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कांग्रेस पार्टी ने ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ का पुरजोर विरोध करते हुए इसे लोकतंत्र और संविधान के खिलाफ बताया

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नई दिल्ली
देश में लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव को एक साथ कराने की कवायद को धार देने में सरकार जुटी हुई है। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में गठित उच्चस्तरीय कमेटी राजनीतिक दलों से इस मामले पर उनके विचार मांगे हैं। इसी बीच कांग्रेस पार्टी ने 'वन नेशन वन इलेक्शन' का पुरजोर विरोध करते हुए इसे लोकतंत्र और संविधान के खिलाफ बताया है। कांग्रेस अध्यक्ष और राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खरगे ने हाई लेवल कमेटी के सेक्रेटरी को पत्र लिखकर इसे ना लागू करने की वजहें गिनवाई हैं।

समिति में हो रहा पक्षपात
मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा कि इस उच्चस्तरीय समिति में सभी प्रदेशों के प्रतिनिधियों और विपक्षी दलों को पर्याप्त जगह नहीं दी गई है। इसलिए यह समिति निष्पक्ष नहीं कही जा सकती। उन्होंने कहा कि ऐसा लगता है सरकार वन नेशन वन इलेक्शन लागू करने का मन पहले ही बना चुकी है। समिति के जरिए बस एक औपचारिकता निभाई जा रही है।

प्रधानमंत्री की वजह से रुक रहा विकास कार्य
मल्लिकार्जुन खरगे ने अपने पत्र में कहा कि राष्ट्रपति रहने के दौरान रामनाथ कोविंद ने एक संयुक्त सत्र के दौरान कहा था कि अलग-अलग चुनाव कराने से विकास कार्य बाधित होते हैं। लेकिन विकास कार्य इस वजह से बाधित नहीं हो रहे बल्कि प्रधनमंत्री जी की वजह से बाधित हो रहे हैं। प्रधानमंत्री गवर्नेंस से ज्यादा इलेक्शनियरिंग में लगे रहते हैं। जहां तक बात है कि साथ चुनाव कराकर धन बचाया जा सकता है तो वीवीपैट के साथ चुनाव कराने पर चुनाव आयोग ने 2014 आण चुनाव का खर्च 3870 करोड़ बताया था। वहीं 2019 लोकसभा चुनाव के आंकड़े सामने नहीं रखे गए। ऐसे में चुनाव आयोग वीवीपैट के जरिए पहले ही खर्च बहुत बढ़ा चुका है। वहीं विपक्षी दलों की मांग के मुताबिक चुनाव आयोग सभी वीवीपैट स्लिप की गिनती भी नहीं करवाता है।

खरगे ने अपने पत्र में कहा, जहां तक बात विकास कार्यों के बाधित होने की है तो आचार संहिता लागू होने के बाद नए प्रोजेक्ट नहीं शुरू होते हैं। बाकी पहले से चल रहे प्रोजेक्ट पर कोई असर नहीं पड़ता है। कमेटी की तरफ लोगों को गुमराह किया गया है। इसमें कहा गया है कि चुनाव के दौरान सभी विकास कार्य रुक जाते हैं।

कई विधानसभाओं को भंग करना पड़ेगा
खरगे ने पत्र में कहा कि एक साथ चुनाव कराने पर कई विधानसभाओँं को समय से पहले ही भंग करना पड़ेगा। वहीं प्रस्ताव में कहा गया है कि अगर किसी राज्य की सरकार बीच में गिर जाती है तो अगला चुनाव होने तक इसमें राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया जाएगा। वहीं अगर केंद्र की सरकार गिर जाती है तो और फिर से चुनाव कारए जाते हैं तो सभी राज्यों पर भी चुनाव थोप दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि सरकार का यह प्लान संविधान के संघीय ढांचे के खिलाफ है।