ है, अथवा कोविड से हुआ, इसका पता लगाना मुश्किल है। क्योंकि टीटीएस के मामले उन लाेगों में भी देखे गये थे जिन्हें कोविड हुआ। था। मेरी क्लीनिक में करीब चार हजार काेविड मरीजों का इलाज हुआ था, जो डाक्यूमेंटेड है, उनमें अब लाँग कोविड का प्रभाव देखा जा रहा है। मेरे पास आये एक मरीज के पैर में टीटीएस था। टीटीएस को कोविड और वैक्सीन से जोड़ने के लिए शोध की जरुरत है। इस बीमारी से शरीर में खून के थक्के जम जाते हैं और प्लेटलेट की संख्या गिर जाती है। ”
गंगाराम अस्पताल में हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. राजीव पासे ने भी माना है कि कोविशील्ड से देश में इस तरह के दुष्प्रभाव का मामला ना के बाराबर है। जिन्हें काेविड हो चुका अथवा जिन्होंने कोई भी कोविड वैक्सीन लगवाई है,उन्हें समय- समय पर अपने स्वास्थ्य की जांच करवानी चाहिए। छह माह के नियमित अंतराल में दिल से संबंधित सभी जांच आवश्यक है। यह जांच केवल कोविड अथवा वैक्सीन के दुष्प्रभावों के लिए आवश्यक नहीं है,बल्कि आज की बदलती जीवन शैली और खान-पान के कारण भी स्वास्थ्य पर कई तरह के दुष्प्रभाव देखे जा रहे हैं। कोविड से उबरे लोगों को अचानक भारी कसरत, जिमिंग आदि नहीं करना चाहिए। डॉ. पासे ने कहा,“ सुबह-शाम की सैर और हल्के-फुल्के व्यायाम से अच्छे स्वास्थ्य की ओर कदम बढ़ाया जा सकता है। ” उल्लेखनीय है कि कोविशील्ड की जांच के लिये बुधवार को उच्चतम न्यायालय में एक याचिका दाखिल की गयी। इसमें कहा गया है कि कोविशील्ड के साइड इफेक्ट की जांच करने के लिए एक्सपर्ट पैनल बनाने का निर्देश जारी किया जाये।
भारत में सबसे पहली कोरोना वैक्सीन कोविशील्ड है। इसे पुणे की सीरम इंस्टीट्यूट ने बनाया है। कोविशील्ड फॉर्मूला ब्रिटिश फार्मा कंपनी एस्ट्राजेनेका से लिया गया है। एस्ट्राजेनेका ने ब्रिटेन की अदालत में माना है कि उसकी वैक्सीन से दुर्लभ मामलों में थ्रॉम्बोटिक थ्रॉम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम यानी टीटीएस जैसे साइडइफेक्ट हो सकते हैं। डॉ. वली पूर्व राष्ट्रपति आर. वेंकटरमन, शंकर दयाल शर्मा और प्रणव मुखर्जी के निजी चिकित्सक रह चुके हैं। भारत के राष्ट्रपति के लिये एक चिकित्सक के रूप में उनकी पहली नियुक्ति 33 वर्ष की उम्र में वेंकटरमन के साथ थी , जिससे वह भारतीय राष्ट्रपति की सेवा करने वाले सबसे कम उम्र के चिकित्सक बन गये। वह भारत के तीन राष्ट्रपति की सेवा करने वाले एकमात्र चिकित्सक हैं । भारतीय चिकित्सा में उनके योगदान के लिये सरकार ने उन्हें वर्ष 2007 में पद्म से सम्मानित किया।