Home देश भारत में इस बार रहेगा हीटवेव का कहर ज्यादा क्यों? जानें क्या...

भारत में इस बार रहेगा हीटवेव का कहर ज्यादा क्यों? जानें क्या कहते हैं एक्सपर्ट

4

नई दिल्ली

धीरे-धीरे अप्रैल का महीना खत्म हो रहा है। इस महीने के खत्म होते ही चुभती जलती गर्मी का मौसम शुरू हो जाएगा। अप्रैल के आखिर तक पारा 40 डिग्री के पार जा सकता है। हीटवेव का कहर पूरे भारत को अपनी चपेट में ले लेगा। भारत में हीटवेव का मुख्य कारण क्या है? हीटवेव और एयर पलूशन के बीच क्या नाता है? ऐसे ही कुछ सवालों के जवाब क्लाइमेट एक्सपर्ट से जानते हैं।

IMD की ओर से जारी हुई चेतावनी

भारत सरकार भी हीट वेव आने से पहले ऐसे ही सचेत करती है कि संभल जाओ, वरना हीट वेव की चपेट में आ जाओगे. IMD हर साल हीट वेव आने से पहले अलर्ट जारी करती है, जो नॉर्थ इंडियंस की जिंदगी में आफत की तरह आती है, जिसके बारे में सोचकर मन में डर-सा बैठ जाता है. इस बार अप्रैल महीने में ही इतनी गर्मी पड़ रही है, जिसकी उम्मीद लोगों ने नहीं की थी. अब IMD की चेतावनी ने बची-कुची कसर पूरी कर दी है. IMD ने कुछ दिन पहले चेतावनी जारी की, जिसमें कहा गया कि आने वाले तीन महीनों में देश के लगभग हर राज्य और क्षेत्र में भयंकर गर्मी पड़ने वाली है. यानी इस बार हीट वेव बाकी वर्षों के मुकाबले ज्यादा दिनों तक चलेगी.

पीएम मोदी कर चुके खास बैठक

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 11 अप्रैल को भारतीय मौसम विभाग (IMD)के साथ हीट वेव को लेकर खास बैठक की थी. IMD ने जारी अलर्ट में बताया कि आगामी तीन महीनों में 10-20 दिन तक हीट वेव देखने को मिल सकती है. वैसे यह एक से तीन दिन तक ही रहती है. हीट वेव का असर देश की आर्थिक स्थिति पर भी पड़ता है, क्योंकि इस दौरान फसल को भारी नुकसान होता है. वहीं, सेहत से जुड़ी कई सारी समस्याएं भी होती हैं.

हीट वेव क्या है?

WHO के मुताबिक, जब किसी इलाके में लगातार दो दिन तक नॉर्मल टेंपरेचर 4.5 डिग्री सेल्सियस ज्यादा तापमान हो तो इसे 'हीट वेव' कहते हैं. वहीं, हवा का तापमान नॉर्मल से 6.5 डिग्री सेल्सियस ज्यादा होने पर इसे खतरनाक हीट वेव की कैटेगरी में रखा जाता है. इस दौरान गर्म हवा शरीर में चुभने लगती है.

क्यों चलती है हीव वेव?

'क्लाइमेट चेंज' पर काम करने वाले इंटरनेशनल NGO वर्ल्ड वेदर एट्रिब्यूशन (WWA) ने साल 2023 में एक रिपोर्ट पब्लिश की थी. इस रिपोर्ट में खुलासा किया गया कि अचानक इतनी ज्यादा गर्मी या ठंड के पीछे की वजह क्या है? रिपोर्ट में बताया गया कि यह मानव प्रेरित क्लाइमेट चेंज है, जिसके कारण भारत में हीट वेव तेजी से बढ़ रही है.  भारतीय मौसम विभाग के वैज्ञानिकों के मुताबिक, साल 2024 के कुछ महीनों तक अल-नीनो इफेक्ट होगा, जिसका असर भारत के साथ-साथ दुनिया के दूसरे देशों में भी रहेगा.

भारत में हीट वेव की स्थिति खतरनाक

भारत में ग्रीन हाउस गैस और उसके कारण होने वाले क्लाइमेट चेंज का असर काफी खतरनाक होता जा रहा है. यही वजह है कि भारत का टेंपरेचर खतरनाक रूप से बढ़ रहा है. ऐसे में हर साल सूखे जैसी स्थिति का सामना करना पड़ता है. क्लाइमेट चेंज के कारण हीट वेव ज्यादा दिनों तक रहती है.

रॉबर्ट वाउटार्ड आईपीसीसी के वर्किंग ग्रुप I के सह-अध्यक्ष और आईपीएसएल, पेरिस में वरिष्ठ जलवायु वैज्ञानिक हैं।  सृजना मित्रा दास से बात करते हुए, उन्होंने हीटवेव और उनके कारणों पर चर्चा की।

 

 

  1. आपके काम का मूल क्या है?
    मेरा काम मुख्य रूप से दो चीजों पर केंद्रित है। पहला, मैं जलवायु परिवर्तन से जुड़े भौतिक विज्ञान पर शोध करने वाले आईपीसीसी वर्किंग ग्रुप 1 का सह-अध्यक्ष शियाओये झांग के साथ काम करता हूं। (IPCC का मतलब होता है अंतर सरकारी जलवायु परिवर्तन पैनल) दूसरा, मैं जलवायु के उग्र रूपों, जैसे अत्यधिक गर्मी या बारिश, पर शोध करता हूँ और यह पता लगाता हूँ कि इनका जलवायु परिवर्तन से क्या संबंध है।
  2. भारत के कुछ हिस्सों में अप्रैल में हीटवेव अलर्ट मिल रहा है, क्या यह जलवायु परिवर्तन है?
    बिल्कुल, जलवायु परिवर्तन इसका एक कारण है। पिछले कुछ सालों में हमने वर्ल्ड वेदर एट्रिब्यूशन नेटवर्क के साथ मिलकर भारत में गर्मीलहरों पर तीन अध्ययन किए हैं (2016, 2022 और 2023)। साल 2022 में मार्च से अप्रैल के अंत तक भारत में एक बहुत बड़ी गर्मीलहर देखी गई, जिसमें तापमान सामान्य से काफी ज्यादा था। हमने पाया कि ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा बढ़ने के कारण ऐसी परिस्थितियाँ अब और ज्यादा बार-बार हो रहीं हैं। पिछले साल अप्रैल में, खासकर पूर्वी भारत के तटीय इलाकों में बहुत उमस भरी गर्मी पड़ी थी। इससे शरीर की गर्मी सहन करने की क्षमता (हीट स्ट्रेस इंडेक्स) बहुत ज्यादा बढ़ गई थी, जो खतरनाक सीमा को पार कर चुकी थी। हमारे अध्ययन के अनुसार, जलवायु परिवर्तन न होने पर ऐसी घटनाओं की संभावना 30 गुना कम होती।
  3. लोग अक्सर कहते हैं कि भारत वैसे भी बहुत गर्म देश है, तो इसमें नया क्या है?
    देखिए, जलवायु परिवर्तन को लेकर बहस करने की बजाय, हम वैज्ञानिक प्रमाण पेश करते हैं। यूरोप में भी तापमान बहुत तेजी से बढ़ रहा है, वहां तो शायद ही कोई इसे नकारता है। भारत में भी पिछले कुछ समय में औसत तापमान लगभग दो डिग्री सेल्सियस बढ़ चुका है। मैं यह स्पष्ट करना चाहता हूं कि वैज्ञानिक राजनीति से नहीं, बल्कि सच्चाई से प्रेरित होते हैं। हम आधुनिक तकनीक, आंकड़ों के विश्लेषण और प्रत्यक्ष निरीक्षणों की मदद से जलवायु परिवर्तन और गर्मीलहरों के बीच संबंध स्थापित कर पाए हैं। इसके लिए हम हीटवेव के आंकड़ों की तुलना जलवायु मॉडल से करते हैं। ये मॉडल अतीत के आंकड़ों पर आधारित होते हैं, और कुछ ऐसे भी होते हैं जो अतीत के आंकड़ों को शामिल नहीं करते। इस तुलना से हम ट्रेंड और आंकड़ों में अंतर देख पाते हैं। सरल भाषा में कहें तो, हम हीटवेव के दो समूहों की तुलना करते हैं – एक जलवायु परिवर्तन के साथ और दूसरा बिना इसके। यह वही तरीका है जिसका इस्तेमाल महामारी विज्ञान आदि में भी किया जाता है। इन अध्ययनों से यही निष्कर्ष निकलता है कि भारत पहले से ही गर्म देश रहा है, खासकर मानसून से पहले। लेकिन यह भी सच है कि गर्मी अब और बढ़ रही है।
  4. हीटवेव कितनी खतरनाक है?
    हीटवेव का सबसे बड़ा खतरा सेहत को होता है। खासकर जब गर्मी के साथ बहुत ज्यादा उमस होती है, तब शरीर पसीना निकालकर खुद को ठंडा नहीं कर पाता क्योंकि हवा पहले से ही नमी से भरी होती है। ऐसे में ठंडी जगह पर रहना बहुत जरूरी हो जाता है। लेकिन, हर किसी के पास एयर कंडीशनर या कूलर जैसी सुविधा नहीं होती। इसलिए, गरीब, बुजुर्ग और बीमार लोगों के लिए ऐसी गर्मी जानलेवा भी हो सकती है। इसे ही ‘आर्द्र बल्ब तापमान’ (wet bulb heat) कहते हैं। ऐसी परिस्थिति में बाहर काम करना खतरनाक है। साथ ही, शहरों में गर्मी और ज्यादा बढ़ जाती है, जो इस खतरे को और भी गंभीर बना देता है।
  5. क्या जलवायु परिवर्तन और वायु गुणवत्ता के बीच कोई संबंध है?
    बिल्कुल संबंध है। जलवायु परिवर्तन और हवा की गुणवत्ता, दोनों ही लगभग एक जैसी गतिविधियों से पैदा होते हैं। गाड़ियां, निर्माण कार्य, फैक्ट्रियां आदि ऐसी ही गतिविधियां हैं। इनसे निकलने वाला धुआं हवा को दूषित करता है और साथ ही ग्रीनहाउस गैस, जैसे कार्बन डाईऑक्साइड (CO2) भी पैदा करता है। ये हवा में मिलने वाले दूषित कण (fine particles), नाइट्रोजन ऑक्साइड आदि हमारे स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक होते हैं। इसलिए, जलवायु परिवर्तन को कम करने के लिए कार्बन डाईऑक्साइड का उत्सर्जन घटाना जरूरी है। इससे हवा प्रदूषण को भी कम करने में मदद मिलेगी, यह एक बहुत बड़ा फायदा है।
  6. क्या दुनिया अब निश्चित रूप से 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा पार कर चुकी है?
    दुनिया अभी तक निर्णायक रूप से 1.5 डिग्री सेल्सियस के आंकड़े को पार नहीं कर पाई है। फिलहाल, ग्लोबल वार्मिंग का स्तर 1.2 डिग्री सेल्सियस से 1.3 डिग्री सेल्सियस के बीच होने का अनुमान है। पेरिस समझौते में, '1.5 डिग्री सेल्सियस' का मतलब लंबे समय का औसत है, यह किसी एक साल का लक्ष्य नहीं है। हम इस आंकड़े को तब पार करेंगे, जब लगातार कई सालों तक तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस से ऊपर रहेगा। ऐसा माना जा रहा है कि इसमें लगभग 10 साल लग सकते हैं। हो सकता है कि थोड़े समय के लिए तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस से ऊपर चला जाए और फिर वापस नीचे आ जाए, लेकिन इससे कई देशों पर गंभीर असर पड़ सकता है। उदाहरण के लिए, कुछ चीजें हमेशा के लिए खत्म हो सकती हैं, जैसे कोरल रीफ्स। साथ ही, बहुत ज्यादा गर्मी से कई तरह की प्राकृतिक आपदाएं भी आ सकती हैं। सीधे शब्दों में कहें तो, इस आंकड़े को पार न करना बहुत मुश्किल है, लेकिन अगर पार करना ही पड़े, तो 1.6 डिग्री सेल्सियस 1.7 डिग्री सेल्सियस से बेहतर है, और 1.7 डिग्री सेल्सियस 1.8 डिग्री सेल्सियस से बेहतर है। हर थोड़ा कम तापमान भी फायदेमंद होगा।
  7. हीटवेव से बचने के लिए क्या तैयारी कर सकते हैं?
    भारत में गर्मी से बचाव की योजनाएं पहले से ही मौजूद हैं, लेकिन कुछ और कदम उठाए जा सकते हैं। जैसे, अस्पतालों को भी गर्मी से होने वाली बीमारियों के लिए तैयार रहना चाहिए। साथ ही, लोगों को भी एक-दूसरे की मदद करनी चाहिए, ताकि जरूरतमंदों को पानी और ठंडी जगह तक पहुंचने में आसानी हो। लंबे समय में, गर्मी से बचने के लिए ऐसे लोगों के लिए घरों का इंतजाम करना भी बहुत महत्वपूर्ण है। सरकारी नीतियों में भी गर्मी से बचाव योजनाएं, मौसम का पूर्वानुमान और बचाव के उपाय शामिल होने चाहिए। भारत में इस दिशा में पहले से ही अच्छी व्यवस्थाएं हैं, जिन्हें और मजबूत बनाया जा सकता है।
  8. दुनिया भर में जीवाश्म ईंधन कंपनियां 2024 में अपना प्रोडेक्शन बढ़ाने के लिए तैयार हैं, आपका क्या विचार है?
    इस पर मेरा नजरिया ये है कि IPCC रिपोर्ट बताती है कि अगर हम मौजूदा संयंत्रों से ही जीवाश्म ईंधन निकालते रहते हैं, तो भी हम 1.5 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य को पार कर जाएंगे। कोयला, तेल और गैस निकालने वाली मौजूदा परियोजनाओं को अगर उनके पूरे कार्यकाल तक चलाया जाता है, तो भी पृथ्वी के गर्म होने की रफ्तार बहुत ज्यादा बढ़ जाएगी। इसलिए नई जगहों से जीवाश्म ईंधन निकालना तो और भी ज्यादा नुकसानदेह होगा।