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राजस्थान में ध्रुवीकरण का असर, कई जगहों पर बंपर वोटिंग, कुछ में नजदीकी मुकाबला

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जयपुर.

राजस्थान में इस बार अनुमानित 74.13 फीसदी मतदान हुआ है। हालांकि, चुनाव आयोग की तरफ से फाइनल डेटा जारी नहीं किया गया है। इसमें बढ़ोतरी की संभावना है, लेकिन जिस तरह से साइलेंट वोटिंग इस बार हुई है, उसे देखते हुए यह माना जा रहा है कि करीब 50 से ज्यादा सीटें ऐसी होंगी, जिन पर जीत-हार का अंतर दो हजार से कम वोटों का हो सकता है। चुनाव की बात करें तो यहां सीएम अशोक गहलोत की गारंटियों और जातिगत जनगणना के वादों का मुकाबला मोदी के हिन्दुत्व और पेपर लीक के मुद्दों के बीच चला। हालांकि, स्थानीय विधायक की छवि को लेकर भी चुनाव की वोटिंग पर काफी असर देखने को मिला।

धार्मिक ध्रुवीकरण का कार्ड चला
बीजेपी के प्रचार में सबसे ज्यादा जोर तुष्टीकरण के मुद्दे पर रहा। कन्हैयालाल का हत्या का जिक्र पीएम से लेकर तमाम बीजेपी नेताओं ने किया। इसका असर वोटिंग पर साफ नजर आया। धार्मिक ध्रुवीकरण में फंसी सीटों पर रिकॉर्ड तोड़ वोटिंग हुई।

तिजारा में दिवाली जैसा माहौल
तिजारा में पिछले चुनाव में 80.85 फीसदी वोटिंग हुई और इस बार 85.15 प्रतिशत तक का आंकड़ा छू लिया। वजह है, यहां बीजेपी के भगवाधारी बाबा बालकनाथ का मुकाबला कांग्रेस के इमरान खान से था। इस सीट पूरा प्रचार हिंदू-मुस्लिम के मुद्दे को लेकर ही हुआ। मतदान खत्म होने के बाद यहां जमकर आतिशबाजी हुई। भाजपा कार्यकर्ताओं ने नरेंद्र मोदी और भगवान राम के जमकर नारे लगाए।

पोकरण का रण: दो धर्मगुरुओं के बीच टक्कर
पोकरण: पाकिस्तान की सीमा से सटी यह विधानसभा सीट पर इस बार दो धर्मगुरुओं के बीच मुकाबला था। वर्तमान विधायक कैबिनेट मंत्री सालेह मोहम्मद हैं। उनके पिता गाजी फकीर सिंधी मुस्लिम धर्मगुरु थे और अब उनके निधन के बाद वह अगले धर्मगुरु बन गए। यहां सालेह मोहम्मद का मुकाबला बीजेपी के महंत प्रतापपुरी से है, जो तारातरा मठ के प्रमुख हैं। इस मठ का प्रभाव पूरे पश्चिम राजस्थान तक है। दो धर्मगुरुओं के बीच हुए भीषण मुकाबले ने यहां वोटिंग के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए। पिछले चुनावों में यहां पोकरण 81.12 फीसदी वोटिंग हुई थी। जबकि इस बार यह आंकड़ा 87.79 प्रतिशत तक पहुंच गया।

जातियों की लड़ाई दिखी
राजस्थान में इस बार के चुनाव में एक बड़ी लड़ाई गुर्जर वोटों पर कब्जे की भी रही। प्रचार में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट और उनके पिता राजेश पायलट के साथ कांग्रेस में हुए व्यवहार को मुद्दा बनाया। इसके जवाब में सीएम अशोक गहलोत ने भाजपा राज के समय हुए गुर्जर आंदोलन के दौरान गोलीबारी और 72 गुर्जरों की मौत की याद दिलाई।

धर्म की लड़ाई भी नजर आई
भाजपा ने प्रचार में कांग्रेस सरकार के कथित भ्रष्टाचार, महिला उत्पीड़न और पेपर लीक को मुद्दा तो बनाया। लेकिन सबसे ज्यादा फोकस हिन्दुत्व के आधार पर वोटों का ध्रुवीकरण था। पार्टी के स्टार प्रचारकों ने अपने भाषणो में खुलकर इसकी बात की।

किसी भी मुस्लिम को टिकट नहीं
पार्टी ने इस बार के चुनाव में भी मुस्लिम प्रत्याशी को टिकट नहीं दिया। वसुंधरा राजे के नजदीकियों में से कई को टिकट को मिल गया, लेकिन उनके सबसे विश्वस्त रहे पूर्व मंत्री युनूस खान को टिकट नहीं मिल पाया। स्थिति यह तक देखने में आई कि एक प्रत्याशी अभिषेक सिंह, जिसे मसूदा से टिकट मिला था। उसके बारे मे भी जब यह पता चला कि यह मूल रूप से मुस्लिम हैं तो उनका टिकट बदल दिया।

भगवाधारियों को टिकट
पार्टी ने तीन संतों को टिकट दिए। इनमें पोकरण से महंत प्रतापपुरी, हवामहल से हाथोज धाम के महंत बाल मुकुंदाचार्य और तिजारा से नाथ सम्प्रदाय से जुड़े बाबा बालकनाथ। इनमें से प्रतापपुरी और बालकनाथ के सामने कांग्रेस की ओर से क्रमशः सालेह मोहम्म्द और इमरान खान के रूप में मुस्लिम प्रत्याशी चुनाव लड़ रहे हैं।

योगी से कराई बीस से ज्यादा सभाएं
पार्टी के सबसे बड़े हिन्दुत्ववादी चेहरों में शामिल उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ ने पिछले पांच दिन में प्रदेश में बीस से ज्यादा सभाएं की हैं। तिजारा से प्रत्याशी बाबा बालकनाथ का नामांकन कराने के लिए भी योगी आए थे। उनकी सभाएं भी ज्यादातर उन क्षेत्रों में कराई गई, जहां या तो सामने मुस्लिम प्रत्याशी है या जहां मुस्लिम मतदाता अच्छी संख्या में हैं। जैसे सूरसागर, तिजारा, डीडवाना, सीकरी और भरतपुर आदि। वहीं, नेताओं की सभाएं हों या प्रेसवार्ता हर जगह उदयपुर के कन्हैयालाल की जिहादियों द्वारा गला काटकर हत्या किए जाने का मामला जरूर उठाया गया।

कांग्रेस गारंटियों के भरोसे रही, असर वोटिंग पर भी दिखा
दूसरी तरफ कांग्रेस के लिए यह कैंपेन पूरी तरह वादों और गारंटियों का रहा, जिसके दम पर वह कर्नाटक में चुनाव जीती थी। हालांकि, कर्नाटक चुनावों के वक्त भी तमाम सर्वे और सट्टा बाजार की रिपोर्ट बीजेपी के पक्ष में ही बताई जा रही थी। लेकिन नतीजों ने सबको चौंका दिया। राजस्थान में इस बार का चुनाव मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की लोक लुभावन गारंटियों और जातिगत जनगणना जैसे बड़े वादे तथा प्रधानमंत्री मोदी के हिन्दुत्व तथा गहलोत सरकार पर पेपर लीक, भ्रष्टाचार, महिला उत्पीड़न के आरोपों जैसे मुद्दों पर हो रहा
है। यह चुनाव न सिर्फ राजस्थान में नई सरकार चुनेगा, बल्कि 2024 में होने वाले देश के आम चुनाव की दिशा भी तय करेगा।

मोदी बनाम गहलोत
चुनाव की सबसे बड़ी बात यह भी रही कि इसमें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के चेहरों के बीच मुकाबला होता दिखा। मोदी और गहलोत दोनों ने ही जनता से अपील की है कि वे स्थानीय प्रत्याशी को भूल जाएं और उन्हें देख कर वोट दें। मोदी ने मतदाताओं से कहा है कि उनका दिया एक वोट सीधे मुझ तक पहुंचेगा। वहीं गहलोत ने कहा है कि सभी 200 सीटों पर वे स्वयं चुनाव लड़ रहे हैं। यानी मतदाताओं से अन्य मुद्दों के साथ ही देश में पिछले साढ़े नौ साल में हुए काम और राजस्थान में पिछले पांच साल के दौरान हुए काम और नए वादों के आधार पर भी वोट मांगे गए हैं।

इस बार सिर्फ वादे नहीं गारंटी
इस चुनाव का बज वर्ड यानी सबसे चर्चित शब्द गारंटी है। कांग्रेस ने देश के विभिन्न राज्यों में हुए चुनावों में इस गारंटी शब्द का जमकर इस्तेमाल किया है और यहां भी यही किया गया है। चुनाव की घोषणा से पहले गहलोत ने महंगाई राहत कैम्प लगा कर दस गारंटियां दी और चुनाव घोषित होने के बाद सात गारंटी और दे दी। वहीं, इसके जवाब में प्रधानमंत्री मोदी ने लोगों से कहा कि उनका नाम और चेहरा काम होने की गारंटी की गारंटी है, यानी जनता ने उन पर भरोसा किया तो जो वादे किए गए हैं, वे हर हाल में पूरे होंगे।

हिन्दुत्व की काट में लाए जातिगत जनगणना का मुद्दा
भाजपा की ओर से हिन्दुत्व का मुद्दा जोर-शोर से उठाया गया और पार्टी ने अलग-अलग तरह से प्रदेश के बहुसंख्यक हिन्दु मतदाताओं को यह संदेश देने की कोशिश की कि उनके हित सिर्फ भाजपा सरकार में सुरक्षित रह सकते हैं। इसके लिए मुस्लिम नेताओं को टिकट नहीं देने से लेकर प्रमुख हिन्दुत्ववादी चेहरों से धुंआधार प्रचार कराने तक के प्रयोग किए गए। इसकी काट के तौर पर कांग्रेस ने जातिगत जनगणना का मुद्दा उठाया। कांग्रेस को भरोसा है कि जातिगत जनगणना का मुद्दा बीजेपी के ध्रुवीकरण की काट करेगा।