जयपुर.
राजस्थान में सीएम अशोक गहलोत और सचिन सचिन पायलट दिखावे के तौर पर ही सही फिलहाल एक मंच पर है। सचिन पायलट बार-बार कह रहे हैं कि राजस्थान में कांग्रेस की सरकार रिपीट होगी। जबकि दो महीने पहले यही सचिन पायलट सीएम गहलोत पर करप्शन के आरोप लगा हिसाब मांग रहे थे। सचिन पायलट के रूख में बदवाल केसी वेणुगोपाल के ठोस आश्वासन के बाद आया है या फिर सचिन पायलट ने हवा रूख देखते हुए रणनीति है बदली है।
सियासी जानकार पायलट अलग-अलग सियासी मायने निकाल रहे हैं। कुछ लोगों को कहना है कि पायलट सोची समझी रणनीति के तहत ऐसा कर रहे हैं। पायलट जानते है कि गहलोत पर हमले करने से कोई फायदा नहीं मिलेगा। पायलट अपने समर्थकों के लिए ज्यादा से ज्यादा टिकट चाहते हैं। जबकि कुछ लोगों को कहना है कि राजनीति में कब क्या हो जाए। कहां नहीं जा सकता है। कांग्रेस पायलट के समर्थकों को टिकट देने का जोखिम नहीं लेना चाहती है।
सचिन पायलट ने 2020 में कर दी थी बगावत
बता दें वर्ष 2020 में सचिन पायलट ने कांग्रेस के खिलाफ बगावत कर दी थी। पायलट ने अपने करीब 19 विधायकों के साथ गुड़गांव के एक होटल में बाडाबंदी कर ही। ऐसे में कांग्रेस आलाकमान इस बार पायलट समर्थकों को टिकट देने में फूंक-फूंक कर कदम रखा है। सियासी जानकारों का कहना है कि कांग्रेस की सरकार रिपीट होने की स्थिति में सीएम गहलोत ही चौथी बार सीएम बनने का दावा पेश कर सकते है। ऐसे में सचिन पायलट एक बार फिर बगावत कर सकते हैं। इस बार बीजेपी पूरी तरह से सचिन पायलट का साथ देगी। कांग्रेस के रणनीतिकार इस पायलट की बगावत को रोकने का चुनाव से पहले ही पुख्ता इंतजाम कर कर रहे हैं। हालांकि, ये सब चुनाव परिणाम के बाद होती आई है। लेकिन बदली हुई परिस्थितियों में कांग्रेस बेहद सावधान है। क्योंकि राजस्थान में फाइट बहुत टाइट है। केंद्र में मोदी सरकार हर हाल में राजस्थान को अपने पास रखना चाहती है। अभी तक जो सर्वे हुए है। पांच राज्यों में सिर्फ बीजेपी को राजस्थान से ही उम्मीद है।
कांग्रेस संभल कर चल रही है
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि आमतौर पर रिजल्ट के आधार पर ही रणनीति बनाई जाती है। लेकिन इस बार कांग्रेस संभल कर खेल रही है। चुनाव बाद किसी भी दल को बहुमत नहीं मिलता है तो कांग्रेस में तोड़फोड़ की सबसे ज्यादा संभावना रह सकती है। कांग्रेस आरोप लगाती रही है कि मोदी-अमित शाह कांग्रेस में तोड़फोड़ के जांच एजेंसियों को दुरुपयोग करते हैं। कांग्रेस इस बार नहीं चाहेगी कि उनके यहां तोड़फोड़ हो।राजस्थान में गहलोत-पायलट की बीच ही मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर चुनाव से पहले ही शीतयुद्ध की स्थिति बनी। राजस्थान में सीएम कुर्सी को लेकर गहलोत-पायलट की लड़ाई सड़कों पर भी आ चुकी है। सियासी जानकारों का कहना है कि अपनी सरकार के खिलाफ अनशन और पदयात्रा के बाद अब पायलट के अगले कदम से इनकार नहीं किया जा सकता है। ऐसे राजस्थान में चुनाव को देखते हुए कांग्रेस के सामने सबसे बड़ा टास्क सचिन पायलट पर कंट्रोल का है। यदि कांग्रेस कर्नाटक की जीत को राजस्थान में दोहराना चाहती है तो इन दोनों दिग्गजों को एक सम्मानजनक समझौते तक पहुंचाने के सिवा उसके पास कोई दूसरा विकल्प नहीं है।