पटना
बिहार में वर्ष 1984 में हुये लोकसभा चुनाव में सर्वाधिक 48 सीट जीतने वाली कांग्रेस पिछले चार दशक से दहाई अंक पार करने के लिये तरस गयी है। वर्ष 1984 में कांग्रेस का प्रदर्शन बिहार में सबसे बेहतर साबित हुआ। इस वर्ष कांग्रेस ने 54 सीट पर चुनाव लड़ा। श्रीमती इंदिरा गांधी की हत्या से उपजी सहानुभूति की लहर में बिहार में कांग्रेस के 48 प्रत्याशी निर्वाचित हुये। वहीं, वर्ष 1977 में आपातकाल के बाद हुये आम चुनाव में बिहार में काग्रेस का सबसे खराब प्रदर्शन रहा। कांग्रेस को सभी 54 सीटों पर हार का सामना करना पड़ा। जनता पार्टी की लहर में बिहार की 54 सीट में भारतीय लोक दल (बीएलडी) को 52 सीट मिली। इस चुनाव में जनता पार्टी के प्रत्याशी ने बीएलडी के बैनर तले चुनाव लड़ा था। झारखंड पार्टी एवं निर्दलीय को एक-एक सीट पर सफलता मिली थी।
देश के सबसे पुराने और प्रमुख राजनीतिक दलों में से एक कांग्रेस का कभी बिहार की सत्ता में वर्चस्व था। बिहार में कांग्रेस का एकछत्र राज था। बिहार में कांग्रेस का जनाधार 1989 के भागलपुर कौमी दंगे के बाद लगातार गिरता ही गया। बिहार में क्षेत्रीय पार्टियों के दबाव में अपने अस्तित्व को लेकर कांग्रेस जद्दोजहद कर रही है। इससे पहले हुए चुनाव में कांग्रेस का सितारा बुलंदी पर रहा है। कांग्रेस बदलते समय के साथ लोगों की आकांक्षाओं को पहचानने में कांग्रेस चूक गई और लोकसभा 2019 चुनाव में वह महज एक सीट पर सिमटकर रह गयी।
पिछले कुछ दशको से कांग्रेस भले ही अपने खोए वजूद को तलाशने के लिए बिहार में गठबंधन का सहारा लेती रही है, लेकिन मतदाताओं की कसौटी पर खरी नहीं उतर रही है।कांग्रेस का बिहार में ग्राफ गिरता जा रहा है। 1984 के बाद से कांग्रेस बिहार के लोकसभा चुनाव में अबतक दहाई अंक में भी नहीं पहुंच पायी है। चार दशक से कांग्रेस बिहार में अपना वजूद बचाने की जद्दोजहद कर रही है।
वर्ष 1952 के पहले आम चुनाव में कांग्रेस ने बिहार में 54 सीट में से 45 सीट पर जीत हासिल की। इसके बाद दूसरे आम चुनाव 1957 में कांग्रेस को 41 सीट मिली। वर्ष 1962 में कांग्रेस ने 39,1967 में 34,1971 में 39 सीट पर जीत हासिल की।
वर्ष 1977 में कांग्रेस एक भी संसदीय सीट पर जीत हासिल नहीं कर सकी थी। वर्ष 1980 में कांग्रेस का प्रदर्शन सुधरा । कांग्रेस ने 54 सीट पर चुनाव लड़ा, जिसमें उसे 30 सीट पर जीत मिली। वर्ष 1984 में कांग्रेस का प्रदर्शन बिहार में सबसे बेहतर साबित हुआ। वर्ष 1984 में कांग्रेस ने बाउंस बैक किया और उसके 48 प्रत्याशी निर्वाचित हुये, लेकिन अपनी इस सफलता को कांग्रेस बाद में बरकरार नहीं रख पाई और लगातार धरातल की ओर गिरती गयी।
वर्ष 1989 के आम चुनाव में लालू प्रसाद यादव ने बिहार में अपना सिक्का जमा लिया। मुसलमानों और यादवों के बीच लालू यादव प्रख्यात नेता के रूप में उभरे। उस दौरान ज्यादातर मुसलमान कांग्रेस के समर्थक हुआ करते थे, लेकिन लालू ने वह वोट बैंक तोड़ दिया। दूसरा फैक्टर जिसने लालू के पक्ष में काम किया वह वर्ष 1989 में भागलपुर हिंसा थी। यादव की पार्टी जनता दल ने ने मुसलमान और यादव यानी माई के समीकरण दम पर बिहार शानदार राजनीतिक पारी खेली और बिहार में 32 सीटों पर कब्जा जमा लिया वहीं कांग्रेस 48 से घटकर महज 04 सीट पर सिमट कर रह गयी।
बिहार में 1990 का दशक पिछड़ा वर्ग के उभार के लिये जाना जाता है। इस दशक में जब मंडल राजनीति ने जोर पकड़ी तो कांग्रेस ऊहापोह में रही,न तो वह सवर्णों का खुलकर साथ दे पाई और न ही पिछड़े और दलित समुदाय को साध पाई। इसी दौरान लालू प्रसाद यादव, राम विलास पासवान, नीतीश कुमार जैसे नेताओं के राजनीतिक कद को नया आकार मिला। इस बदलाव के दौर से पहले तक बिहार की सत्ता में कांग्रेस का ही वर्चस्व था, लेकिन बदलते वक्त को शायद पहचानने में कांग्रेस चूक गई। कांग्रेस का जनाधार लगातर घटता चला गया और वर्ष 1991 के आम चुनाव में कांग्रेस महज एक सीट पर सिमट कर रह गयी।कांग्रेस ने मात्र एक सीट बेगूसराय से जीत हासिल की । कांग्रेस की दिग्गज कृष्णा साही बेगूसराय सीट पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) उम्मीदवार ललिता सिंह को पराजित किया।
वर्ष 1996 के आम चुनाव में कांग्रेस ने 54 में दो सीट कटिहार और राजमहल(सु) से जीत हासिल की। कटिहार से तारिक अनवर और राजमहल (सु) से थॉमस हांसदा निर्वाचित हुये। वर्ष 1998 में कांग्रेस ने पांच सीट मधुबनी,कटिहार, बेगूसराय,सिंहभूम (सु) और लोहरदगा(सु) से जीत हासिल की। वर्ष 1999 में कांग्रेस ने चार सीट राजमहल (सु),बेगूसराय, औरंगाबाद और कोडरमा पर अपना कब्जा जमाया। वर्ष 2000 में जब झारखंड का गठन हुआ तो 14 सीटें झारखंड में चली गईं और बिहार की 40 लोकसभा सीटें हो गईं। वर्ष 2004 में कांग्रेस के प्रत्याशियों ने तीन सीट मधुबनी, औरंगाबाद और सासाराम (सु) सीट से जीत हासिल की। इसके बाद वर्ष 2009 में हुये लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने किशनगंज और सासाराम (सु) सीट पर जीत हासिल की।
वर्ष 2009 में कांग्रेस ने अपने दम पर चुनाव लड़ा था, जबकि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) में (भाजपा) और जनता दल यूनाइटेड (जदयू) शामिल थी जबकि चौथा मोर्चा राष्ट्रीय जनता दल (राजद), लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) और समाजवादी पार्टी (सपा) से बना था। भाजपा ने 20, जदयू ने 12, राजद ने 04, कांग्रेस ने दो लोजपा ने शून्य, पर जीत हासिल की। इस चुनाव में दो निर्दलीय उम्मीदवार के सिर जीत का सेहरा सजा। बांका से दिग्विजय सिंह और सीवान से ओमप्रकाश यादव ने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में जीत हासिल की।
वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने राजद और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के साथ तालमेल कर चुनाव लड़ा था। कांग्रेस ने 12, राजद ने 27 और राकांपा ने एक सीट पर अपने प्रत्याशी उतारे थे। कांग्रेस ने 02 सीट, राजद ने चार और राकांपा ने एक सीट पर सफलता हासिल की थी। कांग्रेस ने किशनगंज और सुपौल सीट से जीत हासिल की थी। वहीं राजग के घटक दल में भाजपा, लोजपा और राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) शामिल थी। भाजपा ने 30 सीट पर चुनाव लड़ा जिसमें उसे 22 सीट, लोजपा ने 07 में से 06 सीट और तीन सीटों पर चुनाव लड़ने वाली रालोसपा ने तीनों जीत कर शत-प्रतिशत सफलता पायी थी। इस चुनाव में जदयू ने राजग से अलग होकर 38 सीट पर चुनाव लडृा लेकिन उसे दो सीट पर ही जीत मिली। इस चुनाव में जदयू की सहयोगी रही भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) ने दो सीट बांका और बेगूसराय से चुनाव लड़ा और उसे भी हार मिली।
वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने महागठबंधन के घटक दल के रूप में चुनाव लड़ा था। महागठबंधन में सीटों में तालमेल के तहत कांग्रेस को नौ, राजद को 20, उपेन्द्र कुश्वाहा की पार्टी (रालोसपा) को पांच, मुकेश सहनी की पार्टी विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) को तीन और जीतनराम मांझी की पार्टी हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) को तीन सीट मिली थी। राजद ने अपने कोटे से एक सीट आरा भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी- लेनिनवादी) को दी थी। कांग्रेस को किशनगंज को छोड़ सभी सीटों पर उसके उम्मीदवारों को हार का सामना करना पड़ा।
किशनगंज से कांग्रेस के टिकट पर पूर्व मंत्री मोहम्मद हुसैन आजाद के पुत्र और किशनगंज के निवर्तमान विधायक डॉ. मोहम्मद जावेद चुनाव ने चुनाव लड़ा। उनकी टक्कर (जदयू) के मोहम्मद अशरफ से हुयी। डॉ जावेद ने मोहम्मद अशरफ को कड़े मुकाबले में 35 हजार मतो के अंतर से पराजित किया।महागठबंधन का नेतृत्व कर रहे राजद के हिस्से कोई सीट नहीं आई।कांग्रेस के अलावा महागठबंधन का कोई भी घटक दल सीट नहीं जीत पाया। किशनगंज एकमात्र सीट है जहां महागठबंधन के प्रत्याशी ने जीत हासिल की थी।
बिहार लोकसभा चुनाव 2024 के लिये इंडियन नेशनल डेमोक्रेटिक इंक्लूसिव अलायंस (इंडी गठबंधन) के घटक दलों के बीच सीटों में तालमेल के तहत कांग्रेस नौ, राष्ट्रीय जनता दल (राजद) 26, और वाम दल पांच सीटों पर चुनाव लडेंगे। कांग्रेस किशनगंज, कटिहार, पश्चिम चंपारण, समस्तीपुर (सु), सासाराम (सु), पटना साहिब, मुजफ्फरपुर, भागलपुर और महाराजगंज सीट से चुनाव लड़ेगी।