पटना
बिहार सरकार ने आदेश जारी कर कहा है कि ऐसे शस्त्र धारक जिनके पास दूसरे राज्यों के लाइसेंसी हथियार हैं, वे सत्यापन (यदि लंबित है) के लिए 15 फरवरी तक अपने हथियार नजदीकी थाना या सक्षम प्राधिकारी के पास जमा करा दें।
बिहार के गृह विभाग द्वारा सभी जिलाधिकारियों को इस संबंध में एक परिपत्र जारी किया गया है, जिसमें शस्त्र लाइसेंस के सत्यापन के लिए 2019 में निर्धारित किये गये मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) का कड़ाई से अनुपालन करने का आह्वान किया है।
इसमें कहा गया कि जम्मू-कश्मीर, नगालैंड और अन्य पूर्वोत्तर राज्यों से अवैध हथियारों की आमद रोकने के लिए यह एसओपी निर्धारित की गई थी।
गृह विभाग ने सभी जिलाधिकारियों से हर्ष फायरिंग पर पूर्ण प्रतिबंध को सख्ती से लागू करने के लिए भी कहा है।
सभी जिलाधिकारियों से यह सुनिश्चित करने को कहा है कि दूसरे राज्यों से जारी शस्त्र लाइसेंस का सत्यापन शस्त्र धारकों द्वारा 15 फरवरी तक अवश्य पूरा करा लिया जाए।
इसमें कहा है कि जिनके लाइसेंस सत्यापित नहीं हैं उन्हें 15 फरवरी तक अपना हथियार निकटतम पुलिस थाना या सक्षम प्राधिकारी को जमा करना होगा। ऐसा नहीं करने पर उनके हथियारों को अवैध घोषित कर दिया जाएगा और शस्त्र धारकों पर उचित कानूनी कार्रवाई शुरू की जाएगी।
गृह विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम नहीं उजागर करने की शर्त पर बताया कि एसओपी बनाने का मकसद अवैध हथियार रखने वालों की पहचान करना है।
पत्र में कहा गया, ''पिछले रिकॉर्ड के अनुसार राज्य में 580 ऐसे शस्त्र धारक हैं, जिनके पास जम्मू-कश्मीर, नगालैंड और अन्य उत्तर पूर्वी राज्यों के हथियार लाइसेंस है। इनमें से 174 विशिष्ट पहचान संख्या (यूआईएन) वाले और 288 बिना यूआईएन वाले है, जबकि 98 शस्त्र धारकों ने यूआईएन के लिए आवेदन किया है।''
अधिकारी ने बताया कि शस्त्र नियम 2016 के तहत लाइसेंस प्राधिकारी द्वारा जारी शस्त्र लाइसेंस पर यूआईएन अंकित करना अनिवार्य है, इसके बिना कोई भी शस्त्र लाइसेंस वैध लाइसेंस नहीं है।
उन्होंने कहा, ''यह समझा जाना चाहिए कि यूआईएन एक लाइसेंसधारी को जारी किया जाना है। ऐसी खबरें हैं कि बड़ी संख्या में बिहार के लोग अवैध रूप से दूसरे राज्यों से हथियार लाइसेंस प्राप्त कर रहे हैं और उनमें से कुछ राज्य में संगठित अपराध में लिप्त हैं।''
उन्होंने कहा, ''देखा गया है कि शादी या अन्य मौकों पर हर्ष फायरिंग की जाती है और फोटो या रील बनाकर सोशल मीडिया पर साझा कर दिया जाता है। कानून के मुताबिक यह अवैध है। अनुपालन न करने की स्थिति में सभी जिलाधिकारियों को उल्लंघनकर्ताओं के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने का निर्देश दिया गया है।''