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HC ने रद्द किया 10 साल पहले हुआ पकड़ौआ विवाह, फौजी को गनप्वाइंट पर कर दी गई थी शादी

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पटना

पटना हाईकोर्ट ने भारतीय सेना के एक कांस्टेबल की शादी को रद्द कर दिया है. कांस्टेबल का 10 साल पहले बिहार से अपहरण कर लिया गया था और फिर बंदूक की नोक पर एक महिला के साथ उसकी जबरन शादी कर दी गयी थी. याचिकाकर्ता और नवादा जिले के रविकांत को 30 जून 2013 को दुल्हन के परिवार ने उस समय अगवा कर लिया था जब वह लखीसराय के एक मंदिर में पूजा-अर्चना करने गए थे. 

हुआ था पकड़ुआ विवाह

यह घटना बिहार के ‘‘पकड़ौआ विवाह' का एक उदाहरण था जो एक सामाजिक बुराई है .विवाह योग्य उम्र की लड़कियों के परिवार के सदस्य द्वारा भारी दहेज देने से बचने के लिए कपटपूर्ण तरीकों (पकड़ौआ विवाह) का सहारा लिया जाना इस विषय पर कुछ फिल्में भी बन चुकी हैं.

न्यायमूर्ति पी बी बजंथरी और न्यायमूर्ति अरुण कुमार झा की खंडपीठ ने इस महीने की शुरुआत में आदेश पारित किया था जिसमें उसने लखीसराय की फैमिली कोर्ट के तीन साल पुराने फैसले को भी रद्द कर दिया था. फैमिली कोर्ट ने याचिकाकर्ता के पक्ष में डिक्री पारित करने से इनकार कर दिया था.

फैमिली कोर्ट ने खारिज कर दी अपील

याचिकाकर्ता सभी रीतियों के संपन्न होने से पहले दुल्हन के घर से भाग गया और ड्यूटी पर फिर से लौटने के लिए जम्मू-कश्मीर चला गया. इसके बाद छुट्टी पर लौटने पर शादी को रद्द करने की मांग करते हुए लखीसराय की फैमिली कोर्ट में एक याचिका दायर की थी .फैमिली कोर्ट ने 27 जनवरी, 2020 को याचिकाकर्ता रविकांत की याचिका को फैमिली कोर्ट ने खारिज कर दिया, जिसके बाद उसने पटना उच्च न्यायालय में अपील दायर की थी.

जस्टिस पी बी बजंथरी और न्यायमूर्ति अरुण कुमार झा की खंडपीठ ने यह कहते हुए निचली अदालत के आदेश को रद्द कर दिया कि पारिवारिक अदालत ने ‘‘त्रुटिपूर्ण'' दृष्टिकोण अपनाया कि याचिकाकर्ता का मामला ‘अविश्वसनीय' हो गया क्योंकि उसने विवाह को रद्द करने के लिए ‘तुरंत' मुकदमा दायर नहीं किया था. खंडपीठ ने कहा, ‘याचिकाकर्ता ने स्थिति स्पष्ट कर दी है और कोई अनुचित देरी नहीं हुई है.'

हाईकोर्ट ने सप्तपदी का दिया हवाला

अदालत ने इस बात पर जोर देने के लिए सुप्रीम कोर्ट के फैसले का भी हवाला दिया कि हिंदू परंपराओं के अनुसार, कोई भी शादी तब तक वैध नहीं हो सकती जब तक कि 'सप्तपदी' (पवित्र अग्नि की सात परिक्रमा) नहीं की जाती. हाईकोर्ट ने कहा,'‘विद्वान परिवार अदालत का यह निष्कर्ष कि सप्तपदी का अनुष्ठान नहीं करने का मतलब यह नहीं है कि विवाह नहीं किया गया है, किसी भी योग्यता से रहित है.'