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पाकिस्तान को BRICS में क्यों शामिल कराना चाहता है चीन? पहले भी कई देशों की एंट्री

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इस्‍लामाबाद

ब्रिक्‍स को अमेरिका विरोधी देशों का मंच बनाने में जुटे चीन ने नापाक चाल चली है। चीन के इशारे पर पाकिस्‍तान ब्रिक्‍स की सदस्‍यता हासिल करना चाहता है। पाकिस्‍तान चाहता है कि भारत का दोस्‍त रूस इसमें उसकी मदद करे। रूस में पाकिस्‍तान के राजदूत मुहम्‍मद खालिद जमाली ने खुलासा किया है कि इस्‍लामाबाद ने ब्रिक्‍स की सदस्‍यता के लिए आवेदन जमा कर दिया है। साथ ही पाकिस्‍तान चाहता है कि रूस उसकी सदस्‍यता के मामले को आगे बढ़ाए। रूस अगले साल ब्रिक्‍स की अध्‍यक्षता संभालने जा रहा है। ब्रिक्‍स का सदस्‍य बनने के लिए पाकिस्‍तान को भारत को मनाना होगा और इसीलिए इस्‍लामाबाद रूस की मदद चाहता है।

 

रूसी न्‍यूज एजेंसी तास की रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्‍तानी राजदूत ने एक इंटरव्‍यू में यह खुलासा किया है। पाकिस्‍तान की सदस्‍यता का मुद्दा अगले साल रूस के सामने आएगा। ब्रिक्‍स का गठन साल 2010 में हुआ था और ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका इसके संस्‍थापक सदस्‍य देश थे। पिछले साल ब्रिक्‍स के आखिरी शिखर सम्‍मेलन में अक्‍टूबर में दक्षिण अफ्रीका ने 6 नए देशों को अपने इस गठबंधन में शामिल होने का न्‍योता दिया था। इन देशों में मिस्र, आर्जेंटीना, इथोपिया, सऊदी अरब और यूएई शामिल हैं।

टीएएसएस की रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तान के राजनयिक ने घोषणा की है कि पाकिस्तान ने ब्रिक्स में शामिल होने के लिए सदस्यता के लिए पहले ही आवेदन कर दिया है। जमाली ने पुष्टि की कि पाकिस्तान 2024 में रूसी अध्यक्षता में समूह के भीतर भाग लेने का इरादा रखता है।

राजदूत ने कहा, "पाकिस्तान इस महत्वपूर्ण संगठन का हिस्सा बनना चाहेगा और हम आम तौर पर पाकिस्तान और विशेष रूप से रूसी संघ की सदस्यता को समर्थन देने के लिए सदस्य देशों से संपर्क करने की प्रक्रिया में हैं।"

जनवरी 2021 में भारत की भूमिका संभालने और दिसंबर 2021 तक इसका नेतृत्व संभालने से पहले रूस ने आखिरी बार 2020 में इसकी अध्यक्षता की थी। 

ब्रिक्स दुनिया के पांच सबसे बड़े विकासशील देशों को एक साथ लाता है जो वैश्विक आबादी का लगभग 41% और वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 24% है। यह वैश्विक व्यापार का लगभग 16% प्रतिनिधित्व करता है।

दक्षिण पश्चिम रूस के कजान में आगामी ब्रिक्स शिखर सम्मेलन से पहले रूसी उप विदेश मंत्री सर्गेई रयाबकोव ने अक्टूबर की शुरुआत में कहा था कि ब्रिक्स उम्मीदवारों की एक सूची पर सहमत होने की योजना बना रहा है। रयाबकोव ने पहले कहा था कि ब्रिक्स समूह की रूसी अध्यक्षता के दौरान लैटिन अमेरिका सहित इसका विस्तार करने पर विशेष ध्यान दिया जाएगा।

चीनी राष्ट्रपति शी जिंगपिंग ने कहा, "हमें अधिक देशों को ब्रिक्स परिवार में शामिल होने देना चाहिए ताकि वैश्विक शासन को अधिक न्यायसंगत और न्यायसंगत बनाने के लिए ज्ञान और प्रयासों को एकत्रित किया जा सके।"

पाकिस्तान के मुहम्मद खालिद जमाली द्वारा TASS को दिए गए इंटरव्यू के बावजूद ब्रिक्स में पाकिस्तान के आवेदन की कोई आधिकारिक रिपोर्ट नहीं आई है।

चीन क्‍यों कर रहा पाक‍िस्‍तान का समर्थन?

ये देश 1 जनवरी 2024 से ब्रिक्‍स के सदस्‍य देश बन जाएंगे। पाकिस्‍तान चाहता है कि रूस उसे ब्रिक्‍स का सदस्‍य बनाए। इसके लिए रूस को भारत को भी मनाना होगा। अगर बात नहीं बनती है तो पाकिस्‍तान को भारत से बातचीत करनी होगी, तभी उसकी इस ग्रुप में एंट्री हो पाएगी। चीन चाहता है कि पाकिस्‍तान को भी इस ग्रुप में शामिल किया जाए ताकि उसका दबदबा और मजबूत हो जाए। ब्रिक्‍स ये 5 सदस्‍य देश दुनिया की 5 बड़ी अर्थव्‍यवस्‍थाओं में शामिल हैं और विश्‍व की 41 फीसदी आबादी का प्रतिनिधित्‍व करते हैं। यह दुनिया की कुल जीडीपी का 24 प्रतिशत है।

रूस में ब्रिक्‍स की अगली बैठक होने वाली है और देश के उप विदेश मंत्री ने कहा है कि ब्रिक्‍स की योजना है कि कुछ देशों को पार्टनर स्‍टेट का दर्जा दिया जाए। उन्‍होंने कहा कि ब्रिक्‍स के दोस्‍तों का विस्‍तार वह लैटिन अमेरिका तक देखना चाहते हैं। इससे पहले चीन के राष्‍ट्रपति शी जिनपिंग ने कहा था कि हमें ब्रिक्‍स में और ज्‍यादा देशों को शामिल करना चाहिए ताकि वैश्विक व्‍यवस्‍था को ज्‍यादा न्‍यायोचित बनाया जा सके। चीन की मंशा है कि ब्रिक्‍स में पाकिस्‍तान को किसी तरह से शामिल किया जाए लेकिन भारत इसके खिलाफ पूरी ताकत से अड़ा हुआ है।

पाकिस्‍तान का भारत कर रहा कड़ा व‍िरोध

यही वजह है कि चीन और पाकिस्‍तान दोनों रूस के रास्‍ते भारत पर दबाव डालकर ब्रिक्‍स का विस्‍तार कराना चाहते हैं। भारत का कहना है कि ब्रिक्‍स का और ज्‍यादा अगर विस्‍तार होता है तो इससे वह कमजोर होगा और अपने मुख्‍य लक्ष्‍य को हासिल नहीं कर सकेगा। इसके अलावा आम सहमति भी बनाना आसान नहीं होगा। इससे पहले बेलारूस ने भी ब्रिक्‍स में घुसने की कोशिश की थी लेकिन भारत ने उसका कड़ा विरोध किया था।