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‘एयरपोर्ट तक की 30 किमी दूरी तय कर पाना मुश्किल’, इजरायल में फंसी भारतीय महिला रिसर्चर, मदद का इंतजार

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नई दिल्ली
इजरायल-हमास के बीच छिड़ी जंग का आज पांचवां दिन है। दोनों ही पक्षों के लोग आतंक भरे इस माहौल में डरे-सहमे हुए हैं। इस बीच, दीपान्विता रॉय नाम की एक भारतीय रिसर्चर के इजरायल के रेहोवोट में फंसे होने की जानकारी मिली है। हिन्दुस्तान टाइम्स ने 30 वर्षीय इस महिला शोधकर्ता से बातचीत की। इस दौरान उन्होंने भारत सरकार से उन्हें तुरंत वहां से निकालने में मदद करने की अपील की। मालूम हो कि इजरायल में फंसे 18,000 नागरिकों को सुरक्षित बाहर निकालने के प्लान की घोषणा भारत पहले ही कर चुका है। दीपान्विता बीते एक साल और पांच महीने से रेहोवोट के वीज़मैन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस से पोस्ट-डॉक्टोरल रिसर्च कर रही हैं। वह पश्चिम बंगाल की रहने वाली हैं। महिला शोधकर्ता उस वक्त रिसर्च फैसिलिटी में ही थीं जब हमास के आतंकवादियों ने अचानक इजरायल पर हमला कर दिया। उन्होंने बताया, 'सायरन बजना तो यहां की रूटीन लाइफ का हिस्सा है। उस दिन भी ऐसा ही हुआ जब हमें सायरन की आवाज सुनाई दी। हम सब 2 मिनट के भीतर ही शेल्टर में पहुंच गए। मगर, उस दिन लगातार 3 घंटे तक सायरन बजता रहा। इससे हमें लगा कि जरूर कोई बड़ी घटना हुई है।'

'रेहोवोट पर अभी तक नहीं हुआ कोई मिसाइल हमला'
हमास के लड़ाके जिन इलाकों में सक्रिय हैं, रेहोवोट उससे काफी दूर है। यहां पर अभी तक कोई मिसाइल हमला नहीं हुआ है। इसके बावजूद लोग डरे हुए हैं। दूसरे देशों के जो लोग यहां फंसे हैं, वे सभी जल्द से जल्द अपने घर लौट जाना चाहते हैं। दीपान्विता ने कहा कि उनका इंस्टिट्यूट और इजराइली सरकार काफी मदद कर रही है। सभी स्टूडेंट्स और रिसर्चर्स को जरूरी सहायता मुहैया कराई जा रही है। इजराइली सरकार ने छात्रों के लिए मुफ्त स्थानीय और अंतरराष्ट्रीय कॉलिंग के साथ-साथ इंटरनेट एक्सेस भी दिया है। हालांकि, उन्होंने भारतीय पक्ष से उसके नागरिक को बाहर निकालने के प्रयासों में तेजी लाने की अपील की।

'एयरपोर्ट तक की 30 किमी दूरी तय कर पाना मुश्किल'
रेहोवोट शहर से तेल अवीव एयरपोर्ट की दूरी 30 किलोमीटर है। इस यात्रा में बस से 25 मिनट से भी कम समय लगता है। हालांकि, वे अकेले यह दूरी तय करने को लेकर सुरक्षित महसूस नहीं कर रहे हैं। दीपान्विता ने कहा, 'किसी भी अंतरराष्ट्रीय उड़ान के लिए हमें तेल अवीव पहुंचना होगा। फिलहाल हमें इस यात्रा को लेकर सुरक्षित महसूस नहीं हो रहा है। हम खुद को अपने इंस्टीट्यूट के शेल्टर में सुरक्षित पा रहे हैं और स्थानीय लोगों की भी सहायता मिल रही है। 30 वर्षीय महिला ने कहा कि वीज़मैन इंस्टीट्यूट भोजन, पानी, बिजली और नेटवर्क की सप्लाई अच्छी तरह से कर रहा है। सड़कों पर पुलिस टीमें भी तैनात हैं। उन्होंने कहा कि मैं जल्द से जल्द अपने घर जाना चाहती हूं। मुझे उम्मीद है कि भारत की ओर से और तेजी से इस दिशा में कदम उठाया जाएगा।