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औरंगाबाद में भाग्य के दम पर अभय तोड़ सकेंगे राजपूती किला, पीएम मोदी के ‘कोयल’ से सुशील की ताकत बढ़ने के कयास?

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औरंगाबाद.

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाईटेड के खाते में औरंगाबाद लोकसभा के आने का इंतजार जब बेकार गया तो लालू प्रसाद यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल में अभय कुशवाहा ने वापसी की। यहां टिकट मिल गया। वह अपने बारे में खुद तो बता ही रहे, उनके समर्थक भी एक सीक्वेंस की चर्चा बार-बार करते हैं- “अभय कुशवाहा पहली बार जो चुनाव लड़ते हैं, वह जरूर जीतते हैं।”

उदाहरण के साथ मुखिया से विधायक तक के चुनाव की चर्चा की जाती है और फिर लोकसभा चुनाव में जीत का दावा भी। लेकिन, बड़ा सवाल यह है कि क्या बिहार में राजनीतिक अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे राजपूत अपने वर्चस्व की इस सीट को हाथ से निकलने देंगे? यहां से लगातार तीन बार के सांसद सुशील कुमार सिंह भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी हैं। मंगलवार को प्रधानमंत्री गया आए तो औरंगाबाद सीट को प्रभावित करने वाली उत्तरी कोयल परियोजना के काम की याद दिलाकर अंतिम तीर छोड़ गए। इसकी आवाज मतदान के समय तक गूंजे तो आश्चर्य नहीं।

जातीय गणित के यहां मायने हैं?
जाति आधारित जनगणना कराने के बावजूद जिलावार जातियों का आंकड़ा जारी नहीं किया गया है, इसलिए राजनीतिक दलों और मीडिया के पास अनुमानित आबादी ही है। उन आंकड़ों में औरंगाबाद लोकसभा सीट पर 2.25 लाख राजपूत वोटर हैं। यादवों की संख्या करीब दो लाख है। दांगी सहित कुशवाहा 1.75 लाख बताए जाते हैं। भूमिहार करीब एक लाख, मुस्लिम करीब सवाल लाख, रविदास करीब डेढ़ लाख, पासवान करीब सवा लाख और इससे कुछ ज्यादा भुइयां। इसमें भाजपाई राजपूत प्रत्याशी सुशील सिंह अपनी जाति को लेकर पक्के हैं तो अभय कुशवाहा राजद के आधार वोट यादवों के साथ दांगी+कुशवाहा को अपने साथ मानकर चल रहे हैं। सम्राट चौधरी को भाजपा में इतनी तवज्जो देने का जातिगत क्या फायदा यहां मिलता है, यह भी देखा जाएगा। कहा जा रहा है कि भूमिहार वोटरों में कुछ भाजपा का साथ छोड़ेगा। इसके बाद मुस्लिम वोटरों पर राजद का दावा नैसर्गिक रूप से है। तो, देखने वाली बात यहां यह कि जदयू अपनी मेहनत से रविदास, चिराग अपनी मेहनत से पासवान और जीतन राम अपनी भुइयां को कितना समेटकर भाजपा की झोली में डाल पाते हैं।

कांग्रेस की चुप्पी से अभय परेशान
आम आदमी पार्टी समेत इंडी एलायंस के बाकी दलों को बिहार में किसी ने नहीं पूछा तो महागठबंधन के इकलौते राष्ट्रीय दल कांग्रेस ने भी यहां गहरी चुप्पी साध रखी है। औरंगाबाद के मामले में यह चुप्पी और ज्यादा मायने रखती है, क्योंकि यह सीट कांग्रेस निखिल कुमार के लिए चाह रही थी। सीट राजद ने बगैर बात किए अपने पास रख ली तो निखिल कुमार गहरी खामोशी लिए यहां से हट गए। कांग्रेस यहां से बुझी-बुझी नहीं होती तो राजद के अभय कुशवाहा को फायदा मिलता। लेकिन, अबतक तो यह होता नहीं दिख रहा।

छह में से दो सीट राजद की, दो कांग्रेस के पास
कांग्रेस की चुप्पी का मतलब इससे भी समझा जा सकता है कि औरंगाबाद लोकसभा क्षेत्र की छह विधानसभा सीटों पर महागठबंधन के चार विधायक हैं- दो राजद से, दो कांग्रेस से। औरंगाबाद और कुटुंबा से कांग्रेस विधायक हैं, लेकिन यह राष्ट्रीय पार्टी यहां राजद के रवैये से खार खाए बैठी है। औरंगाबाद जिले का रफीगंज और गया जिले का गुरुआ राजद विधानसभा सीट राजद के खाते में है और वह यहां पूरी ताकत झोंके हुए है। बाकी दो विधानसभा क्षेत्र इमामगंज और टिकारी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के घटक हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा- सेक्युलर के पास है। इमामगंज विधायक और हम-से के प्रमुख जीतन राम मांझी गया लोकसभा सीट से प्रत्याशी हैं। वह हम-से की दोनों विधानसभा सीटों पर एनडीए को बढ़त दिलाने का प्रयास कर रहे हैं।

नाराजगी का निदान कितना हुआ?
राजद समर्थकों का कहना है कि लगातार तीन बार सांसद रह चुके सुशील सिंह के खिलाफ लोगों में जो नाराजगी है, उसका फायदा उसे मिलेगा। वह इस नाराजगी को हवा देने के लिए प्रयासरत भी है। राजपूतों को छोड़, बाकी जातियों के बीच नाराजगी वाले फैक्टर पर राजद की मेहनत दिख भी रही है। इसके अलावा, भाजपा नेता रामाधार सिंह पटना के अस्पताल में भर्ती होकर भी अपनी नाराजगी न केवल क्षेत्र तक पहुंचा रहे हैं, बल्कि मतदान के पहले तक सुशील सिंह के खिलाफ पारंपरिक मोर्चाबंदी किए हुए हैं। अब देखना होगा कि सुशील सिंह नाराजगी के इन फैक्टरों पर कितना काम कर सके हैं या मतदान के पहले तक कर पाते हैं।

नाराजगी का एक फैक्टर पीएम मोदी दूर कर गए
औरंगाबाद लोकसभा क्षेत्र के एक बड़े हिस्से में किसान पटवन के लिए परेशान रहते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मंगलवार को गया आए तो औरंगाबाद के इस घाव पर मरहम-पट्टी कर गए। इस घाव का समाधान उत्तरी कोयल प्रोजेक्ट का पूरा नहीं होना है। प्रधानमंत्री ने मंच से लोगों के इस घाव पर दवा लगाई और कहा कि मोदी सरकार ने वापस इस प्रोजेक्ट को शुरू कराया है और अब इसका फायदा मिलने का समय आ रहा है। दरअसल, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडल समिति ने अक्टूबर 2023 में उत्तरी कोयल जलाशय परियोजना के शेष कार्यों को संशोधित 2,430.76 करोड़ रुपये (केंद्रीय हिस्सा: 1,836.41 करोड़ रुपये) की लागत से पूरा करने के लिए जल शक्ति मंत्रालय के जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण विभाग के एक प्रस्ताव को अपनी मंजूरी दे दी थी। अगस्त, 2017 में पहले स्वीकृत लागत 1,622.27 करोड़ रुपये (केंद्रीय हिस्सा: 1,378.60 करोड़ रुपये) की स्वीकृति दी गई थी। यह परियोजना 1993 से बंद थी। इस प्रोजेक्ट के पूरा होने पर झारखंड और बिहार के चार सूखाग्रस्त जिलों में 42,301 हेक्टेयर क्षेत्र को अतिरिक्त वार्षिक सिंचाई मिल सकेगी। औरंगाबाद में अभी एक बड़ा हिस्सा बारिश पर निर्भर है, वैकल्पिक सिंचाई के लिए सोन कैनाल जैसा कोई नहर नहीं है।

पिछला गणित कितना काम आएगा
पिछली बार भी यहां से भाजपा प्रत्याशी सुशील कुमार सिंह ने जीत दर्ज की थी। यह तीसरी बार लगातार था। 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्हें 4.27 लाख वोट मिले थे, जबकि तत्कालीन महागठबंधन खेमे के हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा के उपेंद्र प्रसाद को 3.57 लाख मत प्राप्त हुए थे। इस बार हम-से एनडीए में भाजपा के साथ है। इस सीट पर बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी नरेश यादव ने 33 हजार वोट काटे थे, जबकि 22 हजार से ज्यादा वोटरों ने NOTA का बटन दबाया था।