Home राज्यों से सांसदों का विधायक बनने के लिए अपनों से ही कड़ा संघर्ष

सांसदों का विधायक बनने के लिए अपनों से ही कड़ा संघर्ष

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 जयपुर.

राजस्थान विधानसभा की चुनावी बाजी पलटने के लिए भाजपा ने सात सांसदों को चुनावी मैदान में उतारा है, लेकिन कई सीटों पर दांव उलटा पड़ता दिख रहा है। पार्टी से बगावत करके चुनावी मैदान में ताल ठोक रहे प्रत्याशियों से ही सांसदों को कड़ी टक्कर मिल रही है। हालांकि कुछ सीटों पर डैमेज कंट्रोल की भी कोशिश हो रही है, लेकिन उनके लिए राह आसान नहीं है।

हार मिली तो चार महीने बाद होने वाले लोकसभा चुनाव में टिकट के लिए भी लाले पड़ जाएंगे। चुनाव जीतने की स्थिति में सांसद लोग विधायक बनने के बाद राज्य में बीजेपी की सरकार बनने पर मंत्री के लिए प्रबल दावेदार हो जाएंगे। अमर उजाला की ग्राउंड रिपोर्ट में अभी तक केवल विद्याधर नगर से दीया कुमार की सीट सबसे सुरक्षित दिख रही है, जबकि सांचौर, किशनगढ़, तिजारा और खींवसर में सांसदों को बड़ी चुनौती मिल रही है। इन फंसी हुईं सीटों को सांसद कैसे निकालकर लाते है या फिर शिकस्त खाते हैं। तीन दिसंबर को यह देखना बेहद दिलचस्प होगा।

विद्याधरनगर में फैल सकती है दीया की रोशनी
भाजपा के लिए विद्याधरनगर सबसे सुरक्षित सीट मानी जाती है। इस सीट पर राजपूत समाज का ज्यादा प्रभाव है। इससे पहले भैरोसिंह शेखावत के दामाद नरपत सिंह राजवी दो बार के विधायक रहे, लेकिन भाजपा ने इस बार टिकट बदलकर जयपुर राजघराने की और राजसमंद की सांसद दीया कुमारी को प्रत्याशी बनाया है। राजवी को चित्तौडगढ़ से टिकट दिया गया है। दीया कुमारी के सामने कांग्रेस प्रत्याशी सीताराम अग्रवाल मैदान में है। सीताराम अग्रवाल पिछली बार भी इस सीट से बड़े अंतर से चुनाव हार गए थे जबकि बीजेपी इस सीट को लगातार बड़े अंतर से चुनाव जीत रही है। इस सीट पर अभी भी एकतरफा माहौल है। यह बीजेपी की सबसे मजबूत सीट मानी जाती है।

शेखावत के शांत पड़ने से राठौड़ की राह आसान
जयपुर ग्रामीण से सांसद राज्यवर्धन सिंह राठौड़ को टिकट मिलने के बाद से ही उनका विरोध हो रहा था। 2018 में यहां से भाजपा प्रत्याशी रहे राजपाल सिंह शेखावत और उनके समर्थकों की ओर से जोरदार विरोध प्रदर्शन किया जा रहा था। टिकट न मिलने पर शेखावत ने निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर नामांकन भी कर दिया था, लेकिन नौ नवंबर को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के फोन आने के बाद शेखावत शांत पड़ गए। उन्होंने कहा कि शाह ने मुझे भरोसा दिया है। इस सीट से मौजूदा विधायक और कैबिनेट मंत्री लाल चंद कटारिया ने पहले ही चुनाव लड़ने से मना कर दिया था, जिसके कारण कांग्रेस ने एनएसयूआई के प्रदेश अभिषेक चौधरी को मैदान में उतारा है। अब इस सीट पर राठौड़ की राह आसान मानी जा रही है।

भीतरघात से निपटना बाबा के लिए चुनौती
पिछली बार तिजारा सीट से संदीप यादव निर्दलीय विधायक बने थे। यादव और मुस्लिम का प्रभाव ज्यादा होने से भाजपा ने अलवर के सांसद बाबा बालकनाथ को मैदान में उतारा है, लेकिन भाजपा से पूर्व विधायक मामन सिंह ने भी नामांकन कर दिया था। हालांकि मामन सिंह को मनाकर पर्चा वापस करा लिया गया है, लेकिन खतरा टला नहीं है। बाबा बालकनाथ के नामांकन सभा में पूर्व सभापति संदीप दायमा ने मंच एक बयान दिया था, जिससे सिख समाज के लोग नाराज हो गए। संदीप को पार्टी से छह साल के लिए बाहर भी कर दिया गया, लेकिन पार्टी को अंदरखाने ही कड़ी चुनौती मिल रही है।

देवजी को मिल रही बागियों से कड़ी टक्कर
जालोर सिरोही के सांसद देवजी पटेल को भाजपा ने सांचौर से मैदान में उतारा है। पिछले दस साल से कांग्रेस के सुखराम विश्नोई यहां से विधायक है। मौजूदा सरकार में मंत्री भी है। इस बार भी वह चुनाव लड़ रहे हैं, लेकिन सांसद देवजी पटेल के लिए सबसे बड़ी मुश्किल यह है कि पार्टी से बगावत करके जीवा राम चौधरी चुनावी मैदान में ताल ठोक रहे हैं। दाना राम चौधरी भी टिकट मांग रहे थे, लेकिन नहीं मिला। दानाराम भी जीवाराम चौधरी को अपना समर्थन दे रहे हैं, जिससे पटेल की परेशानी और बढ़ गई है। तमाम कोशिश के बावजूद बागी प्रत्याशी को पार्टी के नेता मनाने में कामयाब नहीं हो पाए।

असली परीक्षा अब
किरोड़ी लाल मीणा, सवाईमाधोपुर: पांच साल सरकार के खिलाफ मोर्चा लेने वाले किरोड़ी लाल मीणा की असली परीक्षा अब होगी। पिछली बार 2018 में यहां से भाजपा से चुनाव लड़ चुकी आशा मीणा इस बार निर्दलीय प्रत्याशी हंै। इससे मीणा वोट बैंक में एक तरह से सेंधमारी हो जाएगी, जिससे राज्यसभा सांसद और भाजपा प्रत्याशी किरोड़ी लाल को काफी पसीना बहाना पड़ेगा। यहां से कांग्रेस ने मौजूदा विधायक दानिश अबरार को ही टिकट दिया है। अबरार मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के सलाहकार भी है। कभी वह सचिन पायलट के बेहद करीबी थे। कांग्रेस के बागी अजीज आजाद भी चुनाव लड़ रहे हैं।

भाजपा सांसद और कांग्रेस विधायक में कांटे की टक्कर
नरेंद्र खीचड़, मंडावा: मंडावा से नरेंद्र खीचड़ दो बार विधायक रह चुके हैं। 2013 में वह निर्दलीय विधायक थे। 2018 में भाजपा से टिकट मिला। जीत गए, लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्हें झुंझुनूं सीट से भाजपा ने उतार दिया। तब भी खींचड़ जीत गए। इसके बाद मंडावा सीट पर उपचुनाव हुआ, जिस पर कांग्रेस प्रत्याशी रीटा चौधरी को विजय मिली। साढ़े चार साल तक रीटा चौधरी क्षेत्र में सक्रिय रही।  इस सीट पर सांसद और विधायक दोनों को स्थानीय लोग पंसद कर रहे।

सांसद के लिए समीकरण साधना चुनौती
भागीरथ चौधरी, किशनगढ़: जाट बहुल सीट पर पिछली बार 2018 में सुरेश टांक विधायक बने। टांक गैर जाट हैं। इस बार अजमेर सांसद भागीरथ चौधरी और विधायक सुरेश टांक के बीच टक्कर है, लेकिन मुकाबले को भाजपा से कांग्रेस में शामिल होकर चुनाव लड़ रहे विकास चौधरी ने और दिलचस्प बना दिया है।

हनुमान का अपने पुराने कमांडर से मुकाबला
हनुमान बेनीवाल, खींवसर: नागौर के सांसद हनुमान बेनवाल खींवसर सीट से मैदान में है। बेनीवाल को भाजपा प्रत्याशी रेवंतराम डांगा चुनौती दे रहे हैं। वे पहले बेनीवाल के साथ ही जुड़े थे। लेकिन बेनीवाल को उनका ही कमांडर ललकार रहा है। डांगा को भाजपा में शामिल कराने में नागौर से भाजपा प्रत्याशी ज्योति मिर्धा की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण रही है।