नई दिल्ली
देश में आईएएस-आईपीएस जैसे उच्च पदों पर अब ज्यादा संख्या में मुसलमान काबिज हो रहे हैं। इससे पहले आम तौर पर यह माना जाता रहा है कि आजादी के 75 साल बाद भी शैक्षिक रूप से मुस्लिम पिछड़े हैं और देश के रसूखदार पदों पर उनकी मौजूदगी न के बराबर है। यह बात 2016 तक काफी हद तक हकीकत के करीब भी रही है, मगर अब ऐसा नहीं है। हाल ही में संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) की जारी सिविल सर्विसेज मेरिट लिस्ट, 2023 में 50 से ज्यादा मुस्लिम कैंडिडेट्स ने जगह पाई है। इनमें से 5 तो ऐसे हैं, जिन्हें टॉप-100 में जगह मिली है।
उल्लेखनीय है कि शाह फैसल ने 2010 में IAS टॉप करके कश्मीरियों समेत पूरे देश के मुस्लिम युवाओं को प्रेरणा दी थी। इसके बाद 2015 में कश्मीर के अतहर आमिर ने UPSC में दूसरी रैंक हासिल की थी। वहीं, 2017 में मेवात के अब्दुल जब्बार भी चयनित हुए थे। वे इस क्षेत्र से पहले मुसलमान सिविल सर्वेंट हैं। और अब 2023 में दिल्ली से पढ़ाई करने वालीं नौशीन ने सिविल सेवा परीक्षा में 9वीं रैंक हासिल की है, जो मुस्लिम समुदाय के लड़के-लड़कियों को देश की सर्वोच्च सेवा में सफल होने के लिए राह दिखाएगा।
52 मुस्लिम कैंडिडेट्स हुए सफल
सिविल सेवा परीक्षा, 2023 में कुल सफल 1,016 अभ्यर्थियों में से 52 मुस्लिम कैंडिडेट्स ने जगह बनाई। इनमें से 5 यानी रूहानी, नौशीन, वारदाह खान, जुफिशान हक और फैबी राशिद ने टॉप-100 में जगह बनाने में कामयाब रहे। टॉप-10 में नौशीन को 9वीं रैंक मिली है।
2012 में 30 और 2014 में 36 मुस्लिम ही बने थे अफसर
मुस्लिम युवाओं का सिविल सेवाओं के प्रति रुझान हाल के वर्षों में बढ़ा है। क्योंकि 2012 में सिविल सेवाओं में सफल मुस्लिम कैंडिडेट 30 थे। वहीं, 2013 में सफल मुस्लिम कैंडिडेट 34, 2014 में 38, जबकि 2015 में 36 थे। उस वक्त भी मुस्लिम युवाओं की सफलता दर तकरीब 5 फीसदी थी।
मुस्लिम कैंडिडेट्स की सफलता दर 5 फीसदी, बीते साल से ज्यादा
इससे पहले 2022 की सिविल सेवा परीक्षा में कुल 933 अभ्यर्थी आईएएस-आईपीएस और केंद्रीय सेवाओं के लिए चुने गए थे। इनमें से महज 29 कैंडिडेट्स मुस्लिम कम्युनिटी से थे। जो कुल सफल लोगों में से करीब 3.1 फीसदी रहे। इस बार यानी 2023 की सिविल सेवा परीक्षा में 51 मुस्लिम कैंडिडेट्स सफल रहे, उनका कुल सफल लोगों में प्रतिशत 5 फीसदी से ज्यादा ही रहा है।
सच्चर कमेटी ने भी अफसरशाही में मुस्लिमों की हिस्सेदारी पर की थी बात
सच्चर कमेटी ने अपनी रिपोर्ट नवंबर, 2006 में सौंपी थी, जिसमें यह कहा गया था कि मौजूदा वक्त में 3,209 IPS ऑफिसर हैं, जिनमें से 128 यानी करीब 4 फीसदी ही मुस्लिम हैं। वहीं, जनवरी, 2016 में सेवारत 3,754 IPS ऑफिसरों में से 120 यानी कुल का 3.19 फीसदी ही मुस्लिम ऑफिसर हैं।
क्या थी सच्चर कमेटी, क्यों हुआ था गठन
देश में मुस्लिमों की सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक पिछड़ेपन का हाल जानने के लिए कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए सरकार ने जाने-माने मानवाविधकार समर्थक जस्टिस राजिंदर सच्चर की अगुवाई में 2005 में सच्चर कमेटी गठित की थी। इस कमेटी की 403 पन्नों की रिपोर्ट लोकसभा में 30 नवंबर, 2006 को पेश की गई थी।
क्या कहा था सच्चर कमेटी ने
इस रिपोर्ट में कहा गया था कि एससी, एसटी और अल्पसंख्यक आबादी वाले गांवों और आवासीय इलाकों में स्कूल, आंगनवाड़ी, स्वास्थ्य केंद्र, सस्ते राशन की दुकान, सड़क और पेयजल जैसी सुविधाओं की काफी कमी है। यहां तक कि मुस्लिम समुदाय की हालत अनुसूचित जाति और जनजाति से भी खराब है।
2006 में प्रशासनिक सेवाओं में मुस्लिमों की भागीदारी काफी कम रही थी। उस वक्त देश में 3 फीसदी आईएएस, 4 फीसदी आईपीएस ही मुसलमान थे। वहीं, पुलिस फोर्स में मुस्लिमों की हिस्सेदारी 7.63 फीसदी, जबकि रेलवे में महज 4.5 प्रतिशत थी। उस वक्त कुल सरकारी नौकरियों में मुस्लिमों का प्रतिनिधित्व महज 4.9 फीसदी ही था।
अभी तक ऊंचे पदों पर क्यों नहीं पहुंच रहे थे मुस्लिम
सच्चर कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में इस बात का जिक्र किया था कि मुस्लिमों के बीच शैक्षिक रूप से पिछड़ापन है। खास तौर पर हायर एजुकेशन के मामले में भी मुस्लिम काफी पीछे रहे हैं। इस वजह से सिविल सेवाओं में भी उनकी भागीदारी मामूली रही है। अब चूंकि उनकी प्राइमरी, सेकेंडरी लेवल और हायर एजुकेशन में भागीदारी बढ़ी है तो नतीजा उच्च पदों पर कामयाबी के रूप में भी दिख रहा है।
ऑल इंडिया सर्वे ऑन हायर एजुकेशन इन इंडिया (2018-19) के अनुसार, हायर एजुकेशन के मामले में मुस्लिम स्टूडेंट्स की भागीदारी 5.2 फीसदी रही। यह स्थिति अनुसूचित जाति (5.5%) और अनुसूचित जाति (14.9%) से काफी कम है। यह स्थिति तब है, जब भारत में 2011 की जनगणना के अनुसार, अनुमानित रूप से मुस्लिमों की आबादी 17.22% थी। ऐसे में स्कूली शिक्षा में मुस्लिमों की भागीदारी बढ़ानी होगी, तभी उनकी हर क्षेत्र में तरक्की की राह खुलेगी।