नई दिल्ली
वाराणसी स्थित ज्ञानवापी-काशी विश्वनाथ मंदिर मामले पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले का स्वागत करते हुए विश्व हिन्दू परिषद के अंतर्राष्ट्रीय कार्याध्यक्ष और वरिष्ठ अधिवक्ता आलोक कुमार ने कहा कि यह हमारे लिए समाधान की बात है कि काशी विश्वनाथ की पुण्यभूमि को पुनः प्राप्त करने के मुकदमे को विलंबित और लंबा करने के सभी हथकंडे ध्वस्त हो रहे हैं।
आज इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने जिला जज के निर्णय की पुष्टि करते हुए कहा कि उक्त वाद किसी भी कानून द्वारा वर्जित नहीं है।
आलोक कुमार के अनुसार मुकदमे में अनेक महत्वपूर्ण बिंदु उभरे हैं। उच्च न्यायालय ने कहा है कि मुकदमों के फैसले में देरी से दो समुदायों के बीच तनाव बढ़ सकता है। उच्च न्यायालय ने ठीक ही कहा है कि मुकदमों का निपटारा 6 महीने के भीतर किया जाए।
विश्व हिंदू परिषद इस फैसले का स्वागत करती है। हम चाहेंगे कि मुस्लिम पक्ष अब अति-तकनीकी आपत्तियां उठाने से बचे और मामले को गुण-दोष के आधार पर लड़े। उन्होंने कहा कि यही एकमात्र तरीका है, जिसके द्वारा 6 महीने की नियत समय सीमा के भीतर मुकदमे का फैसला किया जा सकता है।
ज्ञानवापी-विश्वनाथ मंदिर विवाद का निस्तारण जरूरी : उच्च न्यायालय
उल्लेखनीय है कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने आज मुस्लिम पक्ष के द्वारा मस्जिद परिसर के सर्वे और वजूखाने के सर्वे सहित अनेक मामलों पर आपत्तियां उठाईं थीं, जिसे खारिज करते हुए उच्च न्यायालय ने कहा कि निचली अदालत छह माह में वाद तय करे।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने सिविल वाद को पोषणीय अर्थात मुकदमा चलाए जाने योग्य माना है और कहा है कि प्लेसेस आफ वर्शिप एक्ट 1991 से यह सिविल वाद बाधित नहीं है। आदेश 7 नियम 11सिविल प्रक्रिया संहिता के तहत सिविल वाद निरस्त नहीं किया जा सकता।
यह आदेश न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल ने अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी व सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड की तरफ से दाखिल याचिकाओं को खारिज करते हुए दिया है।
कोर्ट ने कहा यह सिविल वाद राष्ट्रीय महत्व का है। दो व्यक्तिगत पक्षों के बीच विवाद नहीं है। यह दो बड़े समुदायों को प्रभावित करता है।
कोर्ट ने कहा 32 साल से सिविल वाद लंबित है। पिछले 25 साल तक अंतरिम आदेश के कारण सुनवाई रुकी रही। कोर्ट ने कहा राष्ट्र हित में सिविल वाद यथाशीघ्र तय होना चाहिए। दोनों पक्ष सुनवाई में देरी के बगैर सुनवाई में सहयोग करें। कोर्ट ने अधीनस्थ अदालत को यथासंभव छह माह में वाद तय करने का निर्देश दिया है और कहा है कि सुनवाई अनावश्यक रूप से स्थगित न की जाए। ऐसी दशा में पक्ष पर भारी हर्जाना लगाया जाए।
कोर्ट ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) को साइंटिफिक सर्वे रिपोर्ट अदालत में पेश करने का निर्देश दिया और कहा कि जरूरी होने पर सर्वे जारी रखा जाए। अधीनस्थ अदालत आदेश जारी करें।
कोर्ट ने अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी व सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड की सभी याचिकाएं खारिज कर दी हैं।
कोर्ट ने कहा कि प्लेसेस आफ वर्शिप एक्ट 1991मे धार्मिक चरित्र परिभाषित नहीं किया गया है, केवल पूजा स्थल व बदलाव को परिभाषित किया गया है। किसी स्थान का धार्मिक चरित्र क्या है यह दोनों पक्षों के दावे प्रतिदावे व पेश सबूतों के आधार पर सक्षम अदालत तय कर सकती है। विवादित मुद्दा तथ्य व कानून का है।
कोर्ट ने कहा ज्ञानवापी परिसर का हिंदू धार्मिक चरित्र है या मुस्लिम धार्मिक चरित्र, साक्ष्यों के आधार पर प्रारंभिक कानूनी मुद्दे नियत कर अदालत तय कर सकती हैं।
कोर्ट ने कहा 1991 का कानून पूजा स्थल में 15 अगस्त, 1947 की स्थिति में बदलाव को प्रतिबंधित करता है। किंतु कानून में पूजा स्थल का धार्मिक चरित्र तय करने की प्रक्रिया नहीं दी गई है। कोर्ट ने कहा 1991 में दाखिल सिविल वाद 32 साल से लंबित है। जिसका राष्ट्रीय हित में निस्तारण होना जरूरी है।
हिन्दू पक्षकारों का कहना है कि उच्च न्यायालय का यह फैसला ज्ञानवापी स्थित स्वयंभू भगवान विश्वेश्वर नाथ मंदिर के जीर्णोद्धार का मार्ग प्रशस्त करने की दिशा में मील का पत्थर साबित होगा। एएसआई सर्वे रिपोर्ट के आधार पर ज्ञानवापी परिसर के स्वामित्व विवाद का हल निकल सकेगा। करोड़ों हिंदुओं की आस्था जीवंत हो उठेगी। कोर्ट ने सभी अंतरिम आदेश भी समाप्त कर दिए हैं।