नई दिल्ली
सुप्रीम कोर्ट (SC) ने शुक्रवार को तमिलनाडु बिल विवाद से जुड़े एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि राज्य की विधानसभा द्वारा दोबारा पारित किए जाने के बाद कोई भी बिल भारत के राष्ट्रपति को नहीं भेजा जा सकता है। इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि को मुख्यमंत्री एमके स्टालिन से मिलने और गतिरोध को हल करने के लिए भी कहा। भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ में न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा भी हैं। पीठ इस मामले की अगली सुनवाई 11 दिसंबर को करेगी। पीठ ने कहा, "हम चाहेंगे कि राज्यपाल गतिरोध दूर करें…यदि राज्यपाल मुख्यमंत्री के साथ गतिरोध सुलझाते हैं तो हम इसकी सराहना करेंगे। मुझे लगता है कि राज्यपाल मुख्यमंत्री को आमंत्रित करें। उन्हें बैठकर इस मुद्दे पर चर्चा करनी चाहिए।" उच्चतम न्यायालय ने कहा कि हम इस तथ्य से अवगत हैं कि हम उच्च संवैधानिक पदाधिकारियों से जुड़े मामले से निपट रहे हैं।
इसी दौरान संविधान के अनुच्छेद 200 का उल्लेख करते हुए पीठ ने कहा कि राज्यपाल के कार्यालय द्वारा लौटाये जाने पर जिन विधेयकों को विधानसभा ने पुन: अपनाया है, उन्हें राज्यपाल राष्ट्रपति को नहीं भेज सकते। इसी के साथ न्यायालय ने तमिलनाडु सरकार की पुनर्विचार संबंधी याचिका पर सुनवाई के लिए 11 दिसंबर की तारीख तय की और राज्यपाल एवं मुख्यमंत्री से गतिरोध सुलझाने के लिए मुलाकात करने को कहा।
इस महीने की शुरुआत में, राज्यपाल ने तमिलनाडु विधानसभा द्वारा पारित 12 में से 10 विधेयक लौटा दिए। ये विधेयक 2020 से उनके कार्यालय के समक्ष लंबित थे। हालांकि, उन्होंने विधेयकों को खारिज करने का कोई कारण नहीं बताया। तमिलनाडु विधानसभा अध्यक्ष ने बाद में एक विशेष विधानसभा सत्र बुलाया जहां विधेयकों को फिर से पारित किया गया। सत्र के दौरान विपक्षी विधायकों ने वॉकआउट किया था।
राज्यपाल की यह कार्रवाई सुप्रीम कोर्ट द्वारा 12 विधेयकों को पास करने में देरी के खिलाफ तमिलनाडु सरकार द्वारा दायर याचिका पर केंद्र सरकार से जवाब मांगने के कुछ दिनों बाद आई थी। 31 अक्टूबर को, तमिलनाडु के मुख्य सचिव शिव दास मीना ने सुप्रीम कोर्ट में दायर एक याचिका में राज्यपाल रवि पर "नागरिकों के जनादेश के साथ खिलवाड़" करने का आरोप लगाया।