नई दिल्ली
3 महीने से चलते आ रहे किसान आंदोलन में अब एक अलग मोड़ आ गया है. लगातार फेल होती बातचीत के बीच अब किसानों ने केंद्र सरकार को तेवर दिखाने शुरू कर दिए। केंद्र सरकार ने कई बार अलग-अलग प्रस्ताव देकर किसानों को समझाने की कोशिश की लेकिन बात नहीं बन सकी. अब हालात ये हैं किसान लगातार दिल्ली कूच करने की तैयारियों में लगे हुए हैं औऱ सरकार उनको रोकने में, हरियाणा में भी कुछ इसी तरह का मंजर देखने को मिला।
मास्क, बुलडोजर और भारी मशीनों के साथ हैं किसान
किसान अपने साथ गैस मास्क, बुलडोजर और भारी मशीनें लेकर आये हैं।
हरियाणा पुलिस ने अर्थमूवर मशीनों और बुलडोजरों के मालिकों को चेतावनी देते हुए कहा है कि आपको आपराधिक रूप से उत्तरदायी ठहराया जा सकता है। पुलिस ने कहा कि इन मशीनों का इस्तेमाल सुरक्षा बलों को नुकसान पहुंचाने के लिए किया जाएगा तो इन्हें जब्त किया जा सकता है।
आम लोगों को परेशानी
पंजाब और हरियाणा के किसानों का एक बड़ा जमावड़ा हरियाणा की सीमाओं पर जारी है। वे केंद्र सरकार के प्रस्ताव को खारिज करने के बाद अपनी मांगों को लेकर अपना विरोध दर्ज कराने के लिए राष्ट्रीय राजधानी की ओर जाने के लिए तैयार हैं। ऐसे में प्रशासन के साथ आम लोगों के लिए आने वाले दिनों में बॉर्डर पार करना आसान नहीं होने वाला है।
अलग है किसान आंदोलन 2.0
हालांकि राहत की बात ये हैं कि किसानों की ताकत और तादाद के साथ मांगें भी इस बार पिछले आंदोलन से काफी कम है। 2020-21 के किसान विरोध प्रदर्शन से बिल्कुल अलग है। इस बार प्रदर्शनकारी किसानों की मुख्य मांग सभी खरीफ और रबी फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की कानूनी गारंटी के अलावा 60 साल और उससे अधिक उम्र के किसानों के लिए 10,000 रुपये की पेंशन है।
केंद्र सरकार की ये है मजबूरी
यदि सरकार किसानों की कानून बनाने की मांग को मान लेती है, जिससे उसे गारंटी मिलती है, तो सरकारी खजाने पर सालाना कम से कम 10 लाख करोड़ रुपये का अतिरिक्त खर्च आएगा। विशेष रूप से यह राशि बुनियादी ढांचे के विकास के लिए इस साल अंतरिम बजट में केंद्र सरकार के 11.11 लाख करोड़ रुपये के आवंटन के लगभग बराबर है।