Home देश अल्बर्ट आइंस्टीन भी मुल्क छोड़ भागा था, सहा यहूदियों वाला दर्द

अल्बर्ट आइंस्टीन भी मुल्क छोड़ भागा था, सहा यहूदियों वाला दर्द

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नई दिल्ली
इजरायल पर हमास के आतंकी हमले में 1,200 लोग मारे गए हैं और जवाबी कार्रवाई में बड़ी संख्या में फिलिस्तीनी भी मारे गए हैं। दशकों बाद इजरायल पर इतना बड़ा हमला हुआ तो हर कोई उस इतिहास को जानना चाहता है, जो इस संघर्ष की वजह है। दरअसल यहूदियों का इतिहास ही संघर्ष से भरा रहा है। यहूदी धर्म के प्रवर्तक हजरत मूसा को भी मिस्र में हुए भीषण अत्याचारों के चलते छठी शताब्दी ईसा पूर्व में पलायन करना पड़ा था और वह पूरे समुदाय को ही लेकर इजरायल तक आए थे, जो उनकी पवित्र धरती मानी जाती है। यही नहीं इसके बाद 70 ईसवी में रोम साम्राज्य के अत्याचारों के चलते दूसरी बार यहूदी समुदाय को पलायन करना पड़ा और वह भारत समेत दुनिया भर में फैले।

यही वह समय था, जब यहूदी दुनिया के तमाम देशों जैसे भारत, रूस, जर्मनी और ब्रिटेन में जाकर बस गए। लेकिन इसके बाद भी यहूदी समुदाय को जहां-तहां भेदभाव का शिकार होना पड़ा था। ऐसा ही अत्याचार जर्मनी में हुआ था, जब हिटलर का शासन वहां आया था। हिटलर ने भले ही धर्म के आधार पर अत्याचार नहीं किए थे, लेकिन वह आर्य नस्ल की शुद्धता में यकीन रखता था। इसका शिकार यहूदियों को भी होना पड़ा, जिन्हें वह गैर-आर्य मानता था। हिटलर के शासन के दौरान दुनिया के सबसे बुद्धिमान शख्स कहे जाने वाले अल्बर्ट आइंस्टीन भी जर्मनी में ही रहते थे। वहीं पर उन्होंने अपनी मशहूर 'थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी' दी थी।

आइंस्टीन की यह थ्योरी भले ही भौतिक विज्ञान की दुनिया में नए आयाम खोलने वाली मानी गई, लेकिन हिटलर की उन पर टेढ़ी नजर थी। यही नहीं उनके ज्ञान को हिटलर ने यहूदी सिद्धांत करार दिया था और किताबों को जलाने तक के कई आयोजन हुए थे। इसके अलावा उनकी काट के लिए 100 से ज्यादा वैज्ञानिकों की रचनाएं प्रकाशित की गईं ताकि आइंस्टीन की काट हो सके। हालांकि इससे आइंस्टीन का हौसला कम नहीं हुआ और उन्होंने हिटलर पर तंज कसते हुए कहा था कि रिलेटिविटी के सिद्धांत को खारिज करने के लिए 100 वैज्ञानिकों की नहीं बल्कि एक सही तथ्य ही काफी है।

हालांकि हालात ऐसे हो गए थे कि यहूदियों पर अत्याचार जर्मनी में बढ़ते चले गए और अंत में 1932 में आइंस्टीन देश ही छोड़ दिया। उनकी जिंदगी ही खतरे में थी और वह अमेरिका जा पहुंचे। उनके लिए कितना बड़ा खतरा था, इसे इस बात से समझा जा सकता है कि आइंस्टीन के पलायन के बाद एक नाजी मैगजीन में उनकी तस्वीर छपी थी। इसी के साथ कैप्शन में लिखा था- अब तक फांसी नहीं मिल पाई। कहा जाता है कि हिटलर के शासन में उनके सिर पर इनाम तक घोषित हो गया था। दुनिया के सबसे बुद्धिमान शख्स के साथ भी ऐसी विडंबनापूर्ण घटना इतिहास में मायने रखती और बताती है कि धार्मिक और नस्लीय कट्टरता कितनी खतरनाक हो सकती है।

कैसे न्यू जर्सी बन गया फिजिक्स का मक्का
जर्मनी से भागे आइंस्टीन ने अमेरिका के न्यू जर्सी में शरण ली थी। उनके चलते ही इस स्थान को 'फिजिक्स का मक्का' कहा जाने लगा। यही नहीं उस दौर के अखबारों में भी छपा था कि फिजिक्स के पोप ने जर्मनी छोड़ दिया है और वह न्यूजर्सी में आकर बस गए हैं, जो नया वेटिकन बन गया है।