शिमला
हिमाचल प्रदेश में राज्यसभा का चुनाव निर्विरोध नहीं होगा। विपक्षी दल भाजपा ने बड़ा दांव खेलते हुए राज्यसभा चुनाव के लिए अपना उम्मीदवार उतार दिया है। भाजपा ने कांग्रेस से ही आए हर्ष महाजन को अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया है। उनका मुकाबला कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री अभिषेक मनु सिंघवी से होगा।
राज्यसभा के लिए हर्ष महाजन पर दांव खेलकर भाजपा ने सबको चौंका दिया है। माना जा रहा था कि विधानसभा में कांग्रेस को बहुमत होने के कारण भाजपा उम्मीदवार नहीं देगी। हर्ष महाजन ने वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव से चंद रोज पहले भाजपा का दामन थामा था। हर्ष महाजन कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रहे हैं। वह कांग्रेस सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं। हर्ष महाजन पूर्व मुख्यमंत्री दिवंगत वीरभद्र सिंह के करीबियों में शामिल रहे हैं। वर्तमान में वह भाजपा प्रदेश कोर ग्रुप के भी सदस्य हैं।
हर्ष महाजन को प्रत्याशी बनाकर भाजपा की नजर कांग्रेस के असंतुष्ट विधायकों पर है। भाजपा का मानना है कांग्रेस के कुछ विधायक सरकार से असंतुष्ट चल रहे हैं और सरकार की कार्यशैली पर सवाल भी उठा रहे हैं। कांग्रेस के प्रत्याशी अभिषेक मनु सिंघवी के बाहरी प्रदेश से होने के कारण भाजपा इसे मुद्दा बनाएगी। अभिषेक मनु सिंघवी के राज्यसभा उम्मीदवार बनने से प्रदेश कांग्रेस के उन वरिष्ठ नेताओं को झटका लगा है, जो राज्यसभा में जाने की मंशा पाले हुए थे। ऐसे में भाजपा ने प्रत्याशी उतार कर राज्यसभा चुनाव को बेहद रोचक बना दिया है। यह सीट भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा का राज्यसभा सांसद का कार्यकाल पूरा होने पर खाली हुई है।
27 फरवरी को होगा मतदान
चुनाव आयोग की अधिसूचना के मुताबिक राज्ससभा के लिए नामांकन की आज आखिरी तारीख है। अधिसूचना के मुताबिक नामांकन पत्रों की छंटनी 16 फरवरी को होगी। नाम वापस लेने की अंतिम तिथि 20 फरवरी, मतदान की तिथि मंगलवार 27 फरवरी है। विधानसभा परिसर में पोलिंग सुबह 9 से शाम 4 बजे तक चलेगी और इसी दिन देर शाम तक रिजल्ट घोषित होगा।
कांग्रेस के पक्ष में आंकड़े, भाजपा की नजर कांग्रेस विधायकों के क्रॉस वोटिंग पर
हिमाचल से कांग्रेस उम्मीदवार की जीत तय है। दरअसल हिमाचल प्रदेश में विधानसभा की 68 सीटें हैं। यहां पर कांग्रेस के पास 40 सीटें, भाजपा के पास 25 और तीन निर्दलीय विधायक हैं। इस तरह यहां से राज्यसभा चुनाव के लिए कांग्रेस की जीत तय है। राज्यसभा के चुनाव में विधायक वोट डालते हैं। विधायकों के वोटों से ही हार जीत तय होते हैं। राज्यसभा के चुनाव में एक सीट के लिए 35 वोट चाहिए। कांग्रेस पार्टी के 40 विधायक हैं। वहीं 3 निर्दलीय विधायक भी कांग्रेस को समर्थन दे रहे हैं। जबकि भाजपा के 25 विधायक हैं। इस हिसाब से कांग्रेस उम्मीदवार की जीत निश्चित है। कांग्रेस विधायकों की क्रॉस वोटिंग और निर्दलीय विधायकों के समर्थन से ही भाजपा राज्यसभा चुनाव जीत सकती है।
हिमाचल प्रदेश में तीन दशक बाद बाहरी राज्यसभा उम्मीदवार
लगभग तीन दशक से भी अधिक समय बाद बाहरी राज्य का राजनेता हिमाचल प्रदेश से राज्यसभा जाएगा। हिमाचल प्रदेश में राज्यसभा की एक सीट पर सताधारी कांग्रेस ने अभिषेक मनु सिंघवी को उम्मीदवार बनाया है। अभिषेक मनु सिंघवी कांग्रेस के वरिष्ठ नेता व जाने-माने अधिवक्ता हैं। खास बात यह है कि हिमाचल से 34 साल बाद राज्यसभा में बाहरी राज्य से उम्मीदवार बना है। इससे पहले वर्ष 1990 में कृष्ण लाल शर्मा हिमाचल से राज्यसभा के लिए चयनित हुए थे। उस समय प्रदेश में भाजपा की सरकार थी और शांता कुमार मुख्यमंत्री थे। कृष्ण लाल शर्मा पंजाब के रहने वाले थे। उनसे पहले वर्ष 1978 में जनता पार्टी की सरकार में मोहिंद्र कौर राज्यसभा के लिए निर्वाचित हुई थीं। मोहिद्र कौर भी पंजाब की मूल निवासी थी। पिछले तीन दशक से हिमाचल में किसी भी सताधारी दल ने बाहरी राज्य से किसी भी नेता को राज्यसभा में नहीं भेजा। वर्ष 1992 में भाजपा से महेश्वर सिंह, वर्ष 1994 में कांग्रेस से सुशील बरोंगपा और 1996 में चंद्रेश कुमारी, वर्ष 1998 में हिमाचल विकास कांग्रेस से अनिल शर्मा, वर्ष 2000 में भाजपा से कृपाल परमार, वर्ष 2002 में सुरेश भारद्वाज, वर्ष 2004 में कांग्रेस से आनंद शर्मा, वर्ष 2006 में विपल्लव ठाकुर, वर्ष 2008 में भाजपा से शांता कुमार को राज्यसभा भेजा था। इसके बाद बिमला कश्यप, जगत प्रकाश नड्डा, विप्लव ठाकुर, आनंद शर्मा और जगत प्रकाश नड्डा को राज्यसभा में भेजा। वर्तमान में सिकंदर कुमार और इंदु गोस्वामी राज्यसभा सांसद हैं।
इन नेताओं को भी थी राज्यसभा की आस
हिमाचल प्रदेश से कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेता राज्यसभा जाने की कवायद में जुटे थे। इनमें पूर्व केंद्रीय मंत्री आनंद शर्मा, पूर्व मंत्री कौल सिंह ठाकुर, आशा कुमारी, विपल्लव ठाकुर इत्यादि के नाम चर्चा में थे। अभिषेक मनु सिंघवी के नाम की घोषणा से प्रदेश के कांग्रेस नेताओं को झटका लगा है। इस नाराजगी का आगामी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को नुकसान उठाना पड़ सकता है। माना जाता है कि बाहरी राज्य से राज्यसभा सांसद न तो प्रदेश की आवाज को उठाते हैं और न ही यहां कोई विकास कार्य कराते हैं।