जयपुर
राजस्थान बीजेपी में पूर्व मुख्यमंत्री वसुधरा राजे सिंधिया के सितारे गर्दिश में हैं.पिछले कुछ दिनों के घटनाक्रम ये इशारा कर रहे हैं कि महारानी का राजनीतिक खेल खत्म हो चुका है. पार्टी उनकी जगह नया नेतृत्व तैयार करने के मूड में है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सभा में जिस तरह प्रदेश की 2 महिला नेताओं को तवज्जो मिली क्या वो वसुंधरा के लिए इशारा था? क्या वसुधरा का विकल्प बन सकेंगी दीया कुमारी? क्या है दीया कुमारी की राजस्थान में राजनीतिक ताकत?
दिसंबर 2018 में जब बीजेपी के तत्कालीन अध्यक्ष अमित शाह दीया कुमारी और उनकी मां पद्मिनी देवी के जयपुर आवास पर पहुंचे थे तभी से यह अटकलें लगनी शुरू हो गईं थीं कि महारानी का भविष्य पार्टी में उज्जवल दिख रहा है.पर बुधवार को पीएम मोदी की सभा में जिस तरह महारानी दिया कुमारी को तवज्जो मिली उन अटकलों को और हवा मिल गईं. हालांकि ऐसी संभावनाएं मीडिया में राजनीतिक विश्लेषक पहले से ही लगा रहे थे. अब उस संभावनाओँ पर मुहर लगने का इंतजार है. आखिर क्या कारण हैं कि महारानी दीया कुमारी पर पार्टी दांव लगा सकती है?
1-राजपूत वोटरों को साधने की कोशिश
आनंदपाल प्रकरण में राजपूतों की नाराजगी की वजह से पिछला विधानसभा चुनाव मामूली वोटों के अंतर से बीजेपी हार गई थी. इस बार बीजेपी ये गलती दुबारा नहीं करना चाहती है.इसलिए राजपूत वोट बैंक को फिर से मजबूत किया जा रहा है. नेता प्रतिपक्ष के पद पर भी राजेंद्र सिंह राठौड़ को बैठाकर बीजेपी ने राजपूतों को संदेश पहले दे दिया था. वसुंधरा से किनारा करने के बाद बीजेपी अब राजस्थान में पार्टी के संस्थापक और कद्दावर नेता भैरो सिंह शेखावत की विरासत को फिर से जिंदा करने में लगी हुई है. खचरियावास में बार-बार बीजेपी के बड़े नेताओं का जाना इसका सबूत है.
दरअसल राजस्थान में राजपूत करीब 14 फीसदी हैं जिनका 60 विधानसभा सीटों पर असर है. जयपुर, जालोर, जैसलमेर, बाड़मेर, कोटा, उदयपुर, चित्तौड़गढ़, अजमेर, नागौर, जोधपुर, राजसमंद, पाली ,बीकानेर और भीलवाड़ा जिलों में राजपूत वोटों की नाराजगी किसी भी पार्टी के लिए भारी पड़ जाती रही है. वैसे तो बीजेपी के पास कई राजपूत नेता हैं राज्य में जिनमें केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, पूर्व केंद्रीय मंत्री और सांसद राज्यवर्धन सिंह राठौड़ आदि प्रमुख हैं. पर सांसद दीया कुमारी की बात अलग हैं. महारानी गायित्रि देवी की विरासत भी उनके पास है. बीजेपी उन्हें महत्वपूर्ण जिम्मेदारी देकर राजपूतों में संदेश दे सकती है. .
हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनावों में राजपूत वोटों को लुभाने के लिए बीजेपी प्रत्याशियों के समर्थन में प्रचार के लिए दीया कुमारी को उतारकर पार्टी ने यह संदेश पहले ही दे दिया था कि राजस्थान के राजपूतों के लिए उनका इस्तेमाल किया जाएगा. राजस्थान के बीजेपी नेताओं में वह इकलौती महिला नेता हैं, जिन्हें हिमाचल प्रदेश के चुनाव प्रचार में उतारा गया था.
2-महारानी के खिलाफ महारानी
अगर बीजेपी महारानी दीया कुमारी को सीएम कैंडिडेट बनाती है तो यह एक महारानी की जगह दूसरी महारानी जैसा ही होगा. वसुंधरा राजे को महारानी के नाम से भी बुलाया जाता है. दीया कुमारी भी महारानी हैं. दोनों राजपूत हैं, जो बीजेपी के परंपरागत रूप से वोटर हैं. इसलिए बीजेपी आश्वस्त हो सकती है कि अगर वसुंधरा नाराज भी होती हैं तो पार्टी को कोई नुकसान नहीं होने वाला है.
इन दोनों की सियासी अदावत किसी से छिपी नहीं है. कभी दीया कुमारी को वसुंधरा राजे ने ही राजनीति में एंट्री कराईं थीं. तब दीया कुमारी जयपुर राजघराने की राजकुमारी हुआ करती थीं. 2013 के विधानसभा चुनावों में वसुंधरा ने डॉ. किरोड़ी लाल मीणा को हराने के लिए सवाई माधोपुर विधानसभा सीट से राजकुमारी को लड़ाने का फैसला किया. वसुंधरा का तीर निशाने पर लगा और राजकुमारी दीया ने ग़रीबों की झोपड़ी में चूल्हे फूंक कर पोलिकल माइलेज ले लिया. राजघराना बनाम राज्य सरकार के बीच का संपत्ति विवाद में दोनों महारानियां आमने-सामने आ गईं. 2018 में वसुंधरा ने दीया कु्मारी का टिकट काट दिया. यही महारानी दीया कुमारी के वरदान साबित हो गया. पार्टी हाईकमान ने उन्हें सांसद का टिकट दे दिया. तब से महारानी का सितारा बलुंदियों पर है.
3-मेवाड़ जो जीतता है वही राजस्थान पर राज करता है
मेवाड़ के राजसमंद से महारानी दीया सांसद हैं. जनता के बीच रहकर उन्होंने मेवाड़ मे अपनी जगह बना ली है. राजस्थान की राजनीति में माना जाता है कि जो मेवाड़ जीतता है, वह राजस्थान पर राज करता है. महारानी दीया ने सांसद के रूप में अपने कामकाज से मेवाड़ के लोगों का दिल जीत लिया है.
राजस्थान विधानसभा चुनावो के 2013 और 2008 और 2003 के आंकड़े बतातें है कि जिस पार्टी को मेवाड़ में सबसे ज्यादा सीटें मिलीं हैं उसी की सरकार बनी है. 2013 में 28 सीटों में से बीजेपी ने 25, कांग्रेस ने दो सीटें जीतीं, सरकार बनी बीजेपी की. उसी तरह 2008 में कांग्रेस ने 19 और बीजेपी ने 7 सीटें जीती और सरकार बनी कांग्रेस की. 2003 में भी यही फॉर्मूला काम किया. 25 सीटों में से 18 बीजेपी और 5 कांग्रेस को मिलीं. सरकार बनी बीजेपी की.साल 2018 के नतीजे कुछ अलग रहे थे,जब बीजेपी ने 15 और कांग्रेस ने 10 सीटें जीती थीं लेकिन सरकार बनाने में बीजेपी असफल साबित हुई थी.
4-साफ सुथरी छवि और बीजेपी के हिंदुत्व को धार देने वाली भाषा
महारानी दीया को मुख्यमंत्री बनाकर पार्टी हाईकमान वसुंधरा से अपना हिसाब चुकता कर सकता है. कई बार ऐसे मौके आए हैं जिनमें पार्टी हाईकमान और वसुंधरा के बीच मतभेद खुलकर सामने आए हैं.जयपुर राजघराना कछवाहा राजपूतों का रहा है.महारानी दीया कुमारी कई बार ये दावा कर चुकी हैं कि उनका वंश श्रीराम के बेटे कुश के 399 वां पीढ़ी है. पिता भवानी सिंह को 1971 के भारत-पाक युद्ध में पराक्रम दिखाने के लिए याद किया जाता है. तब उन्हें अदम्य साहस और वीरता के लिए महावीर चक्र से सम्मानित किया गया था. महारानी दीया कुमारी का परिवार कांग्रेसी रहा है पर दीया कुमारी हिंदुत्व और राष्ट्रवाद पर जमकर बोलती हैं. उन्होंने एक बार ताजमहल पर अपने खानदान का दावा ठोंक दिया था. उनका कहना था कि उनके पास ऐसे डॉक्युमेंट हैं जिससे साबित होता है कि यह जगह हमारी है. मुगल काल में हमारे परिवार का महल और जमीन कब्जा कर लिया गया था. महारानी दीया कुमारी पर भ्रष्टाचार के कोई आरोप नहीं हैं और कुल मिलाकर उनकी छवि भी साफ़ सुथरी है.
5-वसुंधरा के बगावती तेवर के मुकाबले दीया पर पार्टी हाईकमान का भरोसा
राजस्थान की राजनीति में वसुंधरा राजे सिंधिया के बगावती तेवरों से पार्टी में उनकी स्थित खराब होती रही है. अभी हाल ही पूर्व विधानसभा अध्यक्ष कैलाश मेघवाल के आरोपों के पीछे भी वसुंधरा का हाथ बताया जा रहा था.इसके पहले भी कई बार पार्टी के मीटिंग से गायब रहना और पार्टी से अलग अपनी यात्रा निकालने आदि का आरोप उन पर लगता रहा है.यही कारण रहा कि कभी भी पार्टी हाइकमान की चहेती नहीं बन पाईं. लगातार उनकी दबाव वाली राजनीति से पार्टी परेशान रही है. इसके ठीक उलट महारानी दीया कुमारी टॉप नेतृत्व के साथ कदम मिलाकर चल रही हैं और पार्टी का भरोसा जीतने में कामयाब हुई हैं.