नई दिल्ली
वाराणसी की जिला अदालत ने बुधवार को हिंदुओं के पक्ष में फैसला सुनाते हुए ज्ञानवापी मस्जिद बंद पड़े तहखाने को खोलने और वहां पूजा-अर्चना करने की अनुमति दे दी। इसके बाद बुधवार रात को ही इसका आयोजन भी किया गया। कोर्ट का यह फैसला 22 जनवरी को राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह के ठीक बाद आया है। मुस्लिम पक्ष ने इसका विरोध किया है। उन्होंने फैसले को चुनौती देने के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाने की बात भी कही है।
इतिहास पर नजर डालें तो वाराणसी स्थित ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर विवाद काफी पुराना है। हिंदू पक्ष का दावा है कि बाबरी मस्जिद की तरह ज्ञानवापी को भी मंदिर को तोड़कर ही बनाया गया था। कोर्ट में इस मामले पर सुनवाई चल रही है। राम जन्मभूमि हो और ज्ञानवापी मस्जिद का विवाद, दोनों ही से उत्तर प्रदेश के दिवंगत मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव का संबंध रहा है।
मुलायम सिंह ही ने सील कवाया था ज्ञानवापी तहखाना
ज्ञानवापी मस्जिद के तहखाने में 1993 तक नियमित पूजा और आरती हुआ करती थी। इसे 'व्यास तहखााना' के नाम से भी जाना जाता, जो कि व्यास परिवार के नाम पर रखा गया था। इस परिवार के बारे में कहा जाता है कि इन्होंने करब 200 साल से अधिक समय तक इस तहखाने में पूजा की थी। मुलायम सिंह यादव ने ही दिसंबर 1993 में इस तहखाने में पूजा और आरती बंद करवा दी थी।
टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, शैलेन्द्र व्यास ने अपनी याचिका में दावा किया था कि दिसंबर 1993 में मुलायम सिंह यादव की सरकार ने बिना किसी न्यायिक आदेश के स्टील की बाड़ लगा दी थी। इसके कारण यहां पूजा रुक गई। इस मामले पर मस्जिद समिति की अलग राय है। उनका कहना है कि नंदी की मूर्ति और मस्जिद के वजुखाना के बीच स्थित तहखाने में कभी कोई पूजा नहीं हुई थी।
क्या कहता है इतिहास?
दक्षिण एशियाई अध्ययन में विशेषज्ञता रखने वाले युगेश्वर कौशल के अनुसार, महाराजा जयचंद्र ने लगभग 1170-89 ईस्वी में अपने राज्याभिषेक के बाद इस स्थान पर एक भव्य मंदिर का निर्माण कराया था। मुगल बादशाह औरंगजेब ने 1669 में काशी विश्वेश्वर मंदिर को नष्ट कर दिया था। इसके बाद उसने खंडहरों के ऊपर ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण कराया था। इस पूरे परिसर में चार तहखाने हैं और उनमें से एक आज भी व्यास परिवार के पास है। व्यास परिवार यहां पूजा करता था। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने के बाद मुलायम सिंह यादव ने दिसंबर 1993 में इसे बंद कर दिया था। उन्होंने लॉ एंड ऑर्डर का हवाला दिया था।
मुलायम का रामजन्मभूमि कनेक्शन
मुलायम सिंह यादव अक्टूबर 1990 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। इसी समय विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) ने अयोध्या में रामजन्मभूमि स्थल पर राम मंदिर के निर्माण के लिए एक विशाल कार सेवा का आयोजन किया था। मुलायम सिंह ने 'कार सेवा' को विफल करने के लिए 30 अक्टूबर 1990 को अयोध्या में उत्तर प्रदेश सशस्त्र कांस्टेबुलरी के लगभग 28,000 जवानों को तैनात किया। इसके बाद उन्होंने तंज भरे लहजे में कहा था, ''अयोध्या में परिंदा भी पर नहीं मार सकता है।'' हालांकि, वीएचसपी के स्वयंसेवक ने पुलिस बैरिकेड्स तोड़ दिए। वे विवादित बाबरी मस्जिद स्थल तक पहुंच गए। मस्जिद पर उन्होंने भगवा झंडा लहरा दिया था।
इसके बाद मुलायम सिंह यादव ने कारसेवकों पर गोली चलाने के आदेश दिए। 30 अक्टूबर और 2 नवंबर के बीच पुलिस गोलीबारी में 20 (सरकारी आंकड़े) लोग मारे गए थे। हालांकि, वीएचपी ने दावा किया था कि उसके सैकड़ों स्वयंसेवक पुलिस की गोली के शिकार बने। यह भी कहा जाता है कि स्वयंसेवकों पर हेलीकॉप्टर से भी गोलीबारी की गई थी।
इस घटना के कुछ महीने बाद 1991 में उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव हुए। भाजपा के कल्याण सिंह मुख्यमंत्री बने। 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद को ध्वस्त कर दिया गया। इस घटना के बाद पीवी नरसिम्हा राव की केंद्र सरकार ने उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार को बर्खास्त कर दिया और उत्तर प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया। इसके बाद जब चुनाव हुए तो मुलायम सिंह यादव की सत्ता में वापसी हुई। उन्होंने 1993 में वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद में व्यासजी तहखाने में पूजा बंद करवा दी।