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मानवाधिकार लोकतंत्र का प्रमुख स्तंभ : धनखड़

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नई दिल्ली
 उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने मानवाधिकार को लोकतंत्र का एक प्रमुख स्तंभ करार देते हुए कहा है कि भारत में मानवाधिकारों का पालन विश्व के लिए एक आदर्श है।

धनखड़ ने रविवार को यहां मानव अधिकार दिवस पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि मानवाधिकार संरक्षण में भारत की भूमिका उल्लेखनीय है। पूरी दुनिया में मानवाधिकारों के पालन को लेकर भारत का उदाहरण दिया जाता है। उन्होंने कहा कि भारत में मानवाधिकारों का संरक्षण भारतीय संस्कृति और सभ्यता तथा संविधान में समाहित है।

उपराष्ट्रपति ने संविधान में मानवाधिकारों से संबंधित प्रावधानों का उल्लेख करते हुए कहा कि मानवाधिकार लोकतंत्र का आधार स्तंभ है।
भारत के राष्ट्रपति के रूप में एक आदिवासी महिला की नियुक्ति को मानवाधिकारों का प्रमाण बताते हुए

उपराष्ट्रपति ने कहा कि मानवाधिकार एक यज्ञ के समान एक सामूहिक प्रयास है, और इसमें योगदान देना सभी की साझा जिम्मेदारी है। यह प्रत्येक व्यक्ति से संबंधित है। उन्होंने कहा, “मानवाधिकारों का उत्थान एक हवन है, जिसमें हर किसी को आहुति देनी चाहिए, योगदान देना चाहिए।”

उन्होंने कहा, “दुनिया का कोई भी हिस्सा मानवाधिकारों के साथ इतना समृद्ध, समृद्ध नहीं है जितना हमारा देश कर रहा है। हमारा अमृत-काल मुख्य रूप से मानवाधिकारों और मूल्यों के खिलने के कारण हमारा गौरव-काल बन गया है। हमारे सभ्यतागत लोकाचार और संवैधानिक प्रतिबद्धता मानव अधिकारों के सम्मान, सुरक्षा और पोषण के प्रति हमारे गहरे समर्पण को दर्शाते हैं जो हमारे डीएनए में है।”

उपराष्ट्रपति ने कहा कि कानून के समक्ष समानता मानव अधिकार को बढ़ावा देने का एक अविभाज्य पहलू है। उन्होंने मानवाधिकारों को बढ़ावा देने के लिए राज्य के तीनों अंगों, विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के प्रयासों की भी सराहना की।
मुफ्त की राजनीति के बारे में बात करते हुए, उपराष्ट्रपति ने आगाह किया कि इससे व्यय प्राथमिकता विकृत हो जाएगी और व्यापक आर्थिक स्थिरता के बुनियादी ढांचे को कमजोर कर दिया जाएगा क्योंकि "राजकोषीय अनुदान के माध्यम से सशक्त बनाने से केवल निर्भरता बढ़ती है। उन्होंने कहा कि मानव मस्तिष्क और मानव संसाधनों का सशक्तिकरण किया जाना चाहिए।

विशेष रूप से कमजोर वर्गों के लिए मानवाधिकारों को बढ़ावा देने के लिए पारदर्शिता और जवाबदेह शासन को 'गेम-चेंजर' बताते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि प्रौद्योगिकी के उपयोग ने भी इस प्रगति को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि सरकार की समावेशी नीतियों के सकारात्मक कार्यान्वयन ने लाखों लोगों को गरीबी की गिरफ्त से मुक्त कराया है। उन्होंने कहा कि इस उपलब्धि ने आर्थिक अवसरों, गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच और अच्छी शिक्षा से समृद्ध भविष्य का मार्ग प्रशस्त किया है। ये वही स्तंभ हैं जिन पर एक मजबूत मानवाधिकार भवन टिका हुआ है।
धनखड़ ने कहा कि मानवाधिकारों के लिए सबसे बड़ा खतरा भ्रष्टाचार से उत्पन्न होता है। भ्रष्टाचार और मानवाधिकार एक साथ नहीं रह सकते।

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने रविवार को कहा कि मानवाधिकारों के प्रसार और सशक्तिकरण के लिए देश में व्यापक ढांचागत विकास काफी आवश्यक है।

धनखड़ ने नई दिल्ली के भारत मंडपम में मानवाधिकार दिवस पर सभा को संबोधित करते हुए कहा,“मानवाधिकार उस समाज में बढ़ते हैं जहां कानून में समानता है और सभी के लिए न्याय तक पहुंच है।”

इस अवसर पर मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा की 75वीं वर्षगांठ भी मनाई गई।
उपराष्ट्रपति ने कहा,“कोई भी कानून से ऊपर नहीं है और कानून हमेशा ऊपर होता है, जो देश में नया मानदंड है। यह एक आदर्श बदलाव है जो देश में मानवाधिकारों को बढ़ावा देने का एक अभिन्न पहलू है।”

धनखड़ ने कहा कि पारदर्शिता और जवाबदेह शासन वर्तमान व्यवस्था में एक नया मानदंड है तथा यह मानवाधिकारों को बढ़ावा देने में एक गेम-चेंजर है। उन्होंने कहा कि पहले शासन प्रणाली में पारदर्शिता की कमी के कारण गरीब और कमजोर लोग वास्तविक पीड़ित हैं।
कार्यक्रम में बोलते हुए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) के अध्यक्ष न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) अरुण कुमार मिश्रा ने कहा,“मानवाधिकार दिवस समानता, न्याय, स्वतंत्रता और मानवाधिकारों के सम्मान की याद दिलाता है।”

न्यायमूर्ति ने कहा,“एनएचआरसी भारत में लोगों के मानवाधिकारों की रक्षा और प्रचार-प्रसार के लिए प्रतिबद्ध है।” उन्होंने कहा,“हमारे सांस्कृतिक लोकाचार और मूल्य हमारे संविधान में प्रतिबिंबित होते हैं। मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा में ऐसे आदर्श शामिल हैं जो हमारे मूल्यों के अनुरूप हैं। भारतीय संस्कृति न्याय के पक्ष में खड़े होने की क्षमता रखती है।”

आतंकवाद पर चिंता जताते हुए उन्होंने कहा कि इसने पूरी दुनिया में नागरिकों के मानवाधिकारों का गंभीर उल्लंघन किया है। उन्होंने यह भी कहा कि आतंकवादी कृत्यों और आतंकवादियों के प्रति सहानुभूति रखना मानवाधिकारों के प्रति बहुत बड़ा अन्याय है।

न्यायमूर्ति मिश्रा ने कहा कि उन्नत प्रौद्योगिकियों के नैतिक प्रभाव गंभीर चिंता का विषय हैं। उन्होंने कहा,“इंटरनेट उपयोगी है, लेकिन इसका एक स्याह पक्ष भी है, घृणास्पद भाषण के माध्यम से गोपनीयता का उल्लंघन और गलत सूचना लोकतांत्रिक प्रक्रिया को कमजोर कर रही है।”