चैत्र नवरात्रि का पर्व चल रहा है और नवरात्रि के नौ दिनों में मां दुर्गा के अलग-अलग स्वरूपों की उपासना की जाती है. नवरात्रि का आज दूसरा दिन है और आज के दिन मां जगत जननी ब्रह्मचारिणी की पूजा आराधना करने का विधान है. इतना ही नहीं इसके अलावा नवरात्रि की अष्टमी और नवमी तिथि भी काफी महत्वपूर्ण मानी जाती है. नवरात्रि के अंतिम दिन हवन आदि करने के बाद कन्या पूजन किया जाता है. तो चलिए आज हम जानते है अयोध्या के पंडित जी से कि नवरात्रि में कब है अष्टमी और नवमी तिथि, क्या है अष्टमी तिथि का शुभ मुहूर्त, कन्याओं को भोजन करते समय कौन सी सावधानियां बरतनी चाहिए.
चैत्र नवरात्रि की अष्टमी तिथि को महा अष्टमी कहा जाता है. हिंदू पंचांग के मुताबिक नवरात्रि की अष्टमी तिथि का प्रारंभ 15 अप्रैल को दोपहर 12 मिनट से होगा और इसका समापन 16 अप्रैल को 1:22 पर होगा. उदय तिथि के मुताबिक 16 अप्रैल को महा अष्टमी नवरात्रि का है, इसके अलावा 16 अप्रैल को ही कन्या पूजन किया जाएगा जबकि 17 अप्रैल को नवमी तिथि है. इस तिथि के दिन धार्मिक ग्रंथो के मुताबिक कन्या पूजन किया जाता है. कन्या पूजन करने के साथ-साथ बटुक की पूजा की जाती है. कन्या पूजन के दौरान कन्याओं को खाना खिलाया जाता है. साथ ही समर्थ अनुसार उन्हें दान दक्षिणा दिया जाता है. कन्या पूजन के दौरान कन्याओं को लाल कपड़े में थोड़े से चावल के साथ एक रुपए का सिक्का अवश्य देना चाहिए. ऐसा करने से कहा जाता है माता लक्ष्मी का वास आपके घर में हमेशा रहता है.
कब है महाअष्टमी
चैत्र नवरात्रि की अष्टमी तिथि को महाअष्टमी कहा जाता है। पंचांग के अनुसार, नवरात्री अष्टमी तिथि का आरंभ 15 अप्रैल को दोपहर में 12 बजकर 12 मिनट से होगा और इसका समापन 16 अप्रैल को दोपहर 1 बजकर 22 मिनट पर होगा। उदया तिथि में अष्टमी तिथि 16 अप्रैल को होने के कारण महाअष्टमी, कन्या पूजन 16 अप्रैल को किया जाएगा। जबकि नवमी तिथि 17 अप्रैल को है।
कन्या के साथ बटुक की भी पूजा
शास्त्रों के अनुसार, कन्या पूजन के दौरान बटुक की पूजा भी की जाती है। कन्या पूजन के दौरान कन्याओं को खाना आदि खिलाने के साथ साथ उन्हें उपहार आदि भी दिया जाता है। साथ ही बटुक की पूजा भी जाती है। कन्या पूजन के दौरान कन्याओं को लाल कपड़े में थोड़े से चावलों के साथ एक रुपए का सिक्का अवश्य दें। ऐसा करने से मां लक्ष्मी का वास आपके घर में हमेशा रहेगा।
2 से 10 साल की कन्याओं का महत्व
शास्त्रों के अनुसार, कन्या पूजन में 2 से 10 साल तक कन्याओं का विशेष महत्व बताया गया है। दो वर्ष की कन्या को कुमारी कहा जाता है। तीन वर्ष की कन्या को त्रिमूर्ति, चार वर्ष की कन्या को कल्याणी, पांच वर्ष की कन्या को रोहिणी, छह वर्ष की कन्या को माता कालिका, सात वर्ष की कन्या को चंडिका, आठ वर्ष की कन्या को शांभवी और नौ वर्ष की कन्या को देवी दुर्गा और दस वर्ष की कन्या को सुभद्रा कहा जाता है। सभी कन्याओं का होना ऊर्जा का प्रतीक है। 9 कन्याओं के साथ एक बटुक को जरूर बिठाएं। ऐसा करने से घर में मां दुर्गा का वास होता है और परिवार में सुख समृद्धि बनी रहती है।
कन्या पूजन में रखें इन बातों का विशेष ख्याल
कन्या पूजन करने से एक दिन पहले कन्याओं को आमंत्रण जरुर दें।
साथ ही कन्या पूजन से पहले घर की अच्छे से साफ सफाई जरूर करें।
जब कन्याएं घर पर आएं तो सबसे पहले उनके पैर दूध और जल मिलाकर धौएं।
इसके बाद कुमकुम का टीका लगाएं और उन्हें पूर्व दिशा की तरफ मुख करके उन्हें स्वच्छ आसन पर बैठाएं।