Home राज्यों से उत्तर प्रदेश इंडिया समूह का प्रमुख घटक दल सपा पीडीए फार्मूले के साथ आर...

इंडिया समूह का प्रमुख घटक दल सपा पीडीए फार्मूले के साथ आर पार की लड़ाई के मूड में दिखा

8

इटावा
इंडिया समूह का प्रमुख घटक दल समाजवादी पार्टी अपने प्रमुख जनाधार वाले केंद्र उत्तर प्रदेश के यादव लैंड में पिछड़ा दलित अल्पसंख्यक (पीडीए) फार्मूले के साथ आर पार की लड़ाई के मूड में दिख रहा है। भारतीय जनता पार्टी (BJP) हिंदुत्व और विकास के एजेंडे के साथ प्रदेश की सभी 80 लोकसभा सीटों पर जीत की फिराक में है मगर सपा के प्रभुत्व वाले इटावा,मैनपुरी, एटा, फिरोजाबाद, फरुर्खाबाद और कन्नौज आदि संसदीय सीटों पर उसे तगड़ी टक्कर मिलने की संभावना है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यादव लैंड समाजवादी पार्टी का प्रमुख आधार स्तंभ है जिस पर 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद भाजपा की सेंधमारी शुरु हो चुकी है। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव का दावा है कि वह पीडीए फार्मूले के तहत एनडीए गठबंधन के उम्मीदवारों को पटखनी देंगे।    

PDA फार्मूले के तहत परचम फहराना चाहती समाजवादी
भाजपा यादव लैंड की इन सीटों पर भगवा फहराने का सपना देखे हुए है वही दूसरी ओर सपा यादव लैंड की इन सीटों पर पीडीए फार्मूले के तहत समाजवादी परचम फहराना चाहती है । सपा के राष्ट्रीय महासचिव शिवपाल यादव दावा करते हैं कि यूपी की सभी 80 लोकसभा सीटों पर इंडिया गठबंधन के ही उम्मीदवार जीतेंगे मगर उनका यह दावा चुनावी ज्यादा लगता है। ऐसा ही दावा पूर्व केंद्रीय राज्य मंत्री और इटावा से भाजपा सांसद प्रो. रामशंकर कठेरिया ने भी किया है कि सभी 80 सीटों पर सिफर् भगवा फरचम फहरेगा। इटावा संसदीय सीट की मोदी राज के प्रभावी होने के साथ ही साल 2014 में अशोक दोहरे के संसद बनने के बाद भाजपा के खाते में बरकरार बनी हुई है। 2014 के संसदीय चुनाव में अशोक दोहरे ने इस सीट पर जीत हासिल की तो 2019 के संसदीय चुनाव में प्रो.रामशंकर कठेरिया जीत हासिल कर चुके है।      

मैनपुरी संसदीय सीट सपा के लिए आधार स्तंभ की श्रेणी
2024 के संसदीय चुनाव के लिए भाजपा ने एक बार फिर से प्रो. कठेरिया को इटावा संसदीय सीट से चुनाव मैदान में उतारा है जबकि सपा ने अभी तक अपना उम्मीदवार घोषित नहीं किया है। 2009 में समाजवादी पार्टी से प्रेमदास कठेरिया इटावा संसदीय सीट से निर्वाचित हुए थे। उसके बाद से लगातार भाजपा का भगवा इटावा संसदीय सीट पर फहरा रहा है। मैनपुरी संसदीय सीट भी इटावा की ही तरह समाजवादी पार्टी के लिए प्रमुख आधार स्तंभ की श्रेणी में मानी जाती है लेकिन इस सीट पर मोदी लहर का कोई असर होता हुआ नहीं दिखाई दे रहा है,बेशक यादव लैंड की अन्य सीटों पर भगवा फहरा रहा हो लेकिन सपा के इस किले को मोदी राज में भी हिलाया नहीं जा सका है।

इंडिया गठबंधन अपने पीडीए एजेंडे को कामयाब बनने के लिए ऐसे उम्मीदवार उतारने में जुटी हुई है जिससे एनडीए गठबंधन के उम्मीदवारों को पटखनी दी जाए। इसी कड़ी में एटा से समाजवादी पार्टी की ओर से पिछड़ी जाति से ताल्लुक रखने वाले देवेश शाक्य को चुनाव मैदान में उतारा गया है। फरुर्खाबाद संसदीय सीट भी अन्य सीटों के मुकाबले यादव लैंड की महत्वपूर्ण सीटों में से एक मानी जा रही है। इस सीट पर जहां भाजपा की ओर से मुकेश राजपूत को एक बार फिर से टिकट दिया गया है वही दूसरी ओर सपा ने डॉ. नवल किशोर शाक्य को टिकट दिया है। नवल किशोर शाक्य के बहाने सपा पीडीए फार्मूले का इस्तेमाल करके इस सीट पर कामयाबी हासिल करने का मंसूबा पाले हुए हैं।        

भाजपा के मुकेश राजपूत को 2014 में पहली दफा इस सीट पर चुनाव मैदान में उतर गया था जिसके बाद से उनका लगातार कामयाबी दर कामयाबी हासिल हो रही है। 2019 में भी वह दूसरी बार जीत हासिल कर चुके हैं और अब की दफा 2024 में तीसरी बार जीत के लिए उनका सपना है। सपा साल 2004 में चंद्रभूषण सिंह के जरिए इस सीट पर जीत हासिल कर पाई थी उसके बाद से लगातार सपा इस सीट से पिछड़ती चली जा रही है। समाजवादी जननायक डॉ.राम मनोहर लोहिया की कर्मभूमि माने जाने वाली इस सीट का राजनीतिक तापमान बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। फरुर्खाबाद सीट की तरह ही कन्नौज सीट भी समाजवादी जननायक डॉक्टर राम मनोहर लोहिया की कर्मभूमि रही है। इस सीट से फिलहाल भाजपा के सुब्रत पाठक सांसद हैं और दूसरी दफा उनको एक बार फिर से चुनाव मैदान में उतार दिया गया है। सपा ने अभी इस सीट के लिए कोई उम्मीदवार घोषित नहीं किया है।      

2019 के चुनाव में सपा प्रमुख अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव सुब्रत पाठक के मुकाबले पराजित हो चुकी है। ऐसी संभावनाएं जताई जा रही है कि सपा प्रमुख अखिलेश यादव इस सीट से चुनाव लड़ सकते हैं क्योंकि वह ऐसा कई दफा बोल चुके हैं लेकिन अभी जब तक अधिकृत तौर पर उम्मीदवार की घोषणा न की जाए तब तक कुछ भी कहना जल्दबाजी ही माना जाएगा। 2000 में नेता जी मुलायम सिंह यादव ने जब इस सीट को छोड़ा तब उनके बेटे अखिलेश यादव चुनाव मैदान में उतरे उसके बाद साल 2019 तक इस सीट पर समाजवादियों का कब्जा रहा।