Home राज्यों से बेटी को खोने से ज्यादा दुखदायी है सीबीआई की लापरवाही

बेटी को खोने से ज्यादा दुखदायी है सीबीआई की लापरवाही

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इलाहाबाद.

इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस फैसले के बाद अब कुछ नहीं कहना है। रोज पति-पत्नी मिलकर 100 से 200 रुपये कमाते हैं। कैसे जाएं सुप्रीम कोर्ट, कौन देगा खर्चा। यहां न्याय भी बहुत महंगा है। निठारी कांड के पीड़ित झब्बू लाल से जब आगे की कानूनी लड़ाई के बारे में पूछा गया तो उनका दर्द इस तरह फूट गया। झब्बू लाल और पत्नी सुनीता बीस वर्षों से निठारी में कपड़ों पर इस्त्री करने का काम करते हैं।

मोनिंदर पंढेर की कोठी डी-5 के आसपास ही इनकी दुकान लगती है और यहीं के लोग इनके ग्राहक हैं। इनकी 10 साल की बेटी ज्योति उस वक्त लापता हो गई थी और कुछ पता नहीं चला था। मंगलवार को जब झब्बू लाल और सुनीता से बातचीत की गई तो उनका गुस्सा सीबीआई पर फूट पड़ा। दोनों ने एक स्वर से कहा कि सीबीआई ने अच्छी तरह से काम नहीं किया। हम लोग तो गरीब आदमी हैं। बेटी को न्याय दिलाने के लिए पैसों की जरूरत है। हर दिन कमाई कर सौ से दो सौ रुपये कमाते हैं और इसी में गुजारा चलता है। तो अब हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में हम जैसे गरीब का कौन सुनेगा। झब्बू लाल कहते हैं कि पहले कोर्ट ने सुरेंद्र कोली और मोनिंदर पंढेर को दोषी बताया। अब वही कोर्ट ने दोनों को बरी कर दिया। अब ईश्वर पर ही भरोसा है। वह इस मामले में कहां जाएं। सुप्रीम कोर्ट जाने की हैसियत नहीं है।