सनातन धर्म में माघ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को षटतिला एकादशी का व्रत रखा जाता है। पंचांग के अनुसार माघ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी 5 फरवरी को शाम 05 बजकर 24 मिनट से शुरू होकर 6 फरवरी को शाम 04 बजकर 07 मिनट तक रहेगी। उदया तिथि के अनुसार 6 फरवरी को का व्रत 6 फरवरी,मंगलवार को रखा जाएगा। इस दिन भगवान विष्णु के निमित्त व्रत-पूजा और तिल दान करने से मनुष्य को सभी सुखों की प्राप्ति होती है।
षटतिला एकादशी का महत्व
शास्त्रों के अनुसार श्रीकृष्ण,युधिष्ठिर को इस एकादशी का महत्व बताते हुए कहते हैं कि हे नृपश्रेष्ठ!माघ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी 'षटतिला' या 'पापहारिणी'के नाम से विख्यात है,जो सब पापों का नाश करने वाली है। इस दिन तिल से बने हुए व्यंजन या तिल से भरा हुआ पात्र दान करने से अंनत पुण्यों की प्राप्ति होती है। पदमपुराण में वर्णित है कि तिलों के बोने पर उनसे जितनी शाखाएं पैदा होती हैं, उतने हजार वर्षों तक दान करने वाला व्यक्ति स्वर्गलोक में प्रतिष्ठित होता है। षटतिला एकादशी का व्रत करने से मनुष्य की आध्यात्मिक उन्नति होती है और सभी प्रकार के पापों से मुक्ति प्राप्त होती है। जितना पुण्य कन्यादान, हजारों वर्षों की तपस्या और स्वर्ण दान से मिलता है, उससे अधिक फल प्राणी को षटतिला एकादशी का व्रत करने से मिलता है। यह व्रत परिवार के विकास में सहायक होता है और मृत्यु के बाद व्रती को विष्णुलोक की प्राप्ति होती है।
पौराणिक कथा
धार्मिक कथाओं के अनुसार प्राचीन काल में पृथ्वी पर एक विधवा ब्राह्मणी रहती थी। वह भगवान विष्णु के प्रति अटूट श्रद्धा रखती थी और भक्ति भाव से उनके सभी व्रत और पूजन किया करती थी, पर वह ब्राह्मणी कभी भी किसी को अन्न दान में नहीं दिया करती थी। एक दिन भगवान विष्णु उस ब्राह्मणी के कल्याण के लिए स्वयं उसके पास भिक्षा के लिए गए, तब उस ब्राह्मणी ने मिट्टी का एक पिंड उठाकर भगवान विष्णु के हाथों में रख दिया। उस पिंड को लेकर भगवान विष्णु अपने धाम, बैकुंठ लौट आए।
कुछ समय के बाद उस ब्राह्मणी की मृत्यु हो गई और वो बैकुंठ धाम पहुंची। वहां उस ब्राह्मणी को एक कुटिया और एक आम का पेड़ मिला। खाली कुटिया को देख वो ब्राह्मणी बहुत निराश हुई और भगवान विष्णु के पास जाकर पूछा कि प्रभु मैने तो पूरे जीवन आपकी पूजा-अर्चना की। पृथ्वी पर मैं एक धर्मपरायण स्त्री थी, फिर क्यों मुझे ये खाली कुटिया क्यों मिली? भगवान विष्णु ने उस ब्राह्मणी को उत्तर दिया कि तुमने अपने जीवन में कभी अन्नदान नहीं किया था, इसलिए ही तुमको ये खाली कुटिया प्राप्त हुई। तब उस ब्राह्मणी को अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने इसका उपाय पूछा। भगवान विष्णु ने बताया कि जब देव कन्याएं आपसे मिलने आए तो आप द्वार तभी खोलना जब वें षटतिला एकादशी के व्रत का विधान बताएं। उस ब्राह्मण स्त्री ने वैसा ही किया और षटतिला एकादशी का व्रत रखा। इस व्रत के प्रभाव से उस ब्राह्मण स्त्री की कुटिया अन्न और धन से भर गई। इसलिए षटतिला एकादशी के दिन अन्न दान करने का बहुत महत्व माना जाता है।