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‘मेरे हाथों में शादी नहीं सेंट्रल जेल की लकीरें’, दिव्या मदेरणा का हनुमान बेनीवाल को जवाब

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जयपुर.

राजस्थान के जोधपुर से कांग्रेस विधायक दिव्या मदेरणा ने अपने धुर विरोधी हनुमान बेनीवाल पर जमकर निशाना साधा है। दिव्या मदेरणा ने विवाह क्यों नहीं किया, इसका जवाब हनुमान बेनीवाल को दिया है। दिव्या मदेरणा ओसियां से दूसरी बार विधायक के लिए नामांकन भरने से पहले दिव्या मदेरणा सेंट्रल जेल गईं। जहां उन्होंने पिता को याद किया। नामांकन के बाद उन्होंने सभा को संबोधित किया। इस दौरान वो कई बार भावुक हुईं।, साथ ही उन्होंने विरोधियों पर जमकर निशाना साधा। बता दें हनुमान बेनीवाल ने कहा था कि दिव्या मदेरणा को शादी कर लेनी चाहिए। इससे दिमाग ठीक रहता है।

दिव्या मदेरणा ने कहा-  लोग कहते हैं कि शादी कर लो, मैंने कभी जवाब नहीं दिया, लेकिन आज देती हूं। मेरे हाथों में शादी की लकीरें नहीं, सेंट्रल जेल की लकीरें थीं'। ओसियां से नामांकन भरने के बाद रैली को संबोधित करते हुए दिव्या मदेरणा ने हनुमान बेनीवाल का नाम लिए बिना उन पर जमकर निशाना साधा। रैली के दौरान दिव्या ने कहा कि मुझ पर निम्न से निम्न स्तर के वार किए गए। सोचिए अगर पिता जेल की सलाखों में हो तो बेटी शादी कैसे कर ले। उनकी एक-एक रात जेल में कैसे गुजरी होगी, ऐसे में बेटी को शादी करना शोभा नहीं देता है। मेरे भाग्य की लकीरों में सेंट्रल जेल थी। मैंने 10 साल वहां के फेरे किए हैं। पिता की सेवा करना ही मेरा कर्तव्य था। संबोधन के दौरान दिव्या मदेरणा ने अपने पिता की जेल की स्थिति और उपचार के हालात बताए। इस दौरान वह कई बार भावुक भी हो गईं। उन्होंने कहा कि मेरे पास अब सिर्फ एक ही काम है- ओसियां की जनता की सेवा करना।

दिव्या बोलीं- शेरनी की तरह लडूंगी
दिव्या ने कहा- शेरनी की तरह लडूंगी चुनाव। कुछ लोग कहते हैं कि शेरनी को जंगल में भेज दो, वहां भूख-प्यास मिट जाएगी। शेरनी शेर के साथ ही रहती है। ओसियां विधायक ने कहा कि उन लोगों की इन बातों पर हंसी आती है, लेकिन क्या वो ऐसी बातें अपनी बेटी के साथ कर सकते हैं ? वो न भूखी हैं, न प्यासी हैं, वो तृप्त हैं. ओसियां की जनता के लिए हमेशा काम करती रहूंगी। दिव्या मदेरणा सोमवार को नामांकन से पहले जोधपुर सेंट्रल गईं। जेल के मुख्य द्वार पर जाकर अपने पिता को याद करते हुए हाथ जोड़ेंय़ अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर उन्होंने लिखा – मैंने दस साल अपने जीवन के यहां पर सजदे किए हैं। मेरी राजनीतिक पैदाइश इस दर्द और वेदना से हुई ह। क्रूंदन और विरह जो नियति ने मेरे भाग्य में लिखा वहीं से मेरे राजनीतिक संघर्ष का आगाज हुआ।

चुनाव हारे हिम्मत नहीं! 50 साल में 30 बार सियासी झटका
राजस्थान में विधानसभा चुनाव को लेकर सियासी पारा हाई है। सूबे में कई पार्टियों ने अपनी फील्डिंग सेट कर दी है। उम्मीदवार नामांकन करवा रहे हैं। इस बीच एक अजब-गजब खबर सामने आई है। दरअसल, करणपुर विधानसभा क्षेत्र से एक ऐसे प्रत्याशी ने निर्दलीय तौर पर नॉमिनेशन करवाया है जिनका रिकॉर्ड सुनकर हर कोई हैरान है। 78 साल के मनरेगा मजदूर तीतर सिंह अबतक पिछले 50 साल में 30 से अधिक बार चुनाव लड़ चुके हैं लेकिन हर बार उन्हें सियासी झटका यानी हार ही हाथ लगी है। एक बार फिर वो मैदान में हैं। जानकरी के मुताबिक, तीतर सिंह 1970 के दशक से राजस्थान में हर चुनाव लड़ा है। हर बार उनकी जमानत भी जब्त हुई है, फिर भी 78 वर्षीय तीतर सिंह निराश नहीं हैं। एक बार फिर वह 25 नवंबर के विधानसभा चुनावों में एक बार फिर अपनी किस्मत आजमाने के लिए तैयार हैं। करणपुर विधानसभा क्षेत्र से मैदान में उतरे निर्दलीय उम्मीदवार ने यह पूछे जाने पर कि अब तक लगभग 30 चुनाव हारने के बाद भी वह क्यों चुनाव लड़ रहे हैं, उन्होंने जवाब दिया, "मुझे क्यों नहीं लड़ना चाहिए। सरकार को जमीन, सुविधाएं देनी चाहिए… यह चुनाव अधिकारों की लड़ाई है।

उन्होंने कहा कि वह लोकप्रियता या रिकॉर्ड के लिए चुनाव नहीं लड़ रहे हैं।" तीतर सिंह ने दावा किया कि चुनाव लड़ना अपने अधिकारों को हासिल करने का एक हथियार है, जिसकी धार उम्र के साथ कम नहीं हुई है। उन्होंने पंचायत से लेकर लोकसभा तक हर चुनाव लड़ा है लेकिन हर बार उन्हें हार का सामना करना पड़ा। वह एक बार फिर उसी जुनून और उत्साह के साथ तैयारी कर रहे हैं और इस महीने के अंत में विधानसभा चुनाव के लिए अपना नामांकन पत्र दाखिल किया है। जानकारी के मुताबिक, '25 एफ' गांव के निवासी तीतर सिंह दलित हैं। उन्होंने 1970 के दशक में पहली बार चुनाव लड़ने का फैसला किया जब उन्हें लगा कि उनके जैसे लोग नहर कमांड क्षेत्र में भूमि आवंटन से वंचित हैं। उनकी मांग थी कि सरकार भूमिहीन और गरीब मजदूरों को जमीन आवंटित करे और इसके साथ ही जब भी मौका मिले वह चुनाव मैदान में उतरने लगे।

तीतर सिंह ने बताया,''एक के बाद एक चुनाव लड़े लेकिन जमीन आवंटन की उनकी मांग अब तक पूरी नहीं हुई है और उनके बेटे भी दिहाड़ी मजदूर के रूप में काम कर रहे हैं। उनकी तीन बेटियां और दो बेटे हैं और उनके पोते-पोतियों की भी शादी हो चुकी है। श्री सिंह ने कहा कि उनके पास जमा पूंजी के रूप में 2,500 रुपये नकद हैं लेकिन कोई जमीन, संपत्ति या वाहन नहीं है।" जानकारी के अनुसार, तीतर सिंह महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के तहत दिहाड़ी मजदूर के रूप में काम करते हैं, लेकिन जैसे ही चुनाव आते हैं, वह अपना ध्यान अपने लिए चुनाव प्रचार पर केंद्रित कर देते हैं। तीतर सिंह को 2008 के राजस्थान विधानसभा चुनाव में 938 वोट, 2013 के विधानसभा चुनाव में 427 और 2018 के विधानसभा चुनाव में 653 वोट मिले थे। हर बार उनकी जमानत जब्त हुई है। इस बार वो फिर से मैदान में हैं।