भोपाल
1984 की भोपाल गैस त्रासदी को देश की सबसे भीषण औद्योगिक दुर्घटना माना जाता है. एक केमिकल फैक्ट्री से हुए जहरीली गैस के रिसाव से रात को सो रहे हजारों लोग हमेशा के लिए मौत की नींद सो गए. इतना ही नहीं, त्रासदी का असर लोगों की अगली पीढ़ियों तक ने भुगता मगर सबसे दुखद बात ये है कि हादसे के जिम्मेदार आरोपी को कभी सजा नहीं हुई.
मध्यप्रदेश की राजधानी में दो दिसंबर 1984 की सर्द रात को यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री से जहरीली गैस के रिसाव ने न केवल यहां हजारों लोगों की जान ले ली थी, बल्कि त्रासदी के 39 साल बाद भी यह जीवित बचे लोगों को एक भयंकर सपने की तरह याद है।
इस हादसे के बाद यह कारखाना बंद किया जा चुका है।
- 2-3 दिसंबर, 1984 की रात भोपाल में यूनियन कार्बाइड (Union Carbide) कंपनी के प्लांट से मिथाइल आइसोसाइनाइट (Methyl Isocyanate) गैस का रिसाव हुआ था.
- इस घटना में हज़ारों लोगों की मौत हो गई थीं और लाखों लोग इससे प्रभावित हुए थे.
- रिसाव की घटना पूरी तरह से कंपनी की लापरवाही के कारण हुई थी, पहले भी कई बार रिसाव की घटनाएँ हुई थीं लेकिन कंपनी ने सुरक्षा के समुचित उपाय नहीं किये थे.
नींद में ही सो गए हजारों लोग
02 और 03 दिसंबर 1984 की रात, लगभग 45 टन खतरनाक गैस मिथाइल आइसोसाइनेट गैस एक कीटनाशक संयंत्र से लीक हो गई. यह कंपनी अमेरिकी फर्म यूनियन कार्बाइड कॉर्पोरेशन की भारतीय सहायक कंपनी थी. गैस संयंत्र के आसपास घनी आबादी वाले इलाकों में फैल गई, जिससे हजारों लोगों की तुरंत ही मौत हो गई. लोगों के मरने पर इलाके में दहशत फैल गई और हजारों अन्य लोग भोपाल से भागने का प्रयास करने लगे.
16 हजार से अधिक लोगों की मौत
मरने वालों की गिनती 16,000 से भी अधिक थी. करीब पांच लाख जीवित बचे लोगों को जहरीली गैस के संपर्क में आने के कारण सांस की समस्या, आंखों में जलन या अंधापन, और अन्य विकृतियों का सामना करना पड़ा. जांच में पता चला कि कम कर्मचारियों वाले संयंत्र में घटिया संचालन और सुरक्षा प्रक्रियाओं की कमी ने तबाही मचाई थी.
470 मिलियन डॉलर का मुआवजा – Bhopal Gas Tragedy
हादसे के बाद यूनियन कार्बाइड कॉर्पोरेशन ने 470 मिलियन अमेरिकी डॉलर का मुआवजा दिया. हालांकि, पीडितों ने ज्यादा मुआवजे की मांग के साथ न्यायालय का दरवाजा खटखटाया. 07 जून को भोपाल की एक अदालत ने कंपनी के 7 अधिकारियों को हादसे सिलसिले में 2 साल की सजा सुनाई. उस वक्त UCC के अध्यक्ष वॉरेन एंडरसन मामले के मुख्य आरोपी थे लेकिन मुकदमे के लिए पेश नहीं हुए.
मुख्य आरोपी एंडरसन को नहीं हुई सजा
यूनियन कार्बाइड कार्पोरेशन के अध्यक्ष वारेन एंडरसन इस त्रासदी के मुख्य आरोपी थे लेकिन उन्हें सजा तक नहीं हुई. 1 फरवरी 1992 को भोपाल की कोर्ट ने एंडरसन को फरार घोषित कर दिया था. एंडरसन के खिलाफ कोर्ट ने 1992 और 2009 में दो बार गैर-जमानती वारंट भी जारी किया था, पर उसको गिरफ्तारी नहीं किया जा सका. 2014 में एंडरसन की स्वाभाविक मौत हो गई और इसी के चलते उसे कभी सजा नहीं भुगतनी पड़ी.
रिसाव के बाद का दर्दनाक मंजर
1984 के समय भोपाल की आबादी लगभग 8.5 लाख के आस-पास थी. इस त्रासदी के बाद आधी से ज्यादा आबादी खांसी, आंखों में जलन, त्वचा में खुजली की शिकायत और सांस की समस्याओं का सामना कर रही थी. जहरीली गैस के कारण आंतरिक रक्तस्राव, निमोनिया और मृत्यु तक हो गई थी. फैक्ट्री के पास के इलाकों के गांव और झुग्गियां सबसे ज्यादा प्रभावित हुई थीं.
आइसोसाइनेट के संपर्क में आने वाले लोगों के लक्षण डॉक्टरों को तत्काल पता नहीं चल पाए थे. फिर भी अस्पतालों ने भोपाल गैस रिसाव के पहले दो दिनों में लगभग 50,000 से ज्यादा रोगियों का इलाज किया था. पीड़ित लोगों की मानें तो सरकार ने आठ घंटे में गैस रिसाव पर काबू पाने की घोषणा की थी, लेकिन गैस ने किस कदर तबाही मचाई थी, उसका परिणाम यह है कि भोपाल शहर 38 साल बाद भी इसकी चपेट से बाहर नहीं निकल पाया.
विश्व में 20वीं सदी में हुई प्रमुख औद्योगिक दुर्घटना
संयुक्त राष्ट्र की श्रम एजेंसी अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) की ओर से जारी की गई 2020 की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि 1984 में मध्य प्रदेश की राजधानी में यूनियन कार्बाइड कीटनाशक संयंत्र से निकली कम से कम 30 टन मिथाइल आइसोसाइनेट गैस ने शहर के 6,00,000 से अधिक लोगों को प्रभावित किया था.
रिपोर्ट में कहा गया है कि, "सरकारी आंकड़ों के मुताबिक अनुमान है कि पिछले कुछ सालों में इस आपदा के नतीजे में 15000 मौतें हुई हैं. जहरीला सामान बना हुआ है. हजारों जीवित बचे लोग और उनके वंशज श्वसन से जुड़े रोगों, आंतरिक अंगों से जुड़ी समस्याओं और प्रतिरक्षा प्रणाली में कमजोरी से पीड़ित हुए हैं."
"भविष्य के कामकाज के केंद्र में सुरक्षा और स्वास्थ्य: 100 वर्षों के अनुभव पर निर्माण" शीर्षक वाली रिपोर्ट में कहा गया है कि भोपाल त्रासदी सन 1919 के बाद हुईं दुनिया की प्रमुख औद्योगिक दुर्घटनाओं में से एक थी.
भोपाल में जहरीली गैस से प्रभावित हुए लोग बीमारियों के प्रति अधिक संवेदनशील
इस आपदा की 39वीं बरसी से एक दिन पहले गैस पीड़ितों के लिए काम करने वाले एक गैर सरकारी संगठन (NGO) ने शुक्रवार को दावा किया कि सन् 1984 की भोपाल गैस त्रासदी के दौरान गैस रिसाव के संपर्क में आने वाले लोगों में मधुमेह, हृदय रोग, न्यूरोपैथी और गठिया जैसी बीमारियों की आशंका गैर गैस पीड़ितों की अपेक्षा तीन गुना ज्यादा है.
संभावना ट्रस्ट क्लीनिक में पंजीकरण सहायक नितेश दुबे ने कहा, “हमारे क्लीनिक के आंकड़ों से पता चलता है, कि क्लीनिक में पिछले दो सालों में इलाज कराने वाले 6254 लोगों में से मधुमेह, हृदय रोग, न्यूरोपैथी और गठिया जैसी बीमारी गैर गैस पीड़ितों की अपेक्षा गैस पीड़ितों में तीन गुना ज्यादा हैं. गैर गैस पीड़ितों की अपेक्षा गैस पीड़ितों में उच्च रक्तचाप, एसिड पेप्टिक रोग, अस्थमा, सीओपीडी, सर्वाइकल स्पोंडिलाइसिस और चिंता की बीमारियां दोगुनी हैं.''
गैस पीड़ितों के इलाज के लिए भोपाल में संभावना क्लीनिक सितंबर 1996 से चल रहा है. इसमें अब तक 36,730 व्यक्तियों का दीर्घकालिक देखभाल के लिए रजिस्ट्रेशन किया गया है.
भोपाल हादसे के 39 साल पूरे हो रहे हैं लेकिन गैस पीड़ितों की मौतों का सिलसिला अब तक जारी है. संभावना क्लिनिक में योग चिकित्सक डॉ श्वेता चतुर्वेदी के अनुसार, एक जनवरी 2022 से क्लीनिक में इलाज करवा रहे 3832 गैस पीड़ितों में से 22 की मौत हो गई है.
आइए एक नजर डालते हैं
- यह घटना 2-3 दिसंबर, 1984 की रात को हुई। जब संयंत्र से लगभग 42 टन जहरीला मिथाइल आइसोसाइनेट निकल गया। जिससे 6,00,000 से अधिक लोग जहरीली गैसों के संपर्क में आ गए।
- यह रासायनिक घटना मिथाइल आइसोसाइनेट युक्त टैंक में पानी के प्रवेश के कारण हुई थी, जिसके परिणामस्वरूप एक केमिकल रिएक्शन हुई, जिसके परिणामस्वरूप टैंक के अंदर तापमान में वृद्धि हुई।
- टैंक के भीतर का दबाव टैंक को झेलने के लिए बनाया गया था। जिसके परिणामस्वरूप भारी मात्रा में जहरीली गैसें पर्यावरण में लीक हो गईं।
- सुबह करीब 1 बजे लोगों के फेफड़ों में दम घुटने और जलन के साथ नींद खुली। जिसके बाद बड़ी दहशत पैदा हो गई और अफरातफरी मच गई, जिससे भगदड़ भी मच गई।
- इस दौरान आम जनता को कोई चेतावनी नहीं दी गई और यहां तक कि कारखाने में आपातकालीन अलार्म भी लगभग 2:30 बजे शुरू हो गए।
- भोपाल शहर को हिला देने वाली इस रासायनिक आपदा में बड़ी संख्या में लोगों की जान चली गई। इस दुर्घटना का सबसे ज्यादा शिकार यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड (UCIL) संयंत्र के पास झुग्गी बस्तियों के लोग थे।
- जिस क्षण यह घटना हुई, उसी क्षण हजारों लोगों की जान चली गई। बाद में मरने वालों की संख्या बढ़कर लगभग 25,000 हो गई, जहां 5,00,000 लोग घायल हो गए, जिनमें से कई स्थायी रूप से घायल हो गए।
- इस आपदा के 30 साल बाद भी दुख अभी भी जारी है। वहां के लोग अभी भी इस त्रासदी के बाद के प्रभावों से जूझ रहे हैं। बच्चे जन्म प्रभाव के साथ पैदा होते हैं, वहीँ कई शारीरिक और मानसिक विकलांगता से पीड़ित होते हैं।
- यूनियन कार्बाइड कॉरपोरेशन और उसके तत्कालीन सीईओ वारेन एंडरसन के खिलाफ भोपाल के जिला न्यायालय में कई दीवानी और आपराधिक मामले लंबित हैं, लेकिन पीड़ितों को कोई न्याय नहीं दिया गया जो या तो अपनी चोटों के कारण दम तोड़ चुके हैं या अभी भी जीवित रहने की लड़ाई लड़ रहे हैं।
- वहीँ अपने अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे संगठनों का कहना है कि दुनिया की सबसे बड़ी औद्योगिक आपदा भोपाल गैस त्रासदी में से बचे लोगों के लिए न्याय का इंतजार आपदा की 37वीं बरसी पर जारी है और बाद की सरकारों ने हार मान ली है।
- कई अधिकार संगठन दशकों से त्रासदी के लिए जिम्मेदार लोगों को कठोर और अनुकरणीय दंड देने, पीड़ितों को पर्याप्त मुआवजा, एक उचित पुनर्वास योजना और बचे लोगों के लिए पर्याप्त चिकित्सा सुविधाएं और संयंत्र परिसर में पड़े जहरीले रसायनों को हटाने की मांग कर रहे हैं।