भोपाल.
मध्यप्रदेश देश का इकलौता ऐसा राज्य है जहां हर दो साल में गिद्धों की गिनती होती है। इस बार गिद्धों की गिनती 7 फरवरी को होने जा रही है। सुबह सात बजे एक साथ प्रदेशव्यापी गिनती होगी। वन्य प्राणी शाखा के निर्देश पर प्रदेश में पहली बार गिद्धों की गिनती दो बार होने जा रही है। गिद्धों की पहली गिनती 7 फरवरी को होगी तो दूसरी गिनती अप्रैल माह में होगी। गिद्धों की गिनती के लिए वन विहार पार्क भोपाल को बतौर नोडल एजेंसी बनाया गया है। इसके लिए विभाग वन्यकर्मियों को अभी से डिवीजन स्तर पर प्रशिक्षण देना शुरू कर दिया है।
वन विभाग को उम्मीद है कि इस बार गिद्धों की गिनती में बड़ा इजाफा होने वाला है। गौरतलब है कि 7 फरवरी वर्ष 2022 में जब प्रदेश में गिद्धों की गिनती हुई थी तब प्रदेश में कुल गिद्धों की संख्या 9448 थी। विभाग के अधिकारियों ने बताया कि अब यह आंकड़ा दस हजार के आंकड़े को पार कर जाएगा। प्रदेश के सभी जिलों में गिद्ध पाए जाते है। गिद्धों की प्रजाति को बचाने के लिए वन्य प्राणी शाखा की अगुवाई में भोपाल के केरवा में प्रजनन केंद्र बनाया गया है।
इस बार गिद्धों की गिनती में विभाग तकनीकी की मदद लेने जा रहा है। हालाकि गिनती तो मैनुअल ही होगी। लेकिन गिनती के दौरान वन्यकर्मी गिद्धों के घोंसलों, अंडों, विष्ठा को विभाग के साफ्टवेयर में अपलोड करेंगे। अप्रैल माह में वन विभाग गिद्धों की अंतिम गणना सार्वजनिक करेगा। वन विहार पार्क भोपाल की डायरेक्टर पदमा प्रिया बालाकृष्णनन ने बताया कि गिद्धों की प्रजाति बचाने के लिए विभाग हर संभव प्रयास कर रहा है। ब्रीडिंग सेंटर में एक गिद्ध साल में एक ही अंडा देता है।
गिद्धों की मौत के बाद सरकार एक्शन मोड में
नब्बे के दशक में देश स्तर पर गिद्धों की प्रजाति विलुप्त होने के कगार पर आ गई थी। इसका सबसे बड़ा कारण पशुपालकों द्वारा पशुओं को दर्द से राहत देने के लिए डाइक्लोफिनेक नामक दवा का प्रयोग में लाया जाना बताया गया। पशुओं की मौत के बाद जब गिद्ध इन मांसों का सेवन करते थे तब गिद्धों की मौत की दर में अचानक तेजी से वृद्धि होने लगी। जांच के बाद पाया गया कि गिद्धों के मौत का सबसे बड़ा कारण डाइक्लोफिनेक नामक दवा है। केंद्र सरकार ने वर्ष 2006 में इस दवा के प्रयोग पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया। इसके बाद से ही देश स्तर पर गिद्धों की संख्या में धीरे- धीरे वृद्धि होने लगी।