गोंडा
उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले की एक अदालत ने नोबेल पुरस्कार विजेता समाजसेवी और 'बचपन बचाओ आंदोलन' के संस्थापक कैलाश सत्यार्थी पर करीब 20 साल पहले हुए हमले के मामले में दो अभियुक्तों को दोषी करार देते हुए एक साल के सदाचरण की परिवीक्षा (Probation) पर रिहा करने का आदेश दिया है। सत्यार्थी ने अभियुक्तों को दोषी करार दिए जाने पर खुशी जताते हुए 'एक्स' पर लिखा कि 20 साल की लंबी, अपमानजनक और महंगी कानूनी लड़ाई के बाद आज कुख्यात सर्कस के मालिक और प्रबंधक को गोंडा की अदालत ने दोषी ठहराया।
सहायक जिला शासकीय अधिवक्ता (फौजदारी) अवनीश धर द्विवेदी ने गुरुवार को यहां बताया कि जून 2004 में जिले के कर्नलगंज कस्बे में संचालित ग्रेट रोमन सर्कस के मालिक रजा मोहम्मद खान और प्रबंधक शफी खान उर्फ शरीफुद्दीन के खिलाफ 15 जून 2004 को 'बचपन बचाओ आंदोलन' के संस्थापक कैलाश सत्यार्थी, उनके पुत्र भुवन और सहयोगियों, रमाकांत राय तथा राकेश सिंह पर जान से मारने की नीयत से हमला करने के आरोप में मुकदमा दर्ज किया गया था। उनके मुताबिक बंधुआ मजदूरी प्रणाली (उन्मूलन) अधिनियम की धाराएं भी मुकदमे में जोड़ी गई थीं।
द्विवेदी ने बताया कि अभियुक्तों पर आरोप था कि उन्होंने अपने सर्कस में काम करने वाली नेपाली और पूर्वोत्तर राज्यों की कुल 11 लड़कियों को छुड़ाने के लिए छापा मारने पहुंची स्थानीय पुलिस के साथ आए कैलाश सत्यार्थी और उनके सहयोगियों पर जान से मारने की नीयत से हमला किया था। उनके अनुसार स्थानीय पुलिस ने विवेचना के बाद आरोप पत्र न्यायालय भेजा था। द्विवेदी ने बताया कि अपर सत्र न्यायाधीश/विशेष न्यायाधीश (गैंगस्टर कोर्ट) राजेश नारायण मणि त्रिपाठी ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद बुधवार को दोनों अभियुक्तों को दोषी करार दिया था।
सजा पर बहस के दौरान बचाव पक्ष के अधिवक्ता ने दलील दी कि अभियुक्तगण अब बुजुर्ग हो चुके हैं। उनका सर्कस भी काफी पहले बंद हो चुका है। इससे पहले उनके खिलाफ कोई आपराधिक मुकदमा भी दर्ज नहीं था इसलिए उन्हें अच्छे चाल-चलन के मद्देनजर रिहा कर दिया जाए। सहायक जिला शासकीय अधिवक्ता ने बताया कि इस पर न्यायाधीश ने दोनों अभियुक्तों को एक साल के प्रोबेशन यानी कि सदाचरण की परिवीक्षा पर इस शर्त पर रिहा करने का निर्देश दिया कि वे इस दौरान अच्छा आचरण बनाए रखेंगे, अन्य कोई अपराध नहीं करेंगे।
अदालत ने यह भी कहा कि अभियुक्त वारदात के दौरान चोटिल हुए हर व्यक्ति को पांच-पांच हजार रुपए (कुल 20 हजार) की धनराशि प्रतिपूर्ति के रूप में चुकाएंगे। सत्यार्थी और उनके सहयोगियों पर हुए हमले की घटना राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में थी। आरोप था कि सत्यार्थी एवं उनके साथियों को पुलिस की मौजूदगी में सरिया और डंडों से पीटा गया था। प्रत्यक्षदर्शियों की मानें तो सर्कस के शेर को उन पर छोड़ने के लिए पिंजरा तक खोल दिया गया था, मगर मौके पर मौजूद एक अधिकारी ने उसे किसी तरह बंद कर दिया था। इस दौरान बाल श्रम करने वाली नेपाल, दार्जिलिंग एवं अन्य स्थानों से लाई गई 11 किशोरियों को मुक्त कराया गया था।
सत्यार्थी ने अदालत द्वारा अभियुक्तों को दोषी करार दिये जाने पर खुशी जताते हुए 'एक्स' पर लिखा, ‘‘2004 में मेरे बेटे भुवन, हमारे एक कार्यकर्ता गोविंद और गुलाम बनाई गई नेपाली लड़कियों के माता-पिता और मुझ पर क्रूरतापूर्वक हमला किया गया। हम बाल-बाल बच गए। कुछ अजनबियों ने हमें खून से लथपथ हालत से उठाकर अस्पताल पहुंचाया।'' उन्होंने कहा, ''20 साल की लंबी, अपमानजनक और महंगी कानूनी लड़ाई के बाद आज कुख्यात सर्कस के मालिक और प्रबंधक को गोंडा की अदालत ने दोषी ठहराया।'' कैलाश सत्यार्थी को बच्चों और युवाओं के दमन के खिलाफ संघर्ष और सभी बच्चों के शिक्षा के अधिकार के लिए काम करने की दिशा में उत्कृष्ट योगदान के लिये 2014 में मलाला यूसुफजई के साथ संयुक्त रूप से नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।