भोपाल
भाजपा की आई हुई दोनों सूचियों ने जहां भाजपा के पक्ष में एक माहौल बना दिया है तो वहीं दूसरी ओर दूसरी सूची ने तो और भी अधिक चौंका दिया है और निश्चित रूप से भाजपा सभी तरह के उन प्रयासों की ओर लगी हुई है जिससे प्रत्येक सीेट की जीत सुनिश्चितता की ओर हो तथा घोषित सीट के प्रत्याशी का लाभ आसपास की सीटों पर भी मिल सके। इस जीत के लिए सर्वे और सामाजिक समीकरण के मायने को भी दरकिनार करते हुए संबंधित विधानसभा की लोकसभा सीट की सारी विधानसभाओं पर प्रत्याशी का प्रभाव हो, ऐसा चयन किया जा रहा है। प्रदेश के चार-चार केंद्र स्तरीय कद्दावर नेताओं का चयन तो इससे भी बढ़कर संकेत है जिसमें प्रत्येक प्रत्याशी के हवाले अपनी लोकसभा के अलावा आसपास की लोकसभाओं के प्रभाव को भी ध्यान में रखा गया है। तथा उनके जिम्में 25 से 50 विधानसभा सीटें दी गई हैं।
इसी तरह गुना और राजगढ़ लोकसभा को ध्यान में रखते हुए दोनों लोकसभा के मध्य क्षेत्र राजगढ़ ब्यावरा का विशेष महत्व हो जाता है। जिसमें खिलचीपुर से दांगी प्रत्याशी को घोषित करने से यह सुनिश्चित हो गया है कि राजगढ़ ब्यावरा से सोंधिया और ब्राह्मण प्रत्याशी ही घोषित किया जाएगा। क्योंकि ब्यावरा से सोंधिया प्रत्याशी निरंतर दो बार हार चुके हैं तथा राजगढ़ से ब्राह्मण प्रत्याशी करारी हार का सामना कर चुके हैं। ऐसे में राजगढ़ से ऐसे सोंधिया प्रत्याशी पर निगाहें है जिसका प्रभाव राजगढ़ के साथ खिलचीपुर, सुसनेर और ब्यावरा के सोंधिया समाज पर भी हो तथा इसका लाभ समीप की या पूरे प्रदेश की सोंधिया समाज की सीटों पर भी मिल सके।
इसी तरह ब्यावरा से ऐसे निष्कलंक बेदाग ब्राह्मण चेहरे की तलाश है, जिसका लाभ समीपवर्ती विधानसभा राजगढ़ नरसिंहगढ़, चाचौड़ा, राघोगढ़ के साथ गुना लोकसभा में भी मिल सके, इसके लिए चेहरों की तलाश जारी है। राजगढ़, ब्यावरा सीटों पर सोंधिया और ब्राह्मण को दिया जाना तो तय है और वहां भी स्थानीय सर्वे या सामाजिक समीकरण से हटकर ऐसे चेहरों की तलाश है जो दोनों लोकसभा में व्यापक संपर्क संबंध के साथ प्रभावी हों।
पार्टी की घोषित दूसरी सूची ने यह पूरी तरह स्पष्ट कर दिया है कि वहां व्यापक प्रभाव वाले सांसद या लोकसभा स्तरीय व्यापक प्रभाव वाले चेहरे को राजगढ़ में स्थापित करना चाहती है। वहीं ब्यावरा सीट से ऐसे ब्राह्मण प्रत्याशी पर विचार किया जा रहा है जिसका प्रदेश स्तरीय व्यापक संपर्क व प्रभाव हो तथा समीपवर्ती विधानसभाओं के पिछड़ा वर्ग जैसे लोधा लोधी, धाकड़, सोंधिया समाज व अन्य पिछड़ा वर्ग के साथ कर्मचारी अधिकारी पेंशनर्स वर्ग का भी व्यापक समर्थन पार्टी के पक्ष में कर सके तथा इन दोनों विधानसभाओं राजगढ़ ब्यावरा के प्रत्याशी का लाभ राजगढ़ गुना दोनों लोकसभाओं में व्यापक रूप से मिल सके।
इसके लिए उन प्रत्याशियों की सक्रियता प्रदेश व्यापी एवं लोकसभा स्तरीय हो। ध्यान रहे कि राजगढ़ लोकसभा में सोंधिया समाज सबसे बड़ी संख्या में है तथा राजगढ़ और गुना दोनों लोकसभा में ब्राह्मण समाज भी प्रत्येक विधानसभा में प्रभावी है। इस मंथन में यह भी देखा जा रहा है कि दोनों लोकसभा में ब्राह्मण और लोधा लोधी व सोंधिया समाज की प्रभावी उपस्थिति है अत: राजगढ़ और ब्यावरा से इस प्रकार के प्रत्याशी पर मंथन चल रहा है जिनके कारण दोनों लोकसभा क्षेत्र के सोंधिया लोधा लोधी ब्राह्मण वर्ग के साथ अन्य सवर्ण, पिछड़ा एवं अधिकारी कर्मचारी पेंशनर्स वर्ग का भी लाभ मिल सके।
इसके लिए दोनों विधानसभाओं के प्रत्याशी शासकीय क्षेत्र के अधिकारी स्तरीय वह व्यक्ति जिनकी सांगठनिक समझ तथा संगठन दायित्वों में भी कुशलता हो तो यह उपयुक्त होगा। इस दृष्टि से पार्टी निर्णय पर पहुंच रही है। अब देखना यह है कि वह इस समीकरण के साथ अन्य समीपवर्ती विधानसभाओं की घोषणा पहले करती है या राजगढ़ ब्यावरा की घोषणा करके फिर घोषित प्रत्याशियों के अनुरूप अन्य समीपवर्ती विधानसभाओं की घोषणा करती है।
जो भी है वह आने वाले दिनों में 7 अक्टूबर के पूर्व सुनिश्चित हो जाएगा। रही बात सारंगपुर सुसनेर और नरसिंहगढ़ की तो यहां जीती हुई सीटों पर परिवर्तन के पूर्व व्यापक मंथन किया जा रहा है तो वहीं दूसरी ओर गुना लोकसभा में भी चंदेरी, मुंगावली, अशोकनगर, बमोरी, पिछोर, करेरा आदि में भी ब्राह्मण और लोधा लोधी व्यापक संख्या में हैं। अत: राजगढ़ ब्यावरा की सीटों के प्रत्याशी दोनों लोकसभाओं को प्रभावित करेंगे।
जिसमें हम यदि नजर डालें तो दूसरी सूची में घोषित प्रत्याशियों की व्यापक स्वीकार्यता के चलते जो निर्णय लिए गए हैं, उसी क्रम में राजगढ़, गुना लोकसभा में व्यापक स्वीकार्यता वाले कद्दावर नाम राजगढ़ ब्यावरा विधानसभा से घोषित होने पर पार्टी के पक्ष में निश्चित रूप से एक सुनिश्चित विजय का वातावरण बनेगा। साथ ही पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के क्षेत्र में राघोगढ़ राज परिवार को घेरने की एक सफल रणनीति भी बनेगी क्योंकि इसके पूर्व लक्ष्मण सिंह को 2004 में लोकसभा में एक सशक्त चुनौती का सामना करना पड़ा था।