सहारनपुर
सहारनपुर से कांग्रेस की यूपी जोड़ो यात्रा शुरू हो चुकी है, और पश्चिम यूपी के राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण कई इलाकों से गुजरते हुए ये यात्रा लखनऊ पहुंच कर खत्म होगी.
यात्रा के दौरान 11 जिलों की 16 संसदीय सीटों को कवर करने की योजना बनाई गई है. यात्रा का रूट भी इस हिसाब से तैयार किया गया है कि मुस्लिम और दलित वोटर के पास पहुंच कर संपर्क साधा जा सके. सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, अमरोहा, बिजनौर, बरेली, मुरादाबाद और रामपुर जैसे 7 जिलों में कई जगह आधी आबादी मुस्लिम वोटर की है, जबकि सहारनपुर, मुजफ्फरनगर और बिजनौर जैसे इलाकों में दलित वोटर भी अच्छी संख्या में हैं.
कहने को तो यह उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की लोक सभा चुनाव की तैयारी से जुड़ा इवेंट है, लेकिन इस शुभारंभ अवसर पर न राहुल गांधी दिखाई दिये और न यूपी की प्रभारी प्रियंका गांधी. आखिर ऐसा क्यों? यूपी जोड़ो यात्रा में राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा के हिस्सा लेने/न लेने की कहानी कांग्रेस नेता तकरीबन वैसे ही सुना रहे हैं, जैसे तेलंगाना चुनाव में सोनिया गांधी के चुनाव प्रचार की संभावना जतायी जा रही थी. सोनिया गांधी तो चुनाव प्रचार करने पहुंची नहीं, एक वीडियो संदेश जरूर भिजवा दिया था – और सोनियम्मा का माहौल बनाने की कोशिश की गई.
दिलचस्प बात ये है कि राहुल गांधी भी यूपी कांग्रेस के नेताओं के सामने तेलंगाना को ही रोल मॉडल के रूप में पेश कर रहे हैं. अभी 18 दिसंबर को कांग्रेस मुख्यालय में यूपी कांग्रेस के नेताओं के साथ कांग्रेस नेतृत्व की एक मीटिंग हुई थी. मीटिंग में यूपी के नेताओं ने अब तक की चुनावी तैयारियों का अपडेट दिया, और आगे की तैयारियों की रूपरेखा भी पेश की. साथ ही, गांधी परिवार के साथ साथ कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे को भी यूपी की किसी सीट से लोक सभा चुनाव लड़ने का प्रस्ताव भी दिया.
मीटिंग में राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने कांग्रेस नेताओं को निराश न होने और मेहनत करने की सलाह दी, लेकिन वैसी मेहनत जैसी तेलंगाना के नेताओं ने की और कांग्रेस की सरकार बनवा दी. वैसे राहुल गांधी इस बात के भी पक्षधर दिखे कि कांग्रेस नेताओं को पहले मजबूत विपक्ष बनने का प्रयास करना चाहिये.
1. तो क्या यूपी में कांग्रेस संगठन के वैक्यूम के कारण हथियार डाल चुके हैं राहुल?
राहुल गांधी ने भले ही यूपी के नेताओं की हौसला अफजाई करने की कोशिश की हो, लेकिन यूपी कांग्रेस के नेताओं से वो काफी निराश भी नजर आये. रिपोर्ट के मुताबिक, राहुल गांधी ने बताया कि यूपी के नेताओं में सेल्फ-मोटिवेशन की कमी है, बनिस्बत तेलंगाना के नेताओं के मुकाबले. तेलंगाना में लंबे समय से कांग्रेस के सत्ता से बाहर होने का हवाला देते हुए राहुल गांधी ने कहा कि यूपी में ऐसे नेताओं की कमी है जो उस हिसाब से मेहनत करते दिखे हों.
राहुल गांधी ने कहा कि यूपी में दिक्कत ये है कि वहां तीन ऐसे नेता नहीं हैं, जो मुख्यमंत्री बनने की चाहत रखते हों. फिर राहुल गांधी ने बताया कि तेलंगाना में ऐसे चार कांग्रेस नेता थे जो मुख्यमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा रखते थे – और उन्हीं नेताओं ने अपनी मेहनत से तेलंगाना में जीत का आधार तैयार किया.
ऐसे में जबकि यूपी कांग्रेस के नेता राहुल गांधी, प्रियंका गांधी वाड्रा और सोनिया गांधी के साथ साथ मल्लिकार्जुन खरगे को भी यूपी से चुनाव लड़ने का सुझाव दे रहे हों, और उसके फायदे समझाये जा रहे हों – राहुल गांधी और प्रियंका गांधी का उत्तर प्रदेश से परहेज समझ में नहीं आ रहा है.
2. क्या राहुल गांधी का उत्तर भारत की राजनीति से मोहभंग हो गया है?
2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में भी राहुल गांधी की कोई दिलचस्पी नहीं देखने को मिली थी. यूपी से ही अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत करने वाले राहुल गांधी ठीक उसी वक्त पंजाब चुनाव में हद से ज्यादा सक्रिय देखे गये थे – क्या यूपी से दूरी बनाने की कोई बड़ी वजह 2019 में अमेठी की हार की भी हो सकती है?
ये तो देखा ही जा चुका है कि अमेठी की हार के बाद राहुल गांधी लोगों को उत्तर भारत और दक्षिण भारत की राजनीति में फर्क समझाने लगे हैं – और 2024 के आम चुनाव से पहले तो उत्तर बनाम दक्षिण की राजनीति पर बहस और भी तेज हो चली है.
भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल गांधी ने यूपी में कुछ दिन गुजारे जरूर थे, लेकिन उसके बाद से तो लगता है जैसे दक्षिण की राजनीति में भी उनको मजा आने लगा है. शायद इसलिए भी क्योंकि वायनाड से सांसद होने के साथ साथ कर्नाटक और तेलंगाना में कांग्रेस की सरकार बन चुकी है.
3. क्या प्रियंका गांधी को भी यूपी से दूर करने की कोशिश हो रही है?
2022 के यूपी में चुनाव में प्रियंका गांधी सबसे ज्यादा एक्टिव नजर आई थीं, लेकिन उसके बाद से वो दूर ही दूर नजर आ रही हैं. ये भी ठीक है कि हिमाचल प्रदेश चुनाव और भारत जोड़ो यात्रा या हाल के विधानसभा चुनावों की व्यस्तता भी एक वजह रही हो, लेकिन यूपी जोड़ो यात्रा को हरी झंडी दिखा कर रवाना तो कर ही सकती थीं.
अगर सोनभद्र, हाथरस और लखीमपुर खीरी जाने के लिए प्रियंका गांधी धरने पर बैठ सकती हैं, तो यूपी जोड़ो यात्रा से दूर रहने का सही तर्क समझ में नहीं आता है.
आखिर यूपी जोड़ो यात्रा से प्रियंका गांधी के दूर रहने की क्या वजह हो सकती है? वो तो यूपी की प्रभारी भी हैं. ऐसे में जबकि कांग्रेस विपक्ष को साथ लेकर लोक सभा चुनाव की तैयारी कर रही है, आखिर प्रियंका गांधी को यूपी की फिक्र क्यों नहीं है?
ये ठीक है कि अजय राय को प्रियंका गांधी का भरोसेमंद नेता माना जाता है, लेकिन इतने बड़े इवेंट से दूरी बना लेना क्या कहा जाएगा – कहीं प्रियंका गांधी का राजनीतिक दायरा बढ़ाने के लिए यूपी से दूर तो नहीं किया जा रहा है?
4. क्या राम मंदिर के पक्ष में बने माहौल से दूरी बना रहा गांधी परिवार?
क्या राहुल गांधी ने यूपी में कांग्रेस की राजनीति को राम भरोसे छोड़ दिया है? क्या राम मंदिर समारोह के जबरदस्त प्रभाव की वजह से यूपी जोड़ो यात्रा स्थानीय नेताओं के भरोसे छोड़ दी गयी है?
ये भी ठीक है कि यूपी कांग्रेस के नेता ऐसी संभावना से इनकार नहीं कर रहे हैं कि यात्रा के दौरान किसी जगह राहुल गांधी कुछ देर के लिए पहुंच सकते हैं, लेकिन जो नेता पहले से तय कार्यक्रम भी रद्द कर विदेश यात्रा पर निकल जाता हो, उसके यूपी की यात्रा में शामिल होने के बारे में क्या समझा जाये.
कहीं ऐसा तो नहीं कि राहुल गांधी के सलाहकारों को ये डर था कि राम मंदिर के लिए मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा के माहौल में पब्लिसिटी तो मिलेगी नहीं, ऐसे में यात्रा की जहमत उठाने की क्या जरूरत है?
5. कहीं अखिलेश यादव की और नाराजगी से बचने का प्रयास तो नहीं है?
कहीं राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने यूपी जोड़ो यात्रा से दूरी इसलिए तो नहीं बनाई है कि अखिलेश यादव को और ज्यादा नाराज होने से रोका जा सके? मध्य प्रदेश में अखिलेश यादव के साथ जो सलूक हुआ है, उसके बाद तो वो हद से ज्यादा चिढ़े हुए हैं.
चूंकि यूपी जोड़ो यात्रा में दलित और मुस्लिम आबादी वाले इलाकों पर फोकस किया गया है, इसलिए अखिलेश यादव की नाराजगी तो बढ़ ही सकती है. जैसे केरल में राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा से अच्छे दोस्त होने के बावजूद सीपीएम नेता सीताराम येचुरी को भी गुस्सा आया था, अखिलेश यादव की नाराजगी तो बनती ही है.
दलित वोटर के करीब पहुंचने से तो मायावती को ही दिक्कत हो सकती है, लेकिन मुस्लिम वोटर के पास कांग्रेस के जाने से अखिलेश यादव तो अपने वोट बैंक पर डाका डालना ही समझेंगे. वैसे भी 2022 के चुनाव में सबसे ज्यादा मुस्लिम विधायक समाजवादी पार्टी को ही मिले थे.
ऐसे में जबकि चुनाव राम मंदिर के माहौल में हो रहा है, अखिलेश यादव को ज्यादा से ज्यादा मुस्लिम वोट मिलने की उम्मीद तो होगी ही, और वो ये भी जानते होंगे कि मायावती उसमें रोड़े डालने की कोशिश करेंगी ही. अब अगर कांग्रेस भी उसमें हिस्सेदारी कर ले तो बीजेपी के लिए चीजें आसान हो जाएंगी – और सीधा नुकसान अखिलेश यादव को ही होगा.