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अयोध्या में राम मंदिर निर्माण में राजस्थान के लोगों हस्तशिल्पियो और राजस्थानी पत्थर का अभूतपूर्व योगदान रहा 

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जयपुर
अयोध्या में राम मंदिर निर्माण में राजस्थान के लोगों हस्तशिल्पियो और राजस्थानी पत्थर का अभूतपूर्व योगदान रहा है। राम मंदिर के लिए देश भर में सबसे अधिक चंदा राजस्थानियों ने दिया है, वहीं मंदिर निर्माण में राजस्थान के भरतपुर जिले की बंसी पहाड़पुर पत्थर और मकराना के मार्बल का उपयोग हुआ है। संयोग से राजस्थान के मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा भी भरतपुर से है और अयोध्या आंदोलन से भी जुड़े रहे है ।श्रीराम जन्मभूमि पर बने मंदिर का ढांचा राजस्थान के बंसी पहाड़पुर पत्थर और मार्बल से बनाया गया है। मंदिर के निर्माण में बंसी पहाड़पुर के 13 लाख घन फीट से अधिक पत्थरों का उपयोग हो रहा है। जानकारों की मानें तो मुख्य भवन निर्माण के प्रवेश द्वार से निकास द्वार तक 4 लाख घन फीट पत्थर लग चुका है जबकि परिक्रमा एवं कोरिडोर मार्ग में 7.50 लाख घन फीट पत्थर लगना बाकी है। वहीं परकोटा के लिए जोधपुर के पत्थर इस्तेमाल में लाए गए है।

श्रीराम मंदिर के भूतल का फर्श मकराना के मार्बल से तैयार किया गया है। जानकारों की मानें तो भूतल पर करीब 18 हजार वर्गफीट में मार्बल लगाया गया है, जिसकी आपूर्ति राजस्थान से हुई है। इसमें प्रदक्षिणा पथ पर ही करीब सात सौ वर्ग फीट में मार्बल लगाया गया है।

अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि पर बनकर तैयार हुए भव्य राम मंदिर के निर्माण में सबसे अधिक चंदा भी राजस्थान से इकट्ठा हुआ है। जानकारों की मानें तो राजस्थान के लोगों ने 500 करोड़ रूपये से अधिक का चंदा दिया है। पिछले दिनों जयपुर आए श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र न्यास के महासचिव चंपतराय ने बताया था कि देश भर में 9 लाख कार्यकर्ताओं ने 10 करोड़ लोगों तक पहुंचकर राम मंदिर के लिया राशि एकत्रित की है। राजस्थान में 36 हजार गांव और शहरी कॉलोनियों के लोगों ने दान दिया है। देशभर के 4 लाख से अधिक गांवों से राशि एकत्र की गई। इस अभियान में स्वयंसेवकों की 1.75 लाख टोलियों के कार्यकर्ताओं ने घर-घर जाकर संपर्क किया।

राम मंदिर के चीफ आर्किटेक्ट (मुख्य वास्तुकार) चंद्रकांत सोमपुरा भी राजस्थान मूल के ही है। सोमपुरा के अनुसार अयोध्या में निर्मित भव्य राम मंदिर की निर्माण योजना 32 साल पहले शुरू हुई थी। 32 साल पहले, विश्व हिंदू परिषद के नेता अशोक सिंघल उन्हें अपने साथ अयोध्या ले गए थे और राम मंदिर के निर्माण के लिए एक योजना तैयार करने के लिए कहा था। उस समय वहां एक ढांचा था और हमें माप लेने की भी इजाजत नहीं थी। हमने अपने पैरों से क्षेत्र को मापा और उस स्थान के क्षेत्रफल का अनुमान लगाया।

चंद्रकांत सोमपुरा के अनुसार मंदिर के निर्माण में उत्तर और मध्य भारत की नागर शैली वास्तुकला का उपयोग किया गया है. मंदिर में पांच मंडप हैं। मुख्य गर्भ गृह 20 गुणा 20 फीट का अष्टकोणीय आकार में है, जो भगवान विष्णु के 8 रूपों का प्रतीक है. नागर शैली के साथ, भगवान विष्णु के 8 रूपों का भी वास्तुकला में उपयोग किया गया है।

उल्लेखनीय है कि गुजरात के प्रसिद्ध सोमनाथ मंदिर के रि-कंस्ट्रक्शन का डिजाइन चंद्रकांत सोमपुरा के पिता प्रभाशंकर सोमपुरा ने ही तैयार की थी। इस योगदान के लिए प्रभाशंकर सोमपुरा को भारत सरकार ने पद्मश्री से भी सम्मानित किया था। उन्होंने शिल्प-शास्त्र पर 14 किताबें भी लिखी हैं। नागर शैली में मंदिरों के डिजाइन बनाने में माहिर इस परिवार को वास्तुकला का यह गुण पीढ़ी दर पीढ़ी मिलता आया है. चंद्रकात अब 80 वर्ष के हैं।अब उनके पुत्र निखिल (55) और आशीष (49) परिवार से विरासत में मिली वास्तुकला की अद्भुत दक्षता को आगे बढ़ा रहे हैं।

प्राण प्रतिष्ठा के विधि विधान के मुताबिक सबसे पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी प्रभु श्रीराम को आइने में उनका चेहरा दिखाएंगे। प्राण प्रतिष्ठा के समय गर्भगृह में प्रधानमंत्री मोदी के अलावा श्री राम जन्म भूमि तीर्थ क्षेत्र के अध्यक्ष महंत नृत्य गोपालदास महाराज, उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, राष्ट्रीय स्वयं संघ के प्रमुख मोहन भागवत और मंदिर के आचार्य और मुख्य पुजारी के अलावा देश की 125 परम्पराओं के संत महापुरुष और देश की सभी विधाओं के विख्यात 2500 श्रेष्ठ पुरुष आदि उपस्थित रहेंगे। मंगलवार 23 जनवरी से श्री राम मंदिर आम जनता के लिए खोल दिया जाएगा।

श्रीराम लल्ला प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव पर अयोध्या राम मंदिर ट्रस्ट की ओर से हर दिन 2 लाख से अधिक लोगों के रहने और खाने की नि:शुल्क व्यवस्था की गई है। रामलला के दर्शन के लिए देश के हर कोने से अयोध्या पहुंच रहें लोगों के लिए रामसेवकों की ओर से अलग-अलग कार्यक्रम भी आयोजित किए जा रहे हैं। राम मंदिर निर्माण समिति के मुताबिक 22 जनवरी को अयोध्या में श्री राम प्रतिमा प्राण प्रतिष्ठा समारोह में भारी भीड़ उमड़ने की वजह से श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने लोगों से अपने घरों और गांवों से (टेलीविजन प्रसारण के माध्यम से) इस आयोजन को देखने का आग्रह किया है।