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बीजिंग में इतिहास बना एयर पलूशन, दिल्ली को क्यों नहीं मिल पा रहा सॉल्यूशन

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नई दिल्ली
सर्दियां शुरू होते ही राजधानी दिल्ली समेत कई शहर प्रदूषण से हांफने लगते हैं। लोगों का सांस लेना मुश्किल हो जाता है। धुंध की चादर की वजह से सूर्य के दर्शन नहीं होते और सांस की बीमारी से ग्रसित लोगों की जान पर बन जाती है। बीते एक महीने से दिल्ली में प्रदूषण का कहर देखने को मिल रहा है। यहां तक कि स्कूल बंद करने पड़ गए। प्रदूषण की स्थिति को देखते हुए सरकारें हाथ खड़ी कर चुकी हैं। इस समस्या का कोई स्थायी समाधान अबतक नहीं निकल पाया है। दिल्ली का एक्यूआई 500 क्रॉस कर गए। स्वास्थ्य एजेंसियों भी दिल्ली जैसे शहर में जीवन प्रत्याशा एक दशक तक घटने की चेतानवी दे दी। कुछ साल पहले चीन में भी ऐसी ही स्थिति बन जाती थी। राजधानी बीजिंग में लोगों को सांस लेना दूभर हो जाता था। लेकिन चीन ने इस समस्या का समाधान निकाल लिया और उसने एयर पलूशन को कम करके इतिहास बना दिया।

चीन को कैसे मिली प्रदूषण से निजात?
भारत की तरह चीन में भी बढ़ते उद्योग, शहरीकरण और ईंधन के अत्यधिक उपयोग का असर दिखाई दे रहा था। चीन के अस्पताल में सांस के मरीजों का तांता लगा रहता था। बीजिंग में ही करीब 2.2 करोड़ लोग रहते हैं। गंभीर संकट को देखते हुए चीन ने लोगों में जागरूकता का काम शुरू किया। 2013 में ही चीन ने प्रदूषण से लड़ने का ऐक्शन प्लान बनाया और इसके लिए अरबों डॉलर खर्च करने की ठान लगी। इसके बाद बड़े शहरों में वाहनों पर प्रतिबंध ळगाया गया। एमिशन पर कंट्रोल, पूरे देश में एयर मॉनिटरिंग स्टेशन और हैवी पलूशन इंडस्ट्रियों और कोयले के विकल्प पर काम करना शुरू किया गया। आईक्यूएयर के ग्लोबल सीईओ फ्रैंक क्रिस्टियन हैम्स के मुताबिक चीन ने प्रदूषण को गंभीरता से लिया।

उन्होंने कहा, अब चीन के रेस्तरां या फिर स्ट्रीट फूड वेंडर्स के पास कोयले  या लकड़ी का इस्तेमाल एकदम खत्म हो गया है। इसके लिए इलेक्ट्रिसिटी या फिर गैस का इस्तेमाल किया जाता है। यहां तक कि पावर जनरेटर भी गैस से चलाए जाने लगे। इससे बड़ा परिवर्तन देखने को मिला। एक दशक में नाटकीय तरीके से चीन की हवा में सुधार हुआ। 2013 के मुकाबले 2021 में चीन के प्रदूषण में 42 फीसदी की कमी आई। एक दशक के बाद अब चीन का नाम टॉप प्रदूषित देशों में नहीं है। इसका स्थान अब 27वां है।

क्या गलती कर रहा भारत
जानकारों का कहना है कि भारत में जब प्रदूषण बढ़ता है तभी इसके बारे में विचार भी शुरू होता है। सीआरईए के सुनील दहिया ने कहा कि भारत के पास प्रदूषण कम कनरे की क्षमता है। हमारे पास पैसा और तकनीक दोनों है लेकिन अप्रोच सही नहीं है। बीजिंग की तरह ही कड़े प्रतिबंध लगाकर ही प्रदूषण को कम किया जा सकता है और इसका प्रभाव कुछ समय बाद दिखाई देगा। बता दें कि हरियाणा और पंजाब में बड़ी मात्रा में पराली जलाई जाती है। इसके अलावा कुकिंग के लिए भी सस्ते फ्यूल का इस्तेमाल होता है जो कि स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।  राजधानी दिल्ली में सर्दियां आते ही हालत खराब हो जाती है और हर साल लोग यही पूछते हैं कि कोई परिवर्तन क्यों नहीं हो रहा। राजनीतिक दलों में भी प्रदूषण खत्म करने के लिए कोई ज्यादा इच्छा नहीं दिखाई देती। चुनाव के वक्त फ्री की चीजों को मुद्दा बनाया जाता है लेकिन प्रदूषण मुद्दा नहीं बनता। जन जागरूकता बढ़ने के बाद ही ऐसी चीजें मुद्दा बन सकती हैं और उनपर कोई मजबूत ऐक्शन प्लान तैयार हो  सकता है।