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जीवन में सत्संग का श्रवण मिलने पर ही होगा भाग्योदय : राजीव नयन

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रायपुर

महत्व शब्द का अर्थ हैं विशेषता, विशेषता शब्द का अर्थ हैं विशिष्ट, जब तक किसी व्यक्ति या वस्तु का महत्व समझ में नहीं आता तब तक न उसके प्रति श्रद्धा होती है ना ही विश्वास होता है और ना ही प्रेम होता है। भागवत की कथा का महत्व एक ही है धुंधकारी अगर भागवत कथा का श्रवण करता है तो सहज ही उसका मोक्ष हो जाता है। जब धुंधकारी जैसे पापीं का मोक्ष हो सकता है तो निश्चित है कि आपका मोक्ष भी सुनिश्चित है, लेकिन आप इतने बड़े पापी नहीं हो, लेकिन थोड़े बहुत हो लेकिन वह चल जाएगा। श्रीमद् भागवत में लिखा है कि मनुष्य का भाग्योदय कब होता है। आप समझते हैं कि पुत्र नहीं है और उसकी प्राप्ति हो गई तो आपका भाग्योदय हो गया, धन नहीं और वह प्राप्त हो गया तो भाग्योदय हो गया, पत्नी नहीं है और वह मिल जाए तो भाग्योदय हो गया। लेकिन श्रीमद् भागवत में लिखा हैं कि भाग्योदय दैन बहुचन समरचितैनु, सत्संग मम चल लभतय शो यदाचि। इसका मतलब जीवन में जब तक सत्संग और उसका श्रवण मिले तो  ही तुम्हारा भाग्योदय होगा।

हिंद स्पोर्टिंग मैदान लाखेनगर में चल रही श्रीमद् भागवत कथा सत्संग के दौरान संत राजीव नयन महाराज ने श्रद्धालुओं को बताया कि आज तुम्हारा भाग्योदय हुआ है इसलिए कि सवा करोड़ पार्थिव शिवलिंग का निर्माण कर रहे है। छत्तीसगढ़ में सबसे पहला अनुष्ठान है, इतने बड़ी संख्या में महिलाओं और बहनों ने पार्थिव शिवलिंग बनाई यह उन्हें उम्मीद नहीं थी। यह भगवत कृपा है और मुझे विश्वास है कि 9 दिन मे सवा करोड़ पार्थिव शिवलिंग की जगह 5 दिन में ही बनकर तैयार हो जाएगा। कुछ लोग तो मशीन की तरह शिवलिंग बना रहे है। जीव का भाग्योदय तब होता है जब जीव परमात्मा से जुड़ जाता है। संसार में सभी अनाथ है, जब तक परमात्मा से नहीं जुड़ते है तब तक आप अनाथ है और जब आप उनसे जुड़ गए तब नाथ हो गए। विश्वामित्र ने कहा था रामजी को दे दो मै सनाथ हो जाऊंगा, तो किसी ने कहा कि रामजी नहीं मिल पाएंगे, जब तक रामजी आपके साथ नहीं होंगे तब तक आप अनाथ है और जब ब्रम्ह साथ हो जाता है तो जीव सनाथ हो जाता है।

राजीव नयन महाराज ने कहा कि जहां लोग भागते हैं हम वहां ठहर जाते है। जब तक हम भगवत में प्रवेश नहीं करेगे तब तक हमें भगवान की प्राप्ति नहीं होगी। जो जन्म का कारण नहीं, जो हमारे पालन का कारण है और जो हमारे संघार्ष का कारण है वह परमात्मा है। ब्राम्हण के रुप में साक्षात ब्रम्हा हमारा सृजन करते है, विष्णु के रुप में वह पालन करता है और शिव के रुप में वह संहार करता है। अन्नवया शब्द का अर्थ है जैसे घट बन गया तो वह मिट्टी है और मिट्टी से घट बन गया तो वह मिट्टी ही रहेगा। स्वराज शब्द का अर्थ है जिसको प्रमाणित करने के लिए किसी भी चीज की आवश्यकता नहीं है वह स्वराज है। सूर्य स्वमेव प्रमाणित है उसको देखने के लिए संसार में किसी भी प्रकार की प्रकाश की आवश्यकता नहीं है। ऐसे ही परमात्मा में प्रमाणित करने के लिए दूसरे किसी प्रमाण की आवश्यकता नहीं है क्योंकि वह साक्षात है। जब वेद व्यास जी ने श्रीमद् भागवत की रचना की तो इस रचनाकार ने किसी भी देवता का नाम भागवत में नहीं लिखा। यदि वो राम, शिव, कृष्णा का नाम लिखते तो सभी भक्त बोलते यह तो हम भक्तों की है। जो सत्य को स्वीकार करते है भागवत ग्रंथ उनका है। भागवत का परम अधिकारी वह है जो जीवन में सत्य को धारण किया है। दुनिया का कोई ऐसा धर्म नहीं है जहां सत्य को स्वीकार न किया जाए। यह स्पष्ट रुप में कहा जा सकता है कि विश्व के तमाम जीव के मात्र उद्धार के लिए वेदव्यास ने इस भागवत को लिखा है।