Home राजनीति महाराष्ट्र में कांग्रेस के साथ सीट बंटवारे पर उद्धव ठाकरे की दो...

महाराष्ट्र में कांग्रेस के साथ सीट बंटवारे पर उद्धव ठाकरे की दो टूक, अब 2029 में होगी बात

5

मुंबई

 महाराष्ट्र में कांग्रेस और शिवसेना के बीच सांगली पर फंसे पेंच के बीच शिवसेना (यूबीटी) के प्रमुख उद्धव ठाकरे ने दो टूक कहा कि सीट बंटवारे को लेकर जो भी होना था, वह हो चुका। अब इसमें कुछ नहीं बचा। उनका कहना था कि अब सीट बंटवारे को लेकर गठबंधन के भीतर अगली बातचीत जो भी बात होगी, वह 2029 में ही होगी। विपक्षी गठबंधन की रैली में भाग लेने के लिए दिल्ली पहुंचे ठाकरे ने मीडिया में सीट बंटबारे पर खींचतान पर बोलते हुए कहा कि महाविकास अघाड़ी में सीट बंटवारे को लेकर कोई समस्या नहीं है। इस पर जो होना था, हो चुका। यह उम्मीदवारों के नाम पर मुहर लगने के बाद कांग्रेस को भी समझ आ गया है।

कांग्रेस की ओर से इस मुद्दे पर टॉप लीडरशिप के बीच बात होने के दावे पर उनका कहना था कि राहुल गांधी या मल्लिकार्जुन खरगे से चर्चा करने की कोई जरूरत नहीं है, क्योंकि गठबंधन के भीतर सीट बंटवारे को लेकर आखिरी मौके तक खींचतान चलती रहती है। बीजेपी के साथ तालमेल में भी ऐसा होता था। यही चीज एमवीए में भी लागू होती है।
 

खुलकर बोले उद्धव ठाकरे
शिवसेना (यूबीटी) प्रमुख उद्धव ठाकरे ने पहली बार महा विकास अघाड़ी के भीतर विवादास्पद मुद्दों पर खुलकर बात की। उन्होंने कहा कि सीट बंटवारे की बातचीत के दौरान टकराव आम बात है। हालांकि, अब दो-तीन महीने के विचार-विमर्श के बाद सीट बंटवारे के फार्मूले को लगभग अंतिम रूप दे दिया गया है, इसलिए कांग्रेस नेताओं को एहसास होने लगा है कि उन्हें इसे स्वीकार करना होगा।

सांगली सीट से उठा विवाद
मामला सांगली लोकसभा क्षेत्र का है। यहां पर उद्धव ठाकरे ने चंद्रहर पाटिल को उम्मीदवार घोषणा किया है। कांग्रेस का दावा है कि एमवीए दलों को विश्वास में लिए बिना उद्धव ने एकतरफा फैसला लिया। कांग्रेस इस सीट पर अपना दावा कर रही थी। कांग्रेस यहां से विशाल पाटिल को टिकट देना चाहती थी। अब इस सीट पर फ्रेंडली फाइट होगी।

'कांग्रेस को एहसास'
उद्धव ठाकरे ने कहा, 'सीटों को लेकर अंतिम क्षण तक खींचतान जारी है। हालांकि, जब सीट बंटवारे को अंतिम रूप दिया जाता है, तो हर कोई मिलकर काम करता है। हमारा भी ऐसा ही अनुभव था जब हमने भाजपा के साथ गठबंधन किया था। एमवीए में भी दो से तीन महीने के विचार-विमर्श के बाद सीटों का बंटवारा किया जाता है। ऐसा लगता है कि उन्हें (कांग्रेस नेताओं को) इसका एहसास होने लगा है।'