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विकसित भारत के निर्माण में सबसे बड़ी भूमिका कृषि की होगी : डॉ. पाठक

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रायपुर

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के महानिदेशक एवं सचिव कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा, भारत सरकार डॉ. हिमांशु पाठक ने कहा है कि विगत 50 वर्षां में भारत में कृषि क्षेत्र का तीव्र विकास हुआ है और वर्ष 1991 तक विदेशों से अनाज का आयात करने वाला देश आज अन्य देशों को 53 बिलियन यू.एस. डॉलर मूल्य के कृषि उत्पादों का निर्यात कर रहा है। उन्होंने कहा कि आज भारत में 330 मिट्रिक टन अनाज का उत्पादन हो रहा है और उद्यानिकी फसलों का उत्पादन 550 मिट्रिक टन हो गया है। दूध उत्पादन के क्षेत्र में भारत पूरे विश्व में अग्रणी स्थान पर है। देश की कृषि उत्पादकता वर्ष 1970 में 0.7 मिट्रिक प्रति हेक्टेयर थी जो आज बढ़कर 2.4 मिट्रिक टन प्रति हेक्टेयर हो गई है।

डॉ. पाठक ने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के वर्ष 2047 तक विकसित भारत निर्माण के संकल्प को पूरा करने में सबसे बड़ी भूमिका कृषि की ही होगी। डॉ. पाठक आज यहां इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के प्राध्यापकों, वैज्ञानिकों तथा विद्यार्थियों को संबोधित कर रहे थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. गिरीश चंदेल ने की। डॉ. पाठक ने इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय द्वारा संचालित अनुसंधान एवं विकास गतिविधियों का जायजा भी लिया। उन्होंने इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय में अंतर्राष्ट्रीय छात्रावास एवं शबरी कन्या छात्रावास का लोकार्पण भी किया।

डॉ. पाठक ने भारत में कृषि शिक्षा के परिदृश्य पर प्रकाश डालते हुए कहा कि देश में कृषि शिक्षा तेजी से विस्तार हो रहा है और आज 73 शासकीय कृषि विश्वविद्यालयों के साथ ही 157 निजी कृषि विश्वविद्यालय भी संचालित हैं। विगत पांच वर्षां में कृषि विश्वविद्यालयों में विद्यार्थियों की संख्या लगभग दो गुनी हो गई है। अनेक नये कृषि महाविद्यालयों की शुरूआत की गई है, नये पाठ्यक्रम खोले गये हैं तथा सीटों में वृद्धि की गई है। डॉ. पाठक ने कहा कि आज कृषि शिक्षा के क्षेत्र में वर्चुअल क्लासरूम, वृह्द मुक्त ऑनलाईन पाठ्यक्रम (मूक) तथा आर्टिफिशियल इंटेलिजेन्स जैसी आधुनिक सुविधाओं का उपयोग भी किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि कृषि क्षेत्र में रोजगार एवं व्यवसाय के बड़ते अवसरों को देखते हुए कृषि पाठ्यक्रमों में विद्यार्थियों की रूचि लगातार बढ़ रही है। उन्होंने कहा कि कृषि शिक्षा के सामने अनेक चुनौतियाँ भी हैं जिन्हें नवीन राष्ट्रीय शिक्षा नीति के माध्यम से दूर करने का प्रयास किया जा रहा है।