नई दिल्ली
राजधानी दिल्ली में अस्पतालों के लचर सिस्टम के चलते एक कैंसर पीड़ित मरीज की जान चली गई। परिजनों का आरोप है कि वह मरीज को लेकर रातभर एम्स, सफदरजंग और जीबी पंत में भटकते रहे लेकिन कहीं भी वेंटिलेटर नहीं मिला। परिवार वालों ने पुलिस कंट्रोल रुम फोन करके भी मदद मांगी लेकिन कोई मदद नहीं मिली। सही समय पर इलाज नहीं मिलने पर मरीज ने दम तोड़ दिया। परिवार का आरोप है आरोप है कि अस्पतालों में वेंटिलेटर होते हैं, लेकिन वह आम मरीजों को नहीं दिए जाते। यह मामला 30 मार्च का है।
पति का इलाज कराने दिल्ली आई थी महिला
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, उत्तराखंड के काशीपुर की रहने वाली सपना शर्मा अपने पति पुनीत शर्मा का इलाज कराने राजधानी आई थीं। पुनीत को मेटास्टेसिस के साथ जीभ के कैंसर का पता चला था। सपना अपने पति को लेकर तीन सरकारी अस्पतालों में गईं, लेकिन कहीं भी उन्हें एडमिशन नहीं मिला। पुनीत शर्मा अपने पीछे पत्नी और चार बच्चों को छोड़ गए हैं। वह उत्तराखंड में एक छोटी सी दुकान चलाते थे।
वेंटिलेटर के लिए तीन अस्पतालों में लगाई दौड़
सपना ने बताया कि पति पुनीत को 16 मार्च को दिल्ली राज्य कैंसर संस्थान (DSCI) अस्पताल में भर्ती कराया गया था। तबीयत बिगड़ने के बाद 28 मार्च को अस्पताल ने मरीज को एम्स या जीबी पंत अस्पताल में रेफर कर दिया, क्योंकि डीएससीआई में आईसीयू उपलब्ध नहीं है। 29 मार्च को परिवार रात करीब आठ बजे पुनित को लेकर एम्स पहुंचे। लेकिन वहां हमें बताया गया कि एम्स में मरीज के लिए वेंटिलेटर नहीं है। इसके बाद मुझे अपने पति को सफदरजंग ले जाने के लिए कहा। सफदरजंग में भी वेंटिलेटर नहीं मिलने के बाद हमें जीबी पंत अस्पताल का दरवाजा खटखटाना पड़ा, लेकिन वहां भी मेरे पति को कोई मदद नहीं मिली। वेंटिलेटर न मिलने की शिकायत पुलिस से भी की गई, लेकिन कोई मदद नहीं मिली।
परिवार के साथ अन्याय हुआ- पत्नी
सपना ने कहा कि लगातार सात घंटे तक मैंने एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल तक दौड़ लगाई। इस दौरान मेरे पति की हालत खराब होती गई और हमने उन्हें वापस डीएससीआई में ले जाने का फैसला किया। 30 मार्च को सुबह 3 बजे पुनीत को डीएससीआई में वापस ले जाया गया। इसी दिन सुबह पांच बजे के आसपास डीएससीआई में पुनित की मृत्यु हो गई। सपना ने कहा, ''एक गरीब परिवार के साथ अन्याय हुआ है, जिनकी जान की कोई कीमत नहीं लगती। यह एक संस्थागत मौत है।''
अस्पताल प्रशासन ने साधी चुप्पी
इस मामले को लेकर जब एम्स, जीबी पंत और दिल्ली स्टेट कैंसर इंस्टिट्यूट प्रशासन से जानकारी मांगी गई तो उन्होंने इस पर कोई भी जानकारी नहीं दी। वहीं, सफदरजंग अस्पताल प्रशासन ने इससे इनकार किया है।