जयपुर.
राजस्थान के चुनाव में अब चंद दिन शेष हैं। प्रदेश की राजनीति को लेकर चुनावी रथ राजधानी जयपुर के अमर जवान ज्योति पर पहुंचा। यहां हमारे बीच प्रदेश की राजनीति पर चर्चा के लिए वरिष्ठ पत्रकारों में नारायण भरिता, प्रकाश भंडारी, अविनाश कल्ला, सत्येंद्र शुक्ला और अभिषेक तिवारी शामिल हुए। सवाल-जवाब में हमने ये जानने का प्रयास किया कि इस बार क्या? क्या राजस्थान का मन बदलने वाला है या रिवाज बदलने वाला है।
सवाल: राजस्थान की राजनीति में दोनों ही पार्टियों में लड़ाई किस तरह की चल रही है?
प्रकाश भंडारी: कांग्रेस और भाजपा में फर्क का जिक्र करते हुए प्रकाश भंडारी ने कहा कि भाजपा का जो भी कार्यकर्ता है वो ये मान के चलता है कि ये पार्टी हमारी है। भाजपा का कार्यकर्ता कर्मठ होता है, जबकि कांग्रेस में ऐसा नहीं है। बात 2018 की करें तो जुलाई से सुगबुगाहट होने लगी थी रानी का राज जाने वाला है। अंत तक आते-आते ये साफ हो गया कि भाजपा का राज राजस्थान से गया। इतना होने के बाद भी भाजपा के कार्यकर्ताओं की दाद देनी होगी। उनको पता था कि राज जाने वाला है फिर उन्होंने जबरदस्त मेहनत की। उसका नतीजा था कि कांग्रेस 100 पार नहीं कर पाई और भाजपा की 50 की उम्मीद भी नहीं थी वो 70 से अधिक रही। अगर 2018 से आज कांग्रेस की तुलना की जाए तो स्थिति बहुत बेहतर है। लोगों के मन में है कि इस बार कांग्रेस और भाजपा में टक्कर देखने को मिलेगी। काम को लेकर तो गहलोत जी का खूब नाम हुआ है, लेकिन भाजपा के हिंदुत्व कार्ड का कोई जवाब अभी इनके पास नहीं है।
अब तो सबको पता है कौन बागी है और कौन नहीं, अब आगे क्या माहौल रहेगा?
नारायण भरिता: अभी तो चुनाव में न कोई लहर, न तरंग है और न ही कोई रंग है। अभी इतने सारे किरदार और सरदार हैं कि अभी तो ये कह पाना मुश्किल है कि ऊंट किस करवट बैठेगा। इस बार हर बार की तरह नहीं है कि लोग बोलें कि ये सरकार तो गई। कांग्रेस सत्ता में आए या न आए, लेकिन ये कांग्रेस सरकार की कामयाबी ही है कि लोग चर्चा में कहते कि कांग्रेस सत्ता में वापस आ सकती है। दोनों ही पार्टियों में अब दो फैक्टर देखने लायक होंगे। बीजेपी में वसुंधरा राजे और कांग्रेस में सचिन पायलट ये दोनों चुनाव को कितना प्रभावित करते हैं ये दिलचस्प होगा।
हर बार की तरह इस बार तस्वीर साफ क्यों नहीं दिख रही?
अविनाश कल्ला: बीजेपी कोई ठोस मुद्दा नहीं बता रही। वहीं, कांग्रेस भी अपने रंग से बिलकुल इतर है। इस बार सिर्फ एक ही नाम है, अशोक गहलोत। मुख्यमंत्री गहलोत इस बार अपने पांच दशक के राजनीतिक करियर का सबसे बड़ा गैंबल खेल रहे हैं। इस बार वो रेगुलर करेक्टर से बिलकुल अलग हैं। इस बार कैंपेन में सिर्फ वही दिखाई दिए हैं। उन्होंने अपने हिसाब से सीटें भी तय की हैं। वहीं, भाजपा में कहने को तो अमित शाह और मोदी जी यहां आए हैं, उन्होंने भी अपनी लाइन में सिर्फ हिंदुत्व और केंद्र की योजना रखी है। घूम-फिर के सिर्फ मोदी की गारंटी पर चुनाव है।
इस चुनाव में राजस्थान के अहम मुद्दे क्या रहे?
अभिषेक तिवारी: यहां बीजेपी ने अभी तक कोई ठोस लाइन तो क्लियर की नहीं है, जो कुछ है वो मोदी जी के इर्द-गिर्द ही है। यही वजह रहती है कि मोदी जी से जुड़े मुद्दे ही लोगों के जेहन में प्रमुख हो जाते हैं। जैस राम मंदिर का मुद्दा हो गया। अब कांग्रेस के पास इनका काउंटर करने के लिए उनकी योजनाएं ही हैं। ऐसा भी नहीं कि वो इसमें पिछड़े हों। उनकी योजना की लोग सराहना भी करते हैं। आज भी राजस्थान में जब भी मुफ्त दवा की बात होती है तो नाम आता है अशोक गहलोत। वहीं, बीजेपी के नेता अपने भाषणों में कभी योजनाओं की बात नहीं करते, जबकि कांग्रेस के पास गिनाने को बहुत सारी योजनाएं हैं।
हिंदुत्व बनाम गारंटी, क्या चलने वाला है इस बार?
सत्येंद्र शुक्ला: यहां चुनाव कांग्रेस बनाम भाजपा नहीं चल रहा है। यहां सीधी लड़ाई गहलोत बनाम मोदी की चल रही है। यहां गहलोत जी पूरी तरह से मैदान में उतरे हुए हैं। वहीं, मोदी जी ने भी यहां अपनी प्रतिष्ठा का सवाल बना रख है। यहां आप देख सकते हैं कि कैंपेन में दिखता है 'मोदी साधे राजस्थान' इसी तरह के स्लोगन दिखाई देते हैं। वहीं, गहलोत जी जानते हैं कि भाजपा यहां पेपर लीक का राग अलाप कर नुकसान पहुंचाने की तैयारी में है। इसके तोड़ के लिए उन्होंने युवाओं को ध्यान में रखते हुए सात गारंटी की बात छेड़ी। चिरंजीवी योजना, ऑफिस योजना, आपदा योजना इस तरह की सात गारंटी गहलोत जी ने दी हैं। साफ है कि गहलोत यहां अपनी योजनाओं के दम पर लड़ रहे हैं। बाकी भाजपा तो अपना हिंदुत्व कार्ड लेकर ही चल रही है।
हिंदुत्व, ध्रुवीकरण पर ही होगी लड़ाई या जनता मुद्दों के बारे में भी सोच रही है?
सौरभ भट्ट: दोनों ही पार्टियां जानती हैं कि जातिगत समीकरण ही चुनाव में सबसे ज्यादा प्रभावी होने वाला है। ये पार्टियों के टिकट बंटवारे में भी साफ नजर आया है। इसके अलावा मुद्दों की बात करें तो गहलोत जी पांच साल तक लगातार योजनाओं के भरोसे चलते आए हैं। वो लगातार बोल भी रहे हैं 'मैं देते थकूंगा नहीं, आप लेते-लेते थक जाओगे'। लोग ये मान भी रहे हैं कि अशोक गहलोत ने बहुत अच्छा काम किया है। इसके बावजूद मुद्दे अपनी जगह हैं और भाजपा जानती है कि उनको किस तरह से भुनाना है। पेपर लीक को लेकर ईडी की कार्रवाई कराई गई। कहीं न कहीं कांग्रेस भी जानती है कि इसको लेकर वो बैकफुट पर है।