मुंबई
कोविड सेंटर घोटाले के आरोपी सुजीत पाटकर ने प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को दिए अपने बयान में अहम खुलासा किया है. यह बयान उस आरोप पत्र का हिस्सा है जिसमें खुलासा किया है कि पाटकर ने बीएमसी के तत्कालीन अपर आयुक्त संजीव जायसवाल से मिलने के लिए अपने करीबी दोस्त शिवसेना यूबीटी नेता और सांसद संजय राउत के नाम का इस्तेमाल किया था.
पाटकर ने अपने बयान में कहा है कि चूंकि जायसवाल उपलब्ध नहीं थे, इसलिए उन्होंने कोविड केंद्रों के जनशक्ति अनुबंध (मेनपावर कॉन्ट्रेक्ट्स) के लिए आवेदन करने से पहले अपने कार्यालय में उनसे मिलने के लिए राउत के नाम का इस्तेमाल किया था.
जंबो सेंटर्स चलाने का मिला था कॉन्ट्रेक्ट
पाटकर्स लाइफलाइन हॉस्पिटल मैनेजमेंट सर्विसेज ने वर्ली कोविड जंबो सेंटर और दहिसर कोविड जंबो सेंटर्स में मेनपावर की सप्लाई का कॉन्ट्रेक्ट हासिल कर लिया. ईडी की जांच से पता चला कि दोनों केंद्रों पर पाटकर और उनके सहयोगियों ने बीएमसी के मानदंडों के उलट जरूरत से केवल 40 प्रतिशत कर्मचारियों को तैनात किया था, लेकिन बिल सौ प्रतिशत कर्मचारियों के जमा किए. इसमें उस अवधि के बिल भी जमा किए थे जब चक्रवात ताउते की वजह से ये सेंटर बंद थे.
मरीजों की जिंदगी रखी थी ताक पर
यह मामला बीएमसी के एक अधिकारी ने उठाया था, जिन्होंने अपने वरिष्ठ अधिकारियों के समक्ष इस मुद्दे को उठाया भी लेकिन किसी ने शिकायत पर ध्यान नहीं दिया.कोविड केंद्रों में कर्मचारियों की कम संख्या के कारण वहां इलाज करा रहे मरीजों और उनकी जिंदगी को ताक पर रखा गया. पाटकर, राउत के करीबी सहयोगी रहे हैं और पात्रा चॉल मामले में भी उनके घर पर ईडी ने छापा मारा था. इस दौरान राउत की पत्नी और पाटकर की पत्नी के नाम पर संपत्ति के दस्तावेज बरामद किए थे.
आपको बता दें कि ईडी की जांच में सामने आया था कि कोविड सेंटर के इस घोटाले में 2000 रुपये का बॉडी बैग 6800 में खरीदी गई. यह कॉन्ट्रैक्ट बीएमसी के तत्कालीन मेयर के निर्देश पर दिया गया था.ED की जांच में सामने आया है कि बीएमसी ने कोविड की जो दवाएं खरीदी थीं, वह बाजार में 25 से 30 फीसदी तक सस्ती थी. मतलब BMC ने बहुत ज्यादा दामों पर कोरोना की खरीद की थी. हैरानी की बात ये है कि इस तरह के नोटिस जारी होने के बाद भी बीएमसी के वरिष्ठ अधिकारियों ने लापरवाही की.