नई दिल्ली
जेल में बंद नेताओं को भी चुनाव प्रचार करने की अनुमति मिलनी चाहिए और इसके लिए निर्वाचन आयोग को एक मेकेनिज्म तैयार करना चाहिए। ऐसी मांग वाली अर्जी दिल्ली हाई कोर्ट में बुधवार को पहुंची तो दिलचस्प बहस देखने को मिली। उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश मनमोहन की बेंच ने कहा कि ऐसा आदेश हम चुनाव आयोग को नहीं दे सकते। यही नहीं उन्होंने कहा कि ऐसी परमिशन देना तो बहुत रिस्की और खतरनाक होगा। अदालत ने अर्जी को खारिज कर दिया और कहा कि ऐसी परमिशन देने पर तो जेलों में बंद खतरनाक अपराधी भी चुनाव से पहले अपनी पार्टी बना लेंगे और उसके लिए कैंपेन की परमिशन मांगेंगे।
याची अमरजीत गुप्ता के वकील से जस्टिस मनमोहन ने कहा, 'ऐसे तो दाऊद इब्राहिम भी पार्टी बना लेगा और चुनाव में उतरेगा क्योंकि वह दोषी नहीं है। हम ऐसे किसी व्यक्ति को प्रचार की परमिशन नहीं दे सकते, जो जेल में बंद है। ऐसा हुआ तो फिर सारे रेपिस्ट और हत्या के आरोपी तक आचार संहिता लगने से पहले पार्टी बना लेंगे और कैंपेन करेंगे। यह हमारा मामला नहीं है। हम राजनीति से दूर रहना चाहते हैं। आखिर आप हमें इसमें शामिल क्यों कर रहे हैं। आप हमसे कानून से अलग जाने की बात कर रहे हैं।'
दरअसल याची का कहना था कि जेल में बंद नेताओं को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए प्रचार की परमिशन मिलनी चाहिए। अदालत में यह याचिका लॉ के एक छात्र ने लगाई थी। अदालत ने याचिकाकर्ता को भी फटकार लगाई है। यह याचिका कानून के एक छात्र अमरजीत गुप्ता ने लगाई थी। वो लॉ फाइनल वर्ष के छात्र हैं। उन्होंने एडवोकेट मोहम्मद इमरान अहमद के जरिए यह याचिका लगाई थी।
इस याचिका में यह भी गुहार लगाई गई थी कि अदालत केंद्र सरकार को निर्देश दे कि वो किसी राजनेता या किसी उम्मीदवार की गिरफ्तारी की सूचना तुरंत चुनाव आयोग को दें। जब दिल्ली हाई कोर्ट की बेंच ने कहा है कि वो याचिकाकर्ता पर जुर्माना लगाएगी तब उनके वकील ने अदालत के समक्ष गुहार लगाई कि याचिकाकर्ता कानून के छात्र हैं इसलिए उनपर जुर्माना ना लगाया जाए। इसके बाद अदालत ने वकील से कहा कि वो छात्र को यह समझाएं कि शक्तियों के बंटवारे की अवधारणा क्या है और न्यायिक शक्तियों की सीमा के बारे में भी बताएं।