Home मध्यप्रदेश अमित शाह 22 अक्टूबर को मप्र आएंगे, चुनावी रणनीति पर होगी चर्चा

अमित शाह 22 अक्टूबर को मप्र आएंगे, चुनावी रणनीति पर होगी चर्चा

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जबलपुर

महाकोशल और विंध्य में भाजपा कार्यकर्ताओं में उत्साह जगाने के लिए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह 21 अक्टूबर को जबलपुर और 22 अक्टूबर को रीवा आ रहे हैं। शाह दोनों जगह कार्यकर्ताओं की बैठक लेंगे। जबलपुर से भाजपा के चार बार के सांसद राकेश सिंह भी विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं।

आठों विधानसभा सीटों पर भाजपा काबिज

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी पहले जबलपुर में जनसभा कर चुके हैं लेकिन केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह की यह यात्रा पूरी तरह संगठन को कसने के लिए हो रही है। विंध्य और महाकोशल में भाजपा को अलग-अलग चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।

वे 22 अक्टूबर को रीवा में भी पार्टी पदाधिकारियों की बैठक लेंगे। जबलपुर और रीवा में आठ- आठ विधानसभा सीटें हैं। इनमें जबलपुर में चार सीटें भाजपा के पास तो चार विधानसभा सीटों पर कांग्रेस का कब्जा है। वहीं रीवा की आठों विधानसभा सीटों पर भाजपा काबिज है।

94 सीटों पर घोषणा

गौरतलब है कि विधानसभा चुनाव के लिए प्रत्याशियों के नामों पर चर्चा के लिए बीजेपी की केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक शुक्रवार को दिल्ली में होगी। इसमें प्रधानमंत्री मोदी भी मौजूद रहेंगे। बैठक के बाद भाजपा के बचे प्रत्याशियों के नाममें से पांचवी सूची घोषित होने की संभावना है। पार्टी ने अभी तक 136 प्रत्याशियों के नाम घोषित किए हैं। बाकी 94 सीटों पर घोषणा शेष है।

ध्य क्षेत्र को लेकर होगी चर्चा
पार्टी सूत्रों ने बताया कि बैठक में मुख्य रूप से विंध्य क्षेत्र को लेकर चर्चा होगी, जहां पार्टी के कई बड़े नेता नाराज चल रहे हैं. इसके साथ ही पूरे प्रदेश की चुनाव रणनीति को भी इस बैठक में अंतिम रूप दिया जाएगा. माना जा रहा है कि गृह मंत्री अमित शाह बताएंगे कि कैसे विधानसभा चुनाव के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे को आगे करते हुए उम्मीदवार अपना प्रचार अभियान चलाएं? दरअसल, सत्ता में वापसी के लिए बीजेपी के लिए विंध्य क्षेत्र में एक बार फिर बेहतर प्रदर्शन जरूरी है.

 इसी वजह से पार्टी ने अपनी इस महत्वपूर्ण बैठक के लिए रीवा का चयन किया है. हाल ही में पूर्व विधानसभा अध्यक्ष श्रीनिवास तिवारी के पोते सिद्धार्थ तिवारी के बीजेपी में शामिल होने के बाद क्षेत्र में राजनीतिक समीकरण भी बदले हैं, लेकिन अभय मिश्रा के दो महीने के भीतर ही पार्टी छोड़कर एक बार फिर कांग्रेस का दामन थामने से थोड़ी चिंता भी बढ़ी है.