नई दिल्ली
नीति आयोग के सदस्य रमेश चंद ने बीते गुरुवार (26 अक्टूबर) को प्रति व्यक्ति खाद्य उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि के बावजूद 2030 तक जीरो-हंगर (Zero Hunger) लक्ष्य के चूकने की आशंका व्यक्त की.
मिंट की रिपोर्ट के अनुसार, उन्होंने कृषि उत्पादकता वृद्धि को सालाना 2 फीसदी से अधिक बढ़ाने, ताकि जनसंख्या में वृद्धि जारी रहने पर भी घरेलू खाद्य मांग को पूरा करने में कोई समस्या न हो, की वकालत करते हुए एक कार्यक्रम में ये टिप्पणियां कीं.
उन्होंने कहा कि पिछले दो दशकों में कृषि संबंधी उत्पादों की कीमतें अन्य वस्तुओं की तुलना में 26 फीसदी अधिक बढ़ी हैं. यह, बढ़ती खाद्य कीमतों और पर्यावरण संबंधी चिंताओं के साथ मिलकर, भारत की कृषि उत्पादकता को जांच के दायरे में लाता है.
रमेश चंद के अनुसार, प्रति व्यक्ति खाद्य उत्पादन बढ़ने के बावजूद कुपोषण बढ़ गया है, खासकर पिछले आठ वर्षों में. उन्होंने इसके लिए बढ़ती खाद्य कीमतों को जिम्मेदार ठहराया.
उन्होंने आगे इस बात पर चिंता व्यक्त की कि भारत संभावित रूप से 2030 तक जीरो-हंगर लक्ष्य से चूक जाएगा.
गौरतलब है कि विश्व बैंक की 2015 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में कुपोषण अन्य ब्रिक्स सदस्य देशों की तुलना में दो से सात गुना अधिक है. संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन की 2021 की रिपोर्ट में भी इन्हीं नतीजों की ओर संकेत किया गया है.
2015 के बाद से वैश्विक भूख दर में वृद्धि के पीछे खाद्य पदार्थों की बढ़ती कीमतों को एक महत्वपूर्ण कारक के रूप में देखा गया है, खासकर भारत समेत अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और दक्षिण एशिया जैसे क्षेत्रों में.
2023 ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत को कुल 125 देशों में 111वां स्थान दिया गया है. केंद्र सरकार ने त्रुटिपूर्ण प्रक्रिया अपनाए जाने का हवाला देते हुए लगातार तीसरी बार विश्व बैंक की रिपोर्ट का विरोध किया है.
मिंट के अनुसार, हाल के दशकों में जनसंख्या में लगभग एक प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि हुई है, हालांकि भारत में खाद्य उत्पादन बढ़कर 1.8 किलोग्राम प्रति व्यक्ति प्रतिदिन हो गया है, जो 1970 में 1.2 किलोग्राम था.
चंद ने कहा, ‘आने वाले ढाई दशकों में भारत की जनसंख्या वृद्धि 0.8 फीसदी होने का अनुमान है और भविष्य में घरेलू खाद्य मांग को पूरा करने के लिए आवश्यक दर पिछली दर की दो-तिहाई होगी. हमारी भूमि उत्पादकता को देखते हुए, जो पिछले कुछ दशकों में 2.75 प्रतिशत की दर से बढ़ी है, भविष्य में यदि उत्पादकता 2 प्रतिशत सालाना की दर से बढ़ती है तो हमें अपनी घरेलू मांग पूरा करने में कोई समस्या नहीं होगी. हालांकि, बदलते पर्यावरण और जलवायु; प्राकृतिक संसाधनों के अत्यधिक दोहन; और सबसे महत्वपूर्ण, कुपोषण का कारण बनती कृषि वस्तुओं की बढ़ती कीमतों के चलते कृषि उत्पादकता को लेकर चिंताएं हैं.’
इसलिए, चंद ने उत्पादकता वृद्धि को सालाना 2 फीसदी से अधिक बढ़ाने की वकालत की, यह सुनिश्चित करते हुए कि यह लागत प्रभावी और टिकाऊ हो. उन्होंने भारत में छोटे किसानों के महत्व पर भी प्रकाश डाला.