मणिपुर
इजरायल और फिलिस्तीनी आतंकी समूह हमास की लड़ाई में एक के बाद एक दूसरे टैरर गुट भी शामिल हो रहे हैं. हाल में लेबनान से हिजबुल्लाह भी जंग में कूद पड़ा. चौतरफा हमलों से घिरे देश को बचाने के लिए दुनियाभर से यहूदी नागरिक इजरायल लौट रहे हैं. मणिपुर का कुकी समुदाय भी इसमें शामिल है.
दोनों में क्या है कनेक्शन
इस भारतीय कम्युनिटी को इजरायल 'लॉस्ट ट्राइब' यानी खोई हुई जनजाति का भी दर्जा देता है. लेकिन सवाल ये है कि हजारों सालों से मणिपुर में रहते एक भारतीय समुदाय और यहूदियों का आपस में क्या नाता है. क्यों नागरिकता के कड़े नियमों वाला देश इन्हें अपना रहा है?
इजरायल से भागकर भारत पहुंचे
ईसा पूर्व 8वीं सदी की बात है. इजरायल में तब लगातार विदेशी आक्रमण हो रहे थे. इसी दौरान असीरियन शासन आया. इसने इजरायल के मूल निवासियों यानी यहूदियों की लगभग 12 जनजातियों को वहां से हटा दिया. ये लोग व्यापार के सिलसिले में पहले भारत भी आ चुके थे. ऐसे हमले के बाद कई जनजातियां भारत के अलग-अलग राज्यों में बस गईं. बेनी मेनाशे इन्हीं में से एक थी. ये वो यहूदी थे, जो मणिपुर और मिजोरम में रहने लगे.
19वीं सदी में पहली बार दिखी समानता
माना जाता है मणिपुर में रह रहे कुकी इजरायलियों के ही दूर के नाते-रिश्तेदार हैं. ये बात खुलने में भी लंबा समय लगा. 19वीं सदी में जब ईसाई मिशनरी देश के कोने-कोने तक पहुंचने लगे, तभी ये कुकी लोगों से भी मिले. वे यह देखकर हैरान रह गए कि कुकी कम्युनिटी के रीति-रिवाज यहूदियों से काफी मिलते-जुलते हैं. धीरे-धीरे कई परतें खुलीं.
जेनेटिक कोड भी मिलता-जुलता है
इसके लिए DNA टेस्ट भी हुआ. सेंट्रल फॉरेंसिक इंस्टीट्यूट कोलकाता ने साल 2005 में पाया कि कुकी जनजाति का जेनेटिक लिंक इजरायल के यहूदियों से है. माना गया कि दो बेहद दूर-दराज रहते लोगों का DNA नहीं मिल सकता है अगर उनमें कोई रिश्ता न हो. वहीं दोनों ही समुदायों में एक खास तरह का जेनेटिक सीक्वेंस कोड मिला. ये कोड उजबेकिस्तान में बसे यहूदियों में भी दिखा था.
वैसे इसमें भी एक समस्या है. कोड की ये समानता महिलाओं में ही दिखी, जबकि मेल DNA में ऐसी कोई खासियत नहीं थी. इसके पीछे भी क्रोमोजोम्स को जिम्मेदार मानते हुए ये यकीन कर लिया गया कि मणिपुर के बेनी मेनाशे की जड़ें इजरायल से हैं.
दुनियाभर में फैले अपने लोगों को बुला रहा इजरायल
वहां रहते ज्यूइश लोगों ने माना कि उनका ही एक टुकड़ा बिछुड़कर मणिपुर में भी बस गया है. उन्होंने बेनी मेनाशे समुदाय को लॉस्ट ट्राइब की मान्यता दी.
असल में सवा करोड़ से कुछ ज्यादा आबादी वाले यहूदी लगातार अपने लोगों की तलाश पूरी दुनिया में करते आए हैं. यहां तक कि उनके यहां लॉ ऑफ रिटर्न कानून है. इसके तहत उनके धर्म को मानने वाले लोग, चाहे जहां भी बसें हों, वापस लौट सकते हैं. इजरायल उन्हें नागरिकता भी देता है, और बसने में मदद भी करता है. बीते समय में काफी सारे कुकी इजरायल जा चुके.
किस तरह की समानताएं दिखती हैं
दोनों की भाषाओं और परंपराओं में काफी समानता है. बेनी मेनाशे कहलाते कुकी जो शॉल पहनते हैं, वो भी यहूदियों की उस शॉल जैसी है, जो वे प्रेयर के समय पहनते हैं. यहां तक कि कुकी लोग समय-समय पर जिस अलग देश की बात करते हैं, उसके प्रस्तावित झंडे पर इजरायल की तरह ही स्टार बना हुआ है, जिसे स्टार ऑफ डेविड कहते हैं.
तो क्या इजरायल में बस चुके कुकी खुश हैं?
साल 1950 में इजरायली सरकार ने लॉ ऑफ रिटर्न कानून बनाया. इसके तहत वो दुनियाभर के खोए हुए यहूदियों को अपने पास वापस बुलाने लगी. उन्हें नागरिकता देने का भी वादा किया. साथ ही रीसैटलमेंट में मदद भी दी जाने लगी. इसी दौरान मणिपुर से भी यहूदी लिंक वाले लोग वहां जाने लगे. लेकिन वे कितने खुश हैं, या इजरायल के लोगों ने उन्हें कितना अपनाया, इसपर विवाद है.
खतरे से भरी सीमाओं पर बसाने का आरोप
कथित तौर पर भारत से आए यहूदियों को गाजा पट्टी और वेस्ट बैंक के बॉर्डर इलाके में बसाया जाने लगा. ये खतरनाक इलाके हैं, जहां लगातार आतंकी एक्टिव रहते हैं. इनके प्योर ज्यूइश होने पर भी वहां के लोग सवाल उठाते रहे. यहां बता दें कि दुनिया के कई समुदायों की तरह यहूदी भी अपनी नस्ल को शुद्धता बनाए रखने पर जोर देते हैं. बहुत कम ही उनके धर्म परिवर्तन या अलग धर्म में रिश्ता करने जैसी बातें आती हैं.
भारत ने भी साल 2006 में एतराज जताया था कि ज्यूइश मिशनरी और कथित NGOs जबरन उनके लोगों को बहकाकर अपने यहां ले जा रहे हैं. वैसे इस आपत्ति के बाद क्या हुआ, इसका कोई लिखित दस्तावेज पब्लिक में उपलब्ध नहीं दिखता है.