रायपुर। ईश्वर की कृपा सार्वकालिक होती है, इसके लिए धैर्य जरूरी है। भक्ति मुक्ति नहीं, जन्म मांगता है। जिस दिन ज्ञान और भक्ति का समागम हो जाएगा उद्गम अपने आप पता चल जाएगा। सारे संसार में संबंध भाव से ही चल रहे हैं। गुरू तो सिर्फ मार्ग बताते हैं, आचरण तो आपको करना है। महामाया मंदिर प्रांगण में रामकथा के समापन दिवस पर संत मैथिलीशरण भाईजी ने कहा कि कथा और सत्संग तो होते रहते हैं,जिस कथा के माध्यम से मति मिल गई उसे और कुछ देने की आवश्यकता नहीं होती है। ईश्वर सगुण साकाररूपी होते हैं और गुरू केवल मार्ग बताते हैं,आचरण तो आपको करना है। तत्काल नाम की कोई चीज प्राकृतिक नहीं अप्राकृतिक होती है। कृपा सार्वकालिक होती है पर इसके लिए धैर्य जरुरी होती है। जिस प्रकार तमाम नदियां समुद्र में जाकर समागम करती है फिर उनका कोई नाम नहीं रह जाता है, ठीक वैसे ही हमारे आपके जीवन का लक्ष्य ईश्वर की प्राप्ति क्यों नहीं हो सकता।उन्होंने बताया कि ईश्वर का भक्त मुक्ति नहीं जन्म मांगता है। मुक्ति का सुख तो केवल शरीर लेगा। भक्त वहीं रहता चाहता है जहां ईश्वर की कृपा और आनंद बरसती है। भक्ति पका हुआ फल और ज्ञान बीज है, जिस दिन ज्ञान और भक्ति का समागम हो जाएगा आपको रस की प्राप्ति हो जाएगी। सारे संसार में संबंध भाव से चल रहे है। गुरु अपने शिष्यों में ईश्वर और अपने गुरु को देखता है, उसकी मति, गति, रति ईश्वर में लगी हुई है कि नहीं ताकि उसकी भावना में स्खलन न हो जाए। भोगा वो जाता है जो शरीर के बाहर है, जिसके शरीर के भीतर ही सब कुछ है वह क्या भोगेगा। और वही तो शिव है जो अनादि है। दिखाई दे रहा है वह दिखाई देना शुरू हो जाए वही अनादि (शिव) है। उन्होंने बताया कि कृपासिंधु को मानेंगे तो नर रुप, ईश्वर रुप हो जाएगा इसीलिए पत्थर को भगवान मानकर पूजा जाता है। पत्थर को तारना और बनाना भी वे जानते है यदि भक्ति की भावना है और भक्ति संकट में तो वे कहीं पर भी प्रगट हो सकते है। अपना अपराध वे स्वीकार सकते है, भक्त का नहीं। वे तो सबके हृदय में है।