भोपाल
उच्च शिक्षा विभाग में पदस्थ प्रोफेसर ही प्रोफेसर का दुश्मन बना हुआ है। उनकी समस्याएं बढाने के लिऐ किसी और दुश्मन की जरुरत नहीं है। वे आपस में ही एक दूसरे को नीचे खीचने में लगे हुए हैं। यही कारण है कि हाईकोर्ट की लडाई अब सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई है। यहां तक वित्त विभाग भी एजीपी देने के लिऐ फाइल को बारबार उच्च शिक्षा विभाग भेजकर अपना पल्ला झाड रहे हैं।
प्रोफेसरों में अपने दस हजार के एजीपी को लेकर लंबे समय से विवाद चला रहा आ रहा है। छठवें वेतनमान को शुरू हुए एजीपी के विवाद को विभाग सांतवें वेतनमान तक नहीं सुलझा पाई है। यही कारण है हाईकोर्ट से शुरू हुआ एजीपी का विवाद अब सुप्रीम कोर्ट तक पहुुंच गया है, जिस पर उच्च शिक्षा विभाग को जवाब देने में पसीना छूट रहा है।
यह पूरा विवाद कोई और नहीं बल्कि विभाग द्वारा 2012 में कराई गई एमपीपीएससी की भर्ती से आए 238 प्रोफेसर ही खडा कर रहे हैं। स्वयं का सिलेक्शन आठ हजार एजीपी पर होने के बाद अब सुप्रीम कोर्ट के आदेश से दस हजार एजीपी हो गया है, लेकिन उन्हें तकलीफ पदोन्नत होने वाले प्रोफेसरों को मिलने वाले नौ हजार से दस हजार होने वाले एजीपी से है। उनका तर्क है कि वे एमपीपीएससी से सीधी भर्ती होकर आए हैं, तो एसोसिएट प्रोफेसर से पदोन्नत हो प्रोफेसरों को दस हजार एजीपी क्यों दिया जाएगा। उन्हें नौ हजार का एजीपी ही दिया जाए। जबकि पदोन्न प्रोफेसरों को दस हजार एजीपी मिलने से सीधी भर्ती के प्रोफेसर को कोई नुकसान नहीं हैं। यही कारण है कि एक दशक से प्रोफेसरों की वरिष्ठ सूची तैयार नहीं हो सकी है। सीधी भर्ती वाले अपने आप को वरिष्ठात सूची में ऊपर रखना चहता हैं।
ऐसे किया पदोन्न प्रोफेसर पर प्रहार
साीधी के पीजी कालेज में अपर प्रमुख सचिव केसी गुप्ता को अनुमोदन लेकर मंत्रालय में पदस्थ सीधी भर्ती के प्रोफेसर 2006 के प्रोफेसर को प्राचार्य के दायित्व से मुक्त कराकर 2012 में नियुक्त हो सीधी भर्ती के प्रोफेसर को प्राचार्य का प्रभार दिला दिया। तब मामला हाईकोर्ट पहुंचा और विभाग से जवाब तलब किया गया कि वे प्रोफेसर की वरिष्ठता का आधार बताएं। हाईकोर्ट के आदेश आते ही विभागीय अधिकारियों की नींद उड गई। तब सीधी भर्ती के प्रोफेसर जो मंत्रालय में ओएसडी की भूमिका में उन्होंने रातोंरात पदोन्नत प्रोफेसर को दोबारा सीधी पीजी कालेज में प्रभारी प्राचार्य नियुक्त किया। यह स्थिति सिर्फ सीधी मात्र की हैं। ऐसे राज्य में करीब 100 इसी व्यवस्था के शिकार हैं। जहां पदोन्नत प्रोफेसर को हटाकर 2012 में नियुक्त होए प्रोफेसरों को प्रभारी प्राचार्य नियुक्त किया गया है। जबकि पदोन्नत प्रोफेसर लंबे समय से प्रभारी प्राचार्य की भूमिका निभा रहे थे।
सीधी भर्ती में 8 से दस हजार हुआ एजीपी
विभाग ने एमपीपीएससी से 2012 में 238 प्रोफेसरों को नियुक्त करने के लिए विज्ञापन जारी किया था। इसमें प्रोफेसरों का एपीजी 8000 निर्धारित किया गया था। भर्ती होने के बाद सीधी भर्ती के प्रोफेसरों ने हाईकोर्ट में रिट लगाकर अपना एजीपी 10 हजार करा लिया है। अब उन्हें प्रमोट प्रोफेसरों के 10 हजार होने वाले एजीपी से है। इसलिये वे मंत्रालय में पदस्थ होकर फाइलों पर जबरिया आपत्तियां दर्ज करते रहते हैं।
यह है प्रोपेसरों की व्यवस्था
विभाग में प्रोफेसरों के चार स्तर बने हुए हैं। इसमें प्रोफेसरों की भर्ती एमपीपीएससी से असिस्टेंट प्रोफेसर के तौर पर होती है। इसके बाद वे एसोसिएट प्रोफेसर के तौर पर प्रमोट होते हैं। तीसरे स्तर पर एमपीपीएससी से सीधी भर्ती होकर प्रोफेसर बनते हैं। वहीं एसोसिएट पदोन्नति लेकर प्रोफेसर बन जाते हैं। सीधी भर्ती और पदोन्नत प्रोफेसर चौथे चरण में प्राचार्य बनते हैं। इसलिए विभागीय अधिकारियों ने पदोन्नत होकर बने प्रभारी प्राचार्यों को हटाने का कार्य शुरू कर सीधी भर्ती के प्रोफेसरों को प्रभारी प्राचार्य बनाने का कार्य शुरू कर दिया है। इससे पदोन्नत प्रोफेसर काफी नाराज है।
वित्त विभाग पहुंंच उच्च शिक्षा के सचिव
उच्च शिक्षा विभाग में सचिव के तौर पर रहे अजीत कुमार अब वित्त विभाग पहुंच गये हैं। उन्हें पदोन्नत प्रोफेसर को दस हजार एजीपी देने की फाइल दी गई है। इसे लेकर वे फाइल पर आपत्ति लगाकर बार-बार विभाग भेज देते हैं। इस दौरान उन्हें बताया गया है कि विभाग में प्रोफेसरों के दस हजार पर हैं। इसमें सभी पदों पर भर्ती नहीं हैं। पदोन्नत प्रोफेसरों को दस हजार एजीपी दिया जाएगा, तो विभाग पर 67 करोड का वित्तीय भार आएगा। इसका असर राज्य शासन के खजने पर नहीं पढेगा। अब फाइल वित्त विभाग के पास पहुंच गई है। अजीत कुमार की स्वीकृति मिलने के बाद पदोन्नत प्रोफेसरों को दस हजार एजीपी मिलना शुरू हो जाएगा।