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राजस्थान चुनावी समीकरण, वसुंधरा राजे की पार्टी में अनदेखी से कांग्रेस को है फायदा!

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जयपुर

राजस्थान में वसुंधरा राजे को नजरअंदाज करना बीजेपी को चुनाव में भारी पड़ सकता है। इसकी दो वजह है। सियासी जानकार वसुंधरा राजे की अनदेखी पर कांग्रेस को सियासी लाभ मिलने की संभावना जता रहे हैं। उनका तर्क है कि एक तबका जो वसुंधरा राजे का साॅविड वोट है। बीजेपी की अनदेखी कर सकता है। दूसरा बीजेपी के पास वसुंधरा राजे जैसा वोट खिंचतने वाला आकर्षक चेहरा नहीं है। वसुंधरा राजे की सभी जातियों में गहरी पैठ है।

अब यह पूरी तरह से साफ हो गया है कि बीजेपी वसुंधरा राजे को सीएम फेस नहीं बनाएगी। बिना सीएम फेस ही चुनावी मैदान में उतरेगी। सियासी जानकारों का कहना है कि जिन पांच राज्यों में चुनाव होने है। उनमें राजस्थान बीजेपी के लिए खास है। इसलिए सभी की निगाहें राजस्थान चुनाव पर है। वजह यह है कि अशोक गहलोत जैसे दमदार नेता को हराकर बीजेपी में लोकसभा चुनाव में अपनी सियासी पिच पर खुलकर खेलना चाहती है।

राजस्थान की रणभूमि को जीतने के लिए जातिय समीकरण काफी मायने रखते है। महिला वोटर्स पर वसुंधरा राजे का प्रभाव माना जाता है। जानकारों का यह भी कहना है कि वसुंधरा राजे की अनदेखी से महिला वोटर्स कांग्रेस की तरफ नहीं खींच जाए। शायद यही वजह है कि बीजेपी में वसुंधरा के विकल्प के तौर पर दीया कुमारी का नाम उछाला जा रहा है। हालांकि, दीया कुमारी की वसुंधरा राजे जैसी जमीनी पकड़ नहीं है।

वसुंधरा राजे साइडलाइन

राजस्थान में वसुंधरा राजे पूरी तरह से साइडलाइन है। वसुंधरा राजे के विकल्प के तौर पर सांसद दीया कुमारी का नाम लिया जा रहा है। सियासी जानकारों का कहना है कि वसुंधरा राजे के धुर विरोधी नेता एकजुट है। पीएम मोदी की सभा में वसुंधरा राजे का मंच से भाषण नहीं होने के अलग-अलग सियासी मायने निकाले जा रहे हैं। हालांकि, यह सामान्य सी बात है। लेकिन सियासी जानकारों कहना है कि हर घटना के पीछे राजनीतिक मैसेज होता है।

जानकारों का कहना है कि बीजेपी जिस अंदाज़ में चुनावी रणनीति को आगे बढ़ा रही है। उससे लगता है कि वो वसुंधरा राजे युग से बाहर निकलना चाहती है। पिछले चुनाव के बाद से ही जो पार्टी का रुख़ रहा है, उससे कहा जा सकता है कि इस बार के विधान सभा चुनाव के माध्यम से बीजेपी प्रदेश में नेतृत्व की नई पौध उगाना चाह रही है। इनमें केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, दीया कुमारी, राजेंद्र सिंह राठौड़ और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया का नाम लिया जा रहा है।

बीजेपी के पास राजे जैसा चेहरा नहीं

सियासी जानकारों का कहना है कि बीजेपी पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और पार्टी की सबसे कद्दावर नेता वसुंधरा राजे की लगातार अनदेखी कर रही है। यह बात हैरान करने वाली है। हालांकि यह बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व की सोची-समझी चुनावी रणनीति का भी हिस्सा हो सकता है, इससे इंकार नहीं किया जा सकता है। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि बीजेपी नेताओं को अहसास है कि पांच साल सत्ता में रहने के बावजूद राजस्थान में कांग्रेस की स्थिति मज़बूत है। कांग्रेस के पास अशोक गहलोत जैसा दमदार नेता है।

हर पांच साल बाद सरकार बदलने का ट्रेंड

राजस्थान में बीजेपी और कांग्रेस बारी-बारी से सत्ता में आती है। 1993 विधान सभा चुनाव में  जीत हासिल भैरों सिंह शेखावत की अगुवाई में बीजेपी ने सरकार बनाई थी। उसके बाद राजस्थान में कोई भी पार्टी लगातार दो बार चुनाव नहीं जीत सकी है। इस परंपरा के लिहाज़ से इस बार बीजेपी की बारी है।

यह बीजेपी के लिए प्लस पॉइंट हो सकता है, लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि अशोक गहलोत और सचिन पायलट की साझा ताक़त के सामने पिछले 6 बार से चली आ रही परंपरा को क़ायम रखना बीजेपी के लिए आसान नहीं रहने वाला। उसमें भी जब पार्टी अपनी सबसे वरिष्ठ नेता वसुंधरा राजे की अनदेखी कर रही हो। सीएम गहलोत ने सामाजिका सुरक्षा से जुड़ी योजनाओं के जरिए जनता के लिए काम किए है।