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दुनिया में छा सकती है मंदी, वर्ल्ड बैंक ने दी चेतावनी, कहा- रूस के यूक्रेन पर हमले ने स्थिति को किया खराब

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पिछले कई महीनों से रूस और यूक्रेन के बीच जंग जारी है, जिसका असर दुनिया भर के देशों पर पड़ रहा है. कहीं खाद्य सामग्री को लेकर समस्या बढ़ रही है तो कहीं पेट्रोल-डीजल के बढ़ते दामों से लोग परेशान हैं. इसी कड़ी में वर्ल्ड बैंक ने वैश्विक मंदी के आने की चेतावनी दी है, जो बेहद चिंताजनक है. विश्व बैंक के प्रमुख डेविड मेलपास ने चेतावनी देते हुए कहा कि रूस के यूक्रेन पर हमले की वजह से वैश्विक आर्थिक मंदी का खतरा दुनिया भर में मंडराने लगा है. क्योंकि युद्ध के चलते खाद्य सामग्री, ऊर्जा और खाद के दामों में तेजी से उछाल आ रहा है. अमेरिका में आयोजित एक व्यापारिक कार्यक्रम में डेविड मेलपास ने कहा कि आर्थिक मंदी से कैसे बच सकते हैं, यह कह पाना मुश्किल है. चीन में कोरोना वायरस के चलते लगातार लॉकडाउन ने वैसे भी बाजार की गति को धीमा कर दिया है. उस पर रूस के यूक्रेन पर हमले ने स्थिति और खराब कर दिया है.

ऊर्जा के दोगुने दाम आर्थिक मंदी लाने में अहम
बीबीसी में प्रकाशित खबर के मुताबिक डेविड का कहना है कि ऊर्जा के दामों का दोगुना हो जाना आर्थिक मंदी लाने में अहम रहा है. पिछले महीने विश्व बैंक ने अपने वार्षिक आर्थिक वृद्धि के अनुमान को लगभग पूर्ण प्रतिशत घटाकर 3.2 कर दिया. जीडीपी यानी सकल घरेलू उत्पाद आर्थिक वृद्धि मापने के अहम तरीकों में से एक है. इससे आसानी से पता लगाया जा सकता है कि आर्थिक स्थिति कितनी बेहतर या बदतर है. इसलिए अर्थशास्त्री और केंद्रीय बैंक इस पर बारीकी से नजर रखते हैं. इससे व्यापार जगत को यह अनुमान लगाने में मदद मिलती है कि कब ज्यादा श्रमिकों को रखना है या निवेश करना है या कब उसे कम करना है. सरकार भी टैक्स से लेकर खर्च तक सभी फैसले इसी के आधार पर लेती है. ब्याज दरों को कम करना है या बढ़ाना है, इस पर विचार करने में भी यह एक अहम कुंजी है.

उर्वरक, खाद्य सामग्री और ऊर्जा की हो रही कमी
डेविड मेलपास का कहना है कि कई यूरोपियन देश अब भी तेल और गैस के लिए रूस पर निर्भर हैं. जबकि पश्चिमी देश ऊर्जा के मामले में रूस पर अपनी निर्भरता को कम करने की योजना पर आगे बढ़ रहे हैं. डेविड एक और कार्यक्रम में यह बात दोहरा चुके हैं कि रूस का गैस की आपूर्ति कम करना मंदी का कारण बन सकता है. इसके पहले ऊर्जा की बढ़ी कीमतें जर्मनी पर अतिरिक्त भार डाल ही रही थीं जो यूरोप की सबसे बड़ी और दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है. इसके अलावा विकासशील देश भी उर्वरक, खाद्य सामग्री और ऊर्जा की कमी से जूझ रहे हैं.