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खसरे से मौत के वैश्विक मामलों में 2021-22 के बाद 43 प्रतिशत वृद्धि : डब्ल्यूएचओ

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नई दिल्ली
 विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) और अमेरिका के रोग नियंत्रण एवं रोकथाम केंद्र (सीडीसी) की एक नई रिपोर्ट के अनुसार कई वर्षों तक खसरा टीकाकरण की दर घटते रहने के बाद 2021-22 के बाद से इस बीमारी से मौत के वैश्विक मामलों की संख्या 43 प्रतिशत बढ़ गई है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि 2022 में 37 देशों में बड़े स्तर पर खसरे का प्रकोप रहा था जबकि 2021 में ऐसे देशों की संख्या 22 थी। डब्ल्यूएचओ ने कहा कि खसरे के प्रकोप का सामना कर रहे देशों में 28 देश डब्ल्यूएचओ के अफ्रीकी क्षेत्र में, छह पूर्वी भूमध्यसागर क्षेत्र में, दो दक्षिण-पूर्व एशिया में और एक देश यूरोपीय क्षेत्र में है।

सीडीसी के वैश्विक टीकाकरण विभाग के निदेशक जॉन वर्टेफ्यूइले ने कहा, ‘‘खसरे का प्रकोप और उससे मौत के मामलों में वृद्धि हैरान करने वाली है, लेकिन दुर्भाग्य से पिछले कुछ सालों में टीकाकरण दर में हुई गिरावट को देखते हुए यह अनपेक्षित नहीं है।’’

उन्होंने एक बयान में कहा, ‘‘खसरे के मामले उन सभी देशों और समुदायों के लिए जोखिम वाले होते हैं जहां टीकाकरण की दर कम हो। खसरे से मौत के मामलों को रोकने के लिए तत्काल और लक्षित प्रयास महत्वपूर्ण हैं।’’

खसरे की रोकथाम के लिए टीके की दो खुराक दी जाती हैं। डब्ल्यूएचओ के अनुसार इसके वैश्विक टीकाकरण का दायरा 2021 से 2022 में मामूली तौर पर बढ़ा था, लेकिन 3.3 करोड़ बच्चे टीके की एक खुराक से वंचित रह गए। उसने कहा कि करीब 2.2 करोड़ बच्चों को पहली खुराक नहीं लगी, वहीं 1.1 करोड़ बच्चों को दूसरी खुराक नहीं मिली।

 

टीकाकरण कवरेज में हुई वृद्धि, लेकिन अभी करोड़ों बच्चों से दूर खुराक

टीकाकरण की दो खुराक से खसरे से बचा जा सकता है। 2021-22 के बीच दुनिया भर में टीकाकरण की कवरेज में थोड़ी वृद्धि जरूर हुई है लेकिन इसके बावजूद  3.3 करोड़ बच्चे अभी भी इससे वचित हैं। जहां 2.2 करोड़ बच्चों को इसकी पहली खुराक नहीं मिल पाई थी, वहीं 1.1 करोड़ बच्चे इसकी दूसरे खुराक से वंचित रह गए थे।

2022 में, दुनिया के करीब 83 फीसद बच्चों को खसरे की पहली खुराक मिल पाई थी, जो 2008 के बाद से सबसे कम है। वहीं महज 74 फीसदी बच्चों को दूसरी खुराक उपलब्ध हो सकी थी, जो इसके प्रकोप को रोकने के लिए आवश्यक 95 फीसदी की कवरेज से काफी कम है।

विडम्बना देखिए कि आर्थिक रूप से कमजोर देशों में जहां खसरे से संबंधित मौतों का जोखिम सबसे अधिक है, वहां टीकाकरण दर सबसे कम करीब 66 फीसदी थी, जो महामारी के दौरान आई गिरावट से उबरने का कोई संकेत नहीं देती है।

आंकड़ों के अनुसार 2022 में खसरे के टीके की पहली खुराक से चूक गए 2.2 करोड़ बच्चों में से आधे से अधिक सिर्फ 10 देशों के हैं, जिनमें मेडागास्कर, नाइजीरिया, पाकिस्तान, अंगोला, ब्राजील, डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो, इथियोपिया, भारत, इंडोनेशिया और फिलीपींस शामिल हैं।

2015 के बाद से, देखें तो अफ्रीका में खसरे की पहली खुराक (एमसीवी1) की कवरेज दर में कोई खास सुधार नहीं हुआ है। 2021 में, क्षेत्र के 47 देशों में से करीब आधों में एमसीवी1 की कवरेज 80 फीसदी से कम थी। वहीं डब्ल्यूएचओ द्वारा जून 2023 में जारी साप्ताहिक रिपोर्ट से पता चला है कि इसकी दूसरी खुराक की यह दर करीब 40 फीसदी थी।

 

भारत ने भी इन बीमारियों के उन्मूलन के लिए केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के नेतृत्व में एक नियमित टीकाकरण अभियान चलाया है। भारत का लक्ष्य मिशन इंद्रधनुष की मदद से 2023 तक खसरा और रूबेला को खत्म करना है। इस अभियान के तहत देश की 95 फीसदी आबादी को खसरे और रूबेला वैक्सीन की दो खुराक देने की योजना बनाई गई है।

डब्ल्यूएचओ के टीकाकरण निदेशक केट ओ'ब्रायन का कहना है कि, "महामारी के बाद भी कम आय वाले देशों में खसरे के टीके की कवरेज में सुधार की कमी खतरे की घंटी है।" उनके मुताबिक खसरे को 'असमानता का वायरस' कहा जाता है क्योंकि यह उन लोगों को निशाना बनाता है, जो सुरक्षित नहीं हैं। उन्होंने जोर देकर कहा, "हर बच्चे को खसरे के जीवनरक्षक टीके की मदद से सुरक्षित होने का अधिकार है, चाहे वो कहीं भी रह रहे हों"

ऐसे में डब्ल्यूएचओ और सीडीसी ने देशों को खसरे जैसी बीमारियों की रोकथाम के लिए हर बच्चे की पहचान और उनका टीकाकरण करने की सलाह दी है। यह वो बीमारियां हैं जिन्हें टीकाकरण से रोका जा सकता है। टीकाकरण सीधे तौर पर सतत विकास के तीसरे लक्ष्य को हासिल करने में योगदान देता है, जो अच्छे स्वास्थ्य और कल्याण को बढ़ावा देने पर केंद्रित है।

उन्होंने अंतरराष्ट्रीय संगठनों से भी देशों की कमजोर आबादी के टीकाकरण में सहायता करने का आह्वान किया है। इसके साथ ही उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय, क्षेत्रीय, राष्ट्रीय और स्थानीय स्तर पर सभी वैश्विक स्वास्थ्य साझेदारों से मजबूत निगरानी प्रणालियों और प्रकोप प्रतिक्रिया क्षमताओं में निवेश करने का आग्रह किया है ताकि प्रकोप की तुरंत पहचान और उस पर काबू पाया जा सके।