प्रत्येक वर्ष मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की मोक्षदा एकादशी पर गीता जयंती मनाई जाती है। माना जाता है कि इसी दिन भगवान श्री कृष्ण ने युद्धभूमि में अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था।वर्ष 2023 में गीता जयंती 22 दिसंबर, शुक्रवार के दिन मनाई जाएगी। इस बार गीता जयंती की 5160 वीं वर्षगांठ मनाई जाएगी। ऐसे में आइए जानते हैं कि भगवद गीता में भगवान श्री कृष्ण द्वारा बताया गया कर्मयोग क्या है।
जब अर्जुन ने किया प्रश्न
किं कर्म किमकर्मेति कवयोऽप्यत्र मोहिताः।
तत्ते कर्म प्रवक्ष्यामि यज्ज्ञात्वा मोक्ष्यसेऽशुभात्॥
उपरोक्त श्लोक में अर्जुन भगवान श्री कृष्ण से पूछता है कि आखिर कर्म क्या है और अकर्म क्या है? इस विषय में बड़े-बड़े ज्ञानी भी मोहित हो जाते हैं। तब इस प्रश्न का उत्तर देते हुए भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि –
कर्मण्यकर्म यः पश्येदकर्मणि च कर्म यः।
स बुद्धिमान् मनुष्येषु स युक्तः कृत्स्नकर्मकृत्।।
अर्थात जो मनुष्य कर्म में अकर्म देखता है और जो अकर्म में कर्म देखता है, वह सभी मनुष्यों में बुद्धिमान है, योगी है और सम्पूर्ण कर्मों को करनेवाला है। आगे भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि व्यक्ति को कर्म, अकर्म और विकर्म तीनों का तत्त्व भी जानना चाहिए, क्योंकि कर्म की गति गहन है।
अकर्म की परिभाषा
भगवद गीता में श्री कृष्ण अकर्म को परिभाषित करते हुए कहते हैं कि जब व्यक्ति अपने ज्ञान योग के द्वारा अपनी निश्चियात्मक बुद्धि से ईश्वर प्राप्ति के लिए चिंतन करता हैं, तो उसे अकर्म कहा जाता है।
कर्म का अर्थ
अर्जुन को समझाते हुए भगवान श्री कृष्ण कहते हैं, कि जो व्यक्ति निश्चयात्मक बुद्धि के साथ-साथ ईश्वर को प्राप्त करने के लिए कर्म करता है, उसे ही कर्म कहते हैं। इसके आगे भगवान कहते हैं कि जो व्यक्ति मुझे प्राप्त करने के लिए कर्म करता है उसके आरंभ का कोई नाश नहीं है।
अर्थात अगर इस जन्म में भगवान की प्राप्ति के लिए कोई कर्म करता है और उसकी मृत्यु हो जाती है तो अगले जन्म में वह अपनी आराधना वहीं से शुरू करते हैं। इसलिए कई बार देखा जाता है कि किसी-किसी मनुष्य में शुरू से ही भक्ति की भावना पाई जाती है।
क्या है विकर्म
विकर्म का अर्थ सांसारिक कर्मों से है। इस संसार में रहकर हम जो भी सांसारिक कार्य करते हैं, वह सब विकर्म की श्रेणी में आते हैं। उदहारण के तौर पर किसी मनोकामना पूर्ति के लिए भगवान की पूजा पाठ, दान करना, लोगों की सहायता करना, यह सब विक्रम कहलाता है।
न करें फल की चिंता
कर्मयोग को समझाते हुए अंत में भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि मुझे प्राप्त करने के मनुष्य जो भी कम करता है, उसका फल मैं ही हूं। ऐसे में फल की इच्छा रखने की क्या जरूरत है। क्योंकि अंत में मैं ही तुम्हें प्राप्त हो जाउंगा।