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यूपी में सीट शेयरिंग पर कहां फंसा पेंच? कौन सी सीटें हर हाल में चाहती है कांग्रेस

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लखनऊ
कुछ ही महीने बाद होने वाले लोकसभा चुनाव को लेकर सभी दल जोरशोर से तैयारी में जुटे हुए हैं। इस बीच सूत्रों के हवाले से पता चल रहा है कि इंडिया (I.N.D.I.A) गठबंधन में भी सीट शेयरिंग पर लगातार मंथन चल रहा है। समाजवादी पार्टी-राष्‍ट्रीय लोकदल और कांग्रेस के बीच किसे 80 में से कितनी सीटें मिलें इसका फॉमूला लगभग तय कर लिया है और बहुत जल्‍द इसका ऐलान हो सकता है। सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस 15 से 20 सीटों पर अपने उम्‍मीदवार उतारना चाहती है। जबकि समाजवादी पार्टी की कोशिश 65 सीटें अपने पास रखने, कांग्रेस को आठ से दस और अन्‍य स्‍थानीय घटक दलों को पांच से सात सीटें देने की है। खींचतान और फाइनल राउंड की बातचीत के बाद अंतत: किसके हिस्‍से में गठबंधन की कितनी सीटें आती हैं यह जानने के लिए लोग बेसब्री से इंडिया गठबंधन के ऐलान का इंतजार कर रहे हैं। कांग्रेस नेता राहुल गांधी की न्याय यात्रा 14 जनवरी से शुरू हो रही है। माना जा रहा है कि अखिलेश यादव इससे पहले कांग्रेस के प्रस्ताव पर फैसला ले लेंगे।  

कांग्रेस से जुड़े सूत्रों का कहना है कि राष्‍ट्रीय स्‍तर पर गठबंधन का नेतृत्‍व कर रही पार्टी चाहती है कि जिस राज्‍य को केंद्रीय सत्‍ता तक पहुंचने का रास्‍ता माना जाता है वहां भी उसे सम्‍मानजनक संख्‍या में सीटें मिलें। पार्टी के कुछ नेता 35 से 40 सीटों की बात करते हैं। उनका कहना है जब सपा पिछले गठबंधन में बसपा को ज्‍यादा सीटें दे सकती है तो फिर कांग्रेस को क्‍यों  नहीं। हालांकि कई नेता व्‍यवहारिक दृष्टिकोण की बात करते हुए कहते हैं कि 2014 में बीजेपी के सत्‍ता में आने से पहले, यानी 2009 के चुनाव तक, जिन सीटों पर कांग्रेस का प्रदर्शन बेहतर रहा है वहां एक बार फिर उसे लड़ने का मौका मिलना चाहिए। बता दें कि 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने यूपी से 21 सीटें जीती थीं। हालांकि तब और अब तक के हालात में काफी परिवर्तन हो चुका है। कई क्षेत्रों में जमीनी हकीकत काफी बदल चुकी है। मसलन, तब कुशीनगर में कांग्रेस का परचम लहराने वाले आरपीएन सिंह आज बीजेपी में हैं। पिछले चुनाव में कांग्रेस की हालत देखें तो यहां से वो सिर्फ एक सीट (पूर्व राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष सोनिया गांधी की रायबरेली) जीतने में कामयाब रही। अमेठी में राहुल गांधी तक की सीट कांग्रेस बीजेपी की स्‍मृति ईरानी के हाथों हार गई।

इंडिया गठबंधन में कांग्रेस की चाहत वाली सीटों में वे सीटें भी हैं जिन पर पिछले चुनाव में वो नंबर दो पर रही। इन सीटों में कानपुर, फतेहपुर सीकरी और अमेठी शामिल हैं। सूत्रों के मुताबिक इसके अलावा वो उन्‍नाव, सहारनपुर, लखनऊ, बरेली, फर्रुखाबाद और लखीमपुर खीरी की सीटें भी चाहती है। हालांकि इनमें से कई पर पेंच फंसा है। कहा जा रहा है कि कांग्रेस लखनऊ से अपने पूर्व प्रदेश अध्‍यक्ष राजबब्‍बर को मैदान में उतारना चाहती है जबकि इस सीट पर सपा के विधायक रविदास मेहरोत्रा दावा कर रहे हैं।

अखिलेश की मजबूत स्थिति
इंडिया गठबंधन में यह बात पहले से तय है कि जिस राज्‍य में जो दल मजबूत स्थिति में होगा मुख्‍यत: उसी के नेतृत्‍व में चुनाव लड़ा जाएगा। इसके बावजूद हाल में मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान सीटों को लेकर कांग्रेस और सपा नेताओं के बीच जुबानी जंग छिड़ गई थी। अंतत: सपा ने अपने उम्‍मीदवार अलग से उतार दिए जिसका कांग्रेस को नुकसान उठाना पड़ा। जानकारों का कहना है कि मध्‍य प्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की हार के बाद समाजवादी पार्टी की इंडिया गठबंधन में सीटों की दावेदारी और मजबूत हो गई है।

सपा के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि कांग्रेस भले ही ज्यादा सीटें मांगे लेकिन उसे जीत सकने वाले प्रत्याशी का नाम आगे करना चाहिए ताकि सीट पर गठबंधन की जीत सुनिश्चित हो सके। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव का उल्‍लेख करते हुए वह कहते हैं कि तब कांग्रेस ने गठबंधन में क्षमता से ज्यादा सीटे ले लीं बाद में उनके पास अच्छे उम्‍मीदवारों की कमी हो गई। उन्‍होंने दावा किया कि दो तीन सीटों पर सपा को ही प्रत्याशी भी देने पड़े। जानकारों का कहना है कि इसमें कोई शक नहीं कि कांग्रेस पिछले कुछ वर्षों से यूपी की सियासत में अपनी जोरदार वापसी के लिए पूरा जोर लगा रही है। पार्टी के वर्तमान प्रदेश अध्‍यक्ष के नेतृत्‍व में नेताओं के तीखे तेवर भी दिख रहे हैं लेकिन जमीन पर संगठन की स्थिति अब भी बहुत अच्‍छी नहीं कही जा सकती। फिर भी चुनावी सियासत में कब कौन सी हवा चले और माहौल बदल जाए ये कहा नहीं जा सकता इसलिए कांग्रेस की अधिक सीटों की चाहत अपनी जगह बनी हुई है। यह बात और है कि अभी तक सपा उसे आठ से दस सीटों से ज्‍यादा देने के मूड में नहीं दिख रही।